My Diary Entry
शुक्रवार, 21 जून 2024
समझ नही आ रहा
गुरुवार, 9 मई 2024
प्रलय के दिनो में
मंगलवार, 26 सितंबर 2023
कुछ ऐसा हो जाये
कुछ ऐसा हो जाये,
कुछ वैसा हो जाये,
ये कमजोर जीत जाये,
ये बलवान हार जाये,
ये सच सच न रहे,
ये झूठ सच हो जाये,
इसे जीवन मिल जाये,
वो स्वस्थ मृत्यु हो जाये |
ये तार्किक तो नहीं,
पर ये ज्यादा सौम्य हैं,
ये क़ानूनी ठीक तो नहीं,
पर ज्यादा वाज़िब है,
ये समुचित तो नहीं,
पर यही न्याय है,
तो मौन हो जाओ |
सब समय के साथ अनुचित हैं,
मौन हो जाओ |
क्योकि,
वही होगा ||
बुधवार, 19 जुलाई 2023
इश्क़ हुआ
अभी अभी पूरा खाली हुआ था मैं
उसके शब्द और वक्त भूल चूका था मैं
अभी वापस से सीने में कोई हलचल नहीं थी
अभी अभी दिल सुख चूका था
तुम आई
बड़े हौले से, अचानक से, सहूलियत से
इनकार का समय नहीं दिया
इकरार पहले कर लिया
कुछ पूछा नहीं बस हसी और चली गयी
फिर से हलचल इस सीने में
इश्क़ हुआ
बुधवार, 5 अप्रैल 2023
मैं बोल ना पाया
तुमसे हमेशा मैं जहोदत्त करता रहा
तुमसे बेखबर और बेफिक्र मैं इश्क़ करता रहा
तुमको पा लूं ये मैं इल्तेजा करता रहा
पर तुमसे एक रौशनी सी उठती जब मैं करीब आने की कोशिश करता
और मेरी धड़कन की गति मेरी जुबां पे हावी हो जाती
सो मैं बोल ना पाया
तुम इतनी भोली सी लगती हो
तुम्हारी जमीं पे मुझे धूल नजर ही नहीं आती
और तुम्हारा आसमां इतनी रंगीन है की
मैं सिर्फ एकटक निहार ही पाता हूँ
मेरा वजूद तुमसे हमेशा अलग नजर आया हैं
मेरी जमी और आसमां मैला नजर आया हैं
सो मैं तुमसे बोल ना पाया
तुम्हारी ये कानों की बालियां जो हमेशा हलकी सी डोल जाया करती है
तुम्हारी बिखरती ये जुल्पे जो हमेशा लहराते हुए दीखते हैं
तुम्हारी ये आँखे जो अमूमन मुझे सबसे बेहतर नजर आये
तुम्हे मुझसे काफी अलग कर देती हैं
लोग बोलते हैं तुम एक लड़की हो और मैं एक लड़का
तो तुम मुझसे इतनी अलग हो की
मैं तुमसे बोल ना पाया
तुम बोलती हो तो एक संगीत सी लगती हैं
तुम्हारी अंरेज़ी मेरे पल्ले नहीं पड़ती है
जो मैं तुमसे बोलना चाहता हु
थोड़ी बहुत सीखी है तुम्हारी भाषा
पर कम्बख्त मन से जुबां तक आते आते रूखे सूखे हो जाते है वो शब्द
फिर मैं तुम जैसा थोड़ा बन नहीं पाया
और मैं तुमसे बोल ना पाया
शनिवार, 4 मार्च 2023
स्मृति
गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023
किस्से
बुधवार, 11 जनवरी 2023
गुरुवार, 5 जनवरी 2023
मैं झूठ बोल देता हूं
मैं झूठ बोल देता हूँ
जब भी गम में दिल भारी होता हैं
गम पे खबर लेने वाले पूछ लेते है
बताते–बताते आगे निकल आता हूं
मैं झूठ बोल देता हूँ
मेरा जिंदगी में सादगी बहुत हैं
जिंदगी में ठाट बाट भी अच्छा लगता है मुझे
पर सादगी पे मोहित लोग की वाह में
अक्सर झूठ बोल देता हूं
मुझे नाचना पसंद है
गाने का शौक उससे ज्यादा है
सुरीली बोल नहीं है
तो झूठ बोल देता हूं
कुछ मेरी कामयाबी पे मेरी प्रसंशा करते हैं
उसमे चार चाँद लगाने में झूठ बोल देता हु मैं
मेरी हार पे लोग मेरे साथ होते हैं
उन लोगो के सामने हार का मैं तिरस्कार करता हूँ
और फिर झूठ बोल देता हु मैं
हर पल हर भावना में मैं खुद को खोल देता हूं
फिर एक नया झूठ बोल देता हूं
मैं खुद के साथ बहुत सच्चा हूं
इस सच्चाई के अभियान में झूठ छुपा देता हूं
मैं अक्सर झूठ बोल देता हूं
मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022
सामाजिक रिश्ते
समय और परिवेश अलग है
खून के रिश्ते आज बहुतो के कोसो दूर है
रिस्तेदारो की तरह मिलना होता है उनसे
फर्क सिर्फ उतना है की घर अपना होता है
तो फिक्र और फर्क दोनों देखने पड़ेंगे
रिश्ते हमे ढूंढने पड़ेंगे
पैसे हमे असीमित कर हिसाब छोड़ना होगा
हमे बाकि लोगो में दोस्त ढूंढा पड़ेगा
परिवार ढूंढना पड़ेगा
परिवार सा बे-हिसाब रहना पड़ेगा
अर्जित धन लूट जाये तो ग़म नहीं करो
अर्जित लोगो से अगर विचार और परिवेश मिल रहे है
तो उनपर खुद को लूटना पड़ेगा
यही होगा एक अच्छा जीवन
सार्थक जीवन की तलाश छोड़ दो
ये तलाश हमे खुद में अहम बनाती है
हमे खुद को बहुत आम और आसान बनाना होगा
जो सही लोगो का साथ कभी न छोड़े
गलत लोगो का साथ छोड़ने में न कतराए
जिंदगी में लोगो को आने जाने को रास्ता आसान रखना होगा
जीवन बस एक जीवन बन कर ही रहना होगा
इसी जीवन के लिए सही और गलत लोगो की पहचान देखना होगा
दोस्तों को परिवार ही समझना होगा
शनिवार, 14 मई 2022
सामाजिक जीवन
शुक्रवार, 13 मई 2022
मैं और मेरी मोहब्बत
गुरुवार, 12 मई 2022
यादों की बारात
मंगलवार, 3 मई 2022
अपराध और पश्चताप
बुधवार, 23 मार्च 2022
तुम्हारे बाद मैं और जीवन
शुक्रवार, 28 जनवरी 2022
समय की माया
मंगलवार, 14 दिसंबर 2021
केवल प्रेम ही विकल्प हो सकता है
बुधवार, 8 दिसंबर 2021
आप और तुम
बुधवार, 10 नवंबर 2021
आ सखी चुगली करें
मंगलवार, 9 नवंबर 2021
रंग
सोमवार, 1 नवंबर 2021
पहाड़ों से दूर हूं
शनिवार, 28 अगस्त 2021
बाबूजी गुजर गए
शुक्रवार, 23 जुलाई 2021
सरकार हमके पहचान नईखे पावत
शनिवार, 8 मई 2021
एक मासूम दिल सा
गुरुवार, 29 अप्रैल 2021
आओ आज सच लिखते है
शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021
बे — वाकूफ
सोमवार, 12 अप्रैल 2021
शनिवार, 10 अप्रैल 2021
हम बहुत आसान है (पार्ट २)
हम बहुत आसान है (पार्ट 1)
सोमवार, 3 अगस्त 2020
आंखो देखी
शनिवार, 6 जून 2020
नि:शब्द
मै राम, साई नाम को पीछे से हाथ दिखा के गया
पैगम्बर पे कानों को दबा के रखा
कोई कलाम, गांधी को एक पन्ने में उकेरा
कबीर, भगत और टेरेसा को पन्ने के दूसरे भाग में पाया
मै नि:शब्द हो गया ।
मैंने 2 दिन के लिए खूब पैसे उड़ाए
खाया नाचा और नचाया
महंगी गाड़ी को सड़क पे दौड़ाया
उसी सड़क पे कुछ बच्चो को गुबारे बेचते हुए उसी गूबारे से खेलते पाया
मै नि:शब्द हो गया ।
मै प्रदूषण, अत्याचार और दूसरे जीवों के घरों पे औद्योगीकरण
का परिणाम और समाधान ढूंढता रहा
किसी कारणवश कुछ सप्ताह शहर बंद करना पड़ा
मै नि:शब्द हो गया ।
मै अपने रंग,रूप,मोटे, पतले और नाटे होने के कारण
सबसे दूर भागता रहा
एक दिन बस जीने की लालसा में मैंने हाथ बढ़ा दिया
मै नि:शब्द हो गया ।
मैंने किसी अपने खास को खुश करने के लिए
हजार प्रयास किए
हा कभी कभी सफल प्रयोजन होता पर उसके ना होने पर
मैंने खुद को खुश करना शुरू किया
वो खास बहुत खुश मिला
अब हर प्रयोजन सफल होता चला गया
मै नि:शब्द हो गया ।
मेरे कुछ आदत पे लोग असर छोड़ जाते
मै लड़ता चिलाता खामोश करने लगा
लोगों की भीड़ घेरने लगी
मगर चिलाने वाला केवल मै
मै अब हारने लगा
मै अब कम बोलने लगा
फिर खूब हसने लगा
भीड़ अब पीछे चलने लगी
शब्द को सुनने को, भीड़ चिलाने लगी
ना जाने कैसे मै जीत गया
मै नि:शब्द हो गया ।
मै अब महत्व को महत्व जैसे देखने लगा
मै नि:शब्द हो गया ।
बुधवार, 29 अप्रैल 2020
#इरफान
गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020
Narula
बुधवार, 2 अक्टूबर 2019
गाँधी
एक चेहरा जो मैंने पहले नोटों पे देखा
ऐनक पहने हँसता हुआ चेहरा
इनकी शख्सियत भी बस इतनी ही है
इक विशाल सा पर्वत या समुन्द्र या कोई विशाल सा स्मारक को देखो
एक बार उसके बारे में बात करो, जा के आनंद लो फिर यादो में समां लो
बस इतना ही है गाँधी की शख्सियत
एक बच्चे से बूढ़ा जो हर पल सीखता गया और महान होता गया
कुछ भी नहीं था गाँधी में
न महान लेखक
न महान नेता
न महान अभिनेता
न महान निर्देशक
न महान बिज़नेस मैन
न महान खिलाडी
फिर भी एक महात्मा बोलते थे लोग
सस्ते शरीर का महंगा आदमी
उनके लिए आजादी सिर्फ अंग्रेज़ो से छुटकारा पाना नही था
बल्कि समानता ही आजादी थी
बहुत खुशनसीब थे बापू जो उनको जीवनसाथी बा मिली
राम-सीता , राधा-कृष्णा, लैला- मजनू जैसे
प्रेमसर की धारा में बा-बापू भी थे
उनकी शख्सियत का सबसे बड़ी बात ये थी की
उनको सबसे पहले देखने, सुनने,बोलने वाले देश के बड़े लोग नहीं थे बल्कि
देश का मजदुर किसान वर्ग के लोग थे
जिनकी बुद्धिमत्ता बड़े लोगो की तुलना में बहुत कम मानी जाती रही है
और उन हजारों लाखो के बीच गांधी बिना किसी सुरक्षा और डर के रहते थे
लेकिन बुद्धिमता बर्ग और बड़े वर्ग के लोग उनके सफल एक्सप्रीमेंट्स की वजह से उनसे आदर्शित होने लगे और वो भी उनको सुनने और सुनाने लगे ।
गाँधी को बस सत्य और अहिंसा से उल्लेख करना उनका बस एक दो परसेंट होगा
जिसके लिए हरिलाल और उनके बाकि लड़के सच में उनका सिर्फ बेटे थे
सिर्फ बेटे
लेकिन न अपनी शख्सियत को एक तिनका उनको अर्जित किया और न ही उनकी नाकामियों के कारण उनको नजरअंदाज किया
पूरी भीड़ के सामने बेटो को दुलारते नजर आते थे वो
एक धोती और बदन पे एक कपडा लपेटे अपने को देश की जनसँख्या के जो ज्यादातर लोग थे उनके बीच का बताते
इससे ज्यादा वो और कितना दिखावा कर सकते थे
जब से सूट बूट छोड़ा तो मरते दम तक उसको सूट बूट की जरुरत ही नहीं पड़ी
कोई इतना कैसे बर्दाश कर सकता है की कोई आपको शारीरिक आघात दे और आप पलट कर जवाब न दो
ये एक बेचरापन था या साहसी का असली मायने
इनकी ये भावना से मतभेद रखने वाले भी जानते है की
ग्लानि में मर जाना कितनी बड़ी हार है
उनकी ताकत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं
गाँधी से पहले पिछले 200 साल में ऐसा कोई नही था जो अंग्रेजों की मुछ मरोड़ी हो और वो छूट गया हो
गाँधी और हिंदुस्तान का संग्रामी रिश्ता नेहरू, पटेल, जिन्ना इन सब कांग्रेसियों से बाद का था
पर हिंदुस्तानियों के दिलो में गाँधी सबसे ज्यादा उतरे
गांधी के मन में ब्रिटिश शासन को हटाना नही बल्कि शासन में सबका हिस्सा दिलाना था क्योकि वो जानते थे की ये नही तो कांग्रेस शासन करेगा
पर उनके लिए शासन किसी का भी हो शासन में जनता का हिस्सा होना जरुरी था
जनता का हक़ होना जरूरी था
जैसा की हर पल सीखते चले गए और फिर उसको अपने में उतारते चले गए
ब्रिटिश लोगो का शासन अपना अपमान समझना ही उनका अंग्रेजों को भागना उनका अगला पड़ाव था
वो कहा करते थे की सुख कभी भी किसी वस्तु से नही मिलता चाहे वो कितना भी आधुनिक हो बल्कि सुख काम से मिलता है वो काम जिसमे गौरव हो ।
मैं गाँधी के जीवन को बहुत बड़ा कह सकता हु पर बहुत सफल नही कह सकता क्योकि हिन्दुस्तानियो ने उनके जीवन से कुछ नही सीखा बस अंग्रेजों की तरह हम भी उनके जीवन से प्रभावित होकर उनको सुना पढ़ा और बापू बना कर छोड़ दिया।
अहिंसा का भाव एक धर्म के झुठे रखवाले के हिंसा से मारा गया , और यही बापू की सबसे बड़ी जीत थी ।
पर मेरे लिए इससे ज्यादा दुखद कुछ नही हो सकता ।
🙏
मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है।
- महात्मा गाँधी
मंगलवार, 12 मार्च 2019
"हम" से "मै" तक
उसकी गलती पे हमने सजा देकर उसको बरकरार बना दिया |
उसकी जिन्दगी की जरूरत दिखी,
उसकी गंदगी संसार को गैरत लगी,
साहब ने सजा सुना दिया,
कलम ने अपना गुरुर खो दिया,
जज साहब के दर्द को हमने रिवाज बना दिया,
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया |
नृत्य को कसरत बना दिया,
गीत को बत्तमीज बना दिया,
इश्क़ के नाम पे बीमार को आबाद बना दिया,
उसके नाम की कसमें लेकर ममता को बदनाम कर दिया |
चीखते चिल्लाते माइकवालो ने हमे जंग सीखा दिया,
किस्म हमारा एक है और किस्से हजारों बना दिया,
देश को 'लोगो" से नहीं 'जायदाद" से परिभाषित कर दिया |
अहम् लेकर चलने वाले राहत-चाहत सिर्फ लब्जों पे रख दिया,
क्योंकि "मैं" के आगे कुछ सोचा नहीं,
"हम" शब्द कभी सुना नहीं,
"मैं" बनकर "हम" को खोजते खोजते जिंदगी मिटा दिया |
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया ||
शुक्रवार, 18 जनवरी 2019
इंटरव्यू
समझ नहीं आता मेरी आवाज और मुझे ऊप्पर से नीचे तक देख कर आँखों में असहमति लेते हुए वो मेरी आवाज सुनना ही क्यों चाहता है | मुझे पता है की मेरी आवाज न तो लता जी जैसी है, न ही रफ़ी जी जैसी फिर भी उसकी आंखे मेरी आवाज को और बेसुरी बना देती है |
मेरे जवाब लिखित में ऐसा है ....
काश मैं ही सरकार होता ,
काश मैं ही आगाज होता
मेरे भी चेहरे बेदाग होते
और मैं ही राजकुमार होता
मेरे बाल भी लम्बे और सुनहरे होते
मैं भी आकाश की तरह ऊंचा होता
मेरे हाथ में एक त्रिशूल होता
और मैं ही शिव होता
काश मैं अंदर से जवान होता
और काश की मेरी आवाज में इतना डर न होता
काश की मेरे जूतों की आहटे तेरे हॉल में गूँजती
और तू एक बार मेरी तरफ भी देखता
काश मेरे लब सूखे न होते
मैं पालकी में बैठ के आया होता
पर दुबके समाज में पला
थोड़ा प्यार और गालियों के बीच बढ़ा
अच्छे काम पे ईर्ष्या भरी समाज संग चला
मैं सिर्फ एक लड़का हूँ |
मंगलवार, 15 जनवरी 2019
2018 : सिनेमा जगत
ये सब मेरी पसंदीदा फिल्में है जो बहुतों को पसंद भी है और बहुत सारे नामी क्रिस्टिक्स ने उन्हें भाव भी नहीं दिया | इस बार समय के आभाव में कहानी के निष्कर्ष नहीं बता पाउँगा बल्कि मैं उन्हें 10 में से रेटिंग दूँगा |
(नोट - 10 में से रेटिंग जो दूँगा वो कहानी में कितना दम है ( Storyline ), उसे दर्शकों के सामने कितने अच्छे से पेश किया गया है ( Screenplay) , सारे प्रमुख और सहायक अभिनेताओं की एक्टिंग कितनी अच्छी है ( acting ) और कहानी के निष्कर्ष में भी कितना दम है, पर आधारित है )
नोट- यहाँ सिर्फ अच्छे फिल्मों की ही लिस्ट है और उन्हीं में तुलना करके 10 में रेटिंग दिया गया है |
- Bhavesh Joshi Superhero 9/10
- Tumbbad 9/10
- Pihu 8/10
- Raazi 8/10
- Andhadhun 8/10
- Laila Majnu 8/10
- Bioscopewala 8/10
- Billu Ustaad 8/10
- 3 Storeys 8/10
- Manto 7/10
- Zero 7/10
- Padmavat 7/10
- October 7/10
- Tigers 7/10
- Hichki 7/10
- 102 Not Out 7/10
- Mulk 7/10
- Love sonia 7/10
- Mohalla assi 7/10
- Parmanu 7/10
- Padman 6/10
- Stree 6/10
- Omerta 6/10
- Baazaar 6/10
- Gold 6/10
- Badhai ho 6/10
- Kuch Bheege Alfaaz 6/10
- Baaghi 2 6/10
- Raid 5/10
- Blackmail 5/10
- Sanju 5/10
- Karwaan 5/10
- Sui dhaaga 5/10
- Patakha 5/10
- Sonu Ke Titu Ki Sweety 5/10
- Mitro 5/10
- Vodka Diaries 5/10
- Beyond the Clouds 5/10
- Hope Aur Hum 5/10
2018 वेब सीरीज के लिए भी बड़ा चर्चा में रहा, तो मैं कुछ वेब सीरीज का भी नाम दूंगा जो बहुत ही अच्छे सन्देश के साथ बना है और एक्टिंग करियर की दुनिया में क्रांति लाया है | अब लोगों को अपने शौक और जूनून को पूरा करने के लिए फिल्म इंडस्ट्रीज के अलावा कई प्लेटफार्म मिल गए है |
तो ये रहा कुछ अच्छे वेब सीरीज और उनकी रेटिंग -
- Sacred Games 9/10
- Inside Edge 8/10
- Breathe 8/10
- The test Case 8/10
- A.I.SHA: My Virtual Girlfriend 7/10
- Yeh Meri Family 7/10
- Girl in the City 7/10
- Apharan 6/10
- Love per square foot 6/10
रविवार, 25 नवंबर 2018
माटी
मैं भी माटी , तू भी माटी
है रंग रूप की कीमत माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
हर हथियार और हर पहलवान है माटी
हर गरीब , हर अमीर है माटी
हर रक्षक और हर भक्षक माटी
है मंत्री और संत्री भी माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
जो खाया सोया वो भी माटी
जो जगा और पाया वो भी माटी
जो बनाया और चमकाया वो भी माटी
जो निखरा जो पहना वो भी माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
कृष्ण बना तेरी माटी
या कंस बना तेरी माटी ?
धैर्यशक्ति की नीव पर मानवता का आधार है तेरी माटी ?
या लुटेरा शासनकर्ता सा दिखावटी एहसान बनी तेरी माटी ?
दलित भी माटी क्षत्रिय भी माटी
धर्म के काजी और ध्वज के काजी
सब है माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
आश्रय बना है तेरी माटी ?
या निर्लज अनंत लक्ष्य बना है तेरी माटी ?
कल्पना बना हुआ आलसी है तेरी माटी ?
या खुसबू बिखेरता हुआ हँसता है तेरी माटी ?
अर्थ अनर्थ की होड़ में लगा है तेरी माटी ?
या अक्ल और अवसर के साथ रौशनी भी खोजता है तेरी माटी ?
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
जिन्दा माटी से इश्क़ करता है तेरी माटी ?
या ख्याति खातिर धनवान मुर्ख है तेरी माटी
उचित अनुचित की पहचान तो कर
शासन छोड़ कर लोगो से प्यार तो कर
जाने कब हो जाये तेरी माटी , माटी माटी ?
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
बुधवार, 7 नवंबर 2018
शुक्रवार, 7 सितंबर 2018
Queer - No More
राते अपनी थी
अब दिन भी अपना होगा
खामोशियाँ थी
अब शब्द भी अपने होंगे
शराब था अब जिफाफ़ भी अपना होगा
शर्म थी अब शरारत भी अपना होगा
अब तक हम अधूरे थे, अब मुकम्मल हो चुके है
आओ साहेब-ऐ -आलम
अब ये जहां भी अपना होगा |
#377_verdict ( 6th-sept-2018 )
#Supreme_court
( Pic Credit- Wikipedia with edited by me )
मंगलवार, 10 जुलाई 2018
मै दलित सा महसूस करता हुं
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़की लड़के से प्यार का इजहार करती है
वो डाट कर अपनी सहेलियों को भगा देती है
और कहती है खबरदार जो हम दोनों के बीच में कोई आये
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़का लड़की के प्यार में दीवाना हुआ होता है
वो कहता है की मेरी जिंदगी भी तुम और दीवानगी भी तुम
वो पांच रूपये के लिए दोस्तों पे बेरहमी दिखाता है
और लड़की पे हजारो खर्च कर रहम की मांग करता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़का एक छोटी सी गलती पे भी
अपने प्यार से हजार बार माफी मांगता है
और हजार गलतियों पे भी साथियो को आँख दिखाता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब कोई गुस्से में पागल होकर सबको मार डालने की बात करता है
और प्यार के गुस्से को न झेल पाने पर आत्महत्या की बात करता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब पास बैठे प्यार को मनाने के लिए हजारो प्रयास करता है
और वही पास बैठे दुखी साथी को खुश होने का ज्ञान देता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब कोई हर लड़की को फूल सा नाजुक जानकर
खुश्बू मांगता है या छीन लेता है
और कोई हर लड़के को पठार दिल समझता है
और गाली बक जाता है ,ये तो झेल जायेगा
मैं दलित सा महसूस करता हु जब कोई एक से प्यार करता है
इजहारे तादाद में सौ कसमे वादे करता है
और एक दूसरे को ही अपना संसार मान लेता है
मैंने भी किया है एक से प्यार
उसने सबसे प्यार करना सिखाया है
और तब मैं दलित सा महसूस करता हु जब दो जोड़ो को हजारो के बीच
एक दूसरे में ही गुम देखता हु
#वसुधैवकुटुम्बकम
शुक्रवार, 4 मई 2018
आवाज़ 3
पुलिंदे तो झूठ का होता है
सच्चाई में सिर्फ गहराई होती है
इजहार ऐ ताकत पे गौर नहीं करो
ताकत तो झूठ का भी ज्यादा होता है
इंतजार-इ -हद भी होता है
इसलिए
उसके वादे का अब मुन्तजिर नहीं
काफी समय बर्बाद भी होता है |
बारिशे आगाज लाएंगी
कस्ती तो वहां डूबेगी
जब फुल ही मुरझाया हो
किचडो के बीच से कमल भी निकलता है |
मुझे तलाशो
मैंने बुद्धा को तराशा
तुम हिन्दू मुस्लिम करते हो
मैं तो महावीर था
तुम बाहुबली से अब लिपटे हो
मैं मिथिला की सीता थी
जहा प्रेम पत्तो सा यु झड़ता था
अब नफरत की उबाल वहाँ पर
इंसान इंसान को मारते हो
मैं पराक्रमी और शांतिदूत अशोक था
तुम सहाबुद्दीन मक्कारो से डरते हो
अब भी अगर ढूंढ न सको तो
याद करो तुम कुंवर को
खुद का मान भूल चुके हो तो
सम्मान कर लो देश-रतन को
गुस्से से लौटो तुम
अब बहुत जल चूका हु मैं
दंगो से तुम वापस आओ
मैं बिहार, मुझे बचाओ
तुम सब में ही मर रहा हु मैं |
मुझे मेरी बातो में खोजो
मै कौन और कहा हूं
मेरी आलेखो में खोजो
छोड़ो ये फरियादी रिश्तेदारियां
मुझे बस मुझमें खोजो
8. तू तू मैं मैं था
गठीले हाथ और हथियार था
दो दल और फौज था
सबमें अक्ल और अकबर था
सबपे अवसर और अख़बार था
हम दोनों दुश्मन थे
आखिर में आक़िबत ये हुआ
की हम हार गए
क्युकि उनके दल में एक हँसता हुआ नूर था
9. हम सगे की दौलत पे
मौसिकी का मज़ा लेते रहे
और मुद्दते बाद तक
हम उनको बख़ील कहते रहे
रौशनी की अति ने
हमसे हमारा छाया छीना
हम जिफाफ़ के लिबास में जिस्म उड़ाते रहे
आज हमारा पाला अपने साये से जो पड़ा
आह की आहट से सगे को पिता का तबका मिला
गुरुवार, 22 मार्च 2018
मैं बिहार
मुझे तलाशो
मैंने बुद्धा को तराशा
तुम हिन्दू मुस्लिम करते हो
मैं तो महावीर था
तुम बाहुबली से अब लिपटे हो
मैं मिथिला की सीता थी
जहा प्रेम पत्तो सा यु झड़ता था
अब नफरत की उबाल वहाँ पर
इंसान इंसान को मारते हो
मैं पराक्रमी और शांतिदूत अशोक था
तुम सहाबुद्दीन मक्कारो से डरते हो
अब भी अगर ढूंढ न सको तो
याद करो तुम कुंवर को
खुद का मान भूल चुके हो तो
सम्मान कर लो देश-रतन को
गुस्से से लौटो तुम
अब बहुत जल चूका हु मैं
दंगो से तुम वापस आओ
मैं बिहार, मुझे बचाओ
तुम सब में ही मर रहा हु मैं |