सोमवार, 15 सितंबर 2025

Tum hoti toh kaisa hota

तुम होती तो कैसा होता

तुम होती शाम जल्दी नहीं ढलती

तुम होती तो मैं रात तुम्हारे लिए शाम बनाता

तुम होती हवाएं भी दिखती

तुम होती हर घर घर लगता

तुम होती तो हमारा घर तुम्हारा होता 

तुम होती तो हमारे घर की दीवारें भी तुम्हारी आदेश सुनती

तुम होती तो दुनिया की सारी जमीं तुम्हारा इंतेज़ार करती

तुम होती तो हमारा एक गार्डेन होता

उस गार्डेन में फूल भी तुम्हारी नाम की होती

तुम होती चांद हर रोज तुम्हारी राह देखता

तुम होती तो हम किस्से बनते

तुम होती तो हम बहुत खुश होते

तुम होती तो तुम जब भी रोती वो आंसु सिर्फ मेरे हाथों पे गिरती

तुम होती तो 'क्यू' ये सवाल कभी नहीं आता

तुम होती तो मैं खूब पीटता 

तुम होती तो मैं तुम्हें जानबुझकर कभी कभी नाराज़ करता

तुम होती क्या क्या बोलूं , सब होता

तुम होती तो रानी होती

पर मैं राजा कभी नहीं बन पाता

मैं सेवक बनना चुनता

तुम, सिर्फ तुम

बुधवार, 10 सितंबर 2025

why you left

I never prayed before,
but I began
because losing you
was never an option.

I never believed in wishes,
yet I whisper
najar na lage,
protect us, somehow.

I danced in silence,
perfecting myself,
For the occasion when stage will be you,
and the my audience
only you.

I cared too much,
sometimes it bothered you,
but my only vow was
to keep every pain
away from you
while I breathed.

I had never begged for anyone,
but with you I said "please",
because my aura dimmed
in your presence.

Even now,
I plead with the universe
to bend destiny once,
just once.

But perhaps you wished me gone
so fiercely
that my prayers,
my efforts,
my everything
fell unheard.

But why ?
Would you able to answer yourself atleast?

मंगलवार, 9 सितंबर 2025

उठूंगा मैं भी एक दिन

उठूंगा मै भी एक दिन
इस बार आऊंगा मैं कृष्ण से भी आगे बढ़कर 
ताकि मुझे कोई राधा को छोड़ना न पड़े
एक साथी के रूप में आऊंगा मैं
बिना रुक्मिणी साथ लिए
एक सेवक के रूम पे आऊंगा मैं राम से आगे निकलकर
सीता का सेवक , इस बार आग की ज्वाला पूरे शहर में जल जाए और इस बार की परीक्षा सीता लेगी
आऊंगा मैं जुड़ते हुए शिवा से भी आगे
मेरी सती सिर्फ मेरी होगी 
उसे पाने के लिए मैं किसी की आज्ञा नहीं बल्कि आगाज करूंगा
नहीं बंटेगी मेरी सती इस सांसारिक कल्याण में
उसका आंचल भी जल जाए तो शहर पहले खाक होगा
उठूंगा मै जरूर उठूंगा 
दिखाऊंगा मै तुमको कैसा है मेरा प्रेम

तुम

सौहार्द से उठी माया का ही एक रूप हो,

आँचल में छुपी स्वार्थ की कपटी धूप हो।

जो मेरी आँखों में कभी टिककर देख न सका,
वो अपनी आँखों में काजल कैसे सजा पाएगा?

जिन लबों से मीठे झूठ थकते नहीं,
उन बातों पर भरोसा करना मेरा गुनाह कब हुआ?

तुम वही माया हो—
जो टिकती नहीं, जो ठहरती नहीं।

जिस दिन तुमने खुद को सच में ढूँढा,
तुम्हें अपना अस्तित्व खोखला लगेगा।

फिर ये रंग, ये रूप, ये नैन और चैन—
जिनकी मैं तारीफ़ करता आया हूँ, और करता रहूँगा,
वो बस मुझ तक सीमित रहेंगे।

कभी तुम खुद को इस खूबसूरती में देख न सकोगी,
क्योंकि तुम माया हो—
और माया ही बनी रहोगी।

बाजार में उछला इश्क़ की क़ीमत

बदनामी से डरना कब का छोड़ चुका था मैं 
इस बार बदनामी मेरी नहीं मेरी इश्क़ –ए–नियत की हुई 

प्रलय के दिनो में

सोचता हूं,
क्या होगा जब प्रलय होगा,
तो क्या होगा,
क्या तुम स्वयं को अर्पित कर दोगी?
क्या जिसे तुम चाहती हो,
वो भी प्रलय के भय से काँपता रहेगा?
माना अगर कोई देश बचाएगा,
तो जरूर कोई तुम्हारा गांव भी बचाएगा  |
कोई प्रावधान लायेगा,
कोई विमान लायेगा,
कोई हार बचाएगा,
कोई उपहार बचाएगा,
समस्या पूरी रही तो,
कोई राग और दरबार बचाएगा |
कोई समाधान लायेगा,
कोई भोज बचाएगा,
कोई प्रयोग बचाएगा,
मैं वही खड़ा मिलूंगा,
प्रलय के दिनो में,
मैं वो तुम्हारे सारे ख़त बचाऊंगा ||

शनिवार, 23 अगस्त 2025

हसदा हुआ चेहरा

मुझे उससे उसकी शिकायते करनी हैं,

मगर शिक़ायतों के बीच

उसका हँसता हुआ चेहरा

मेरी साँसों जितना ज़रूरी है।


कभी मेरी वजह से उसे डाँट पड़े 

पर मेरी चाहत कहती है

कि उस डाँट की परछाई में भी

मैं बस उसका हँसता चेहरा देखूँ।


मुझे उससे कुछ अहम बातें कहनी हैं,

पर उन बातों से पहले

उसकी मुस्कान देख लेना

जैसे कोई दुआ पूरी हो जाना है।


मैनूँ उसदी गल सुननी है,

पर मैनूँ उसदी हँसी नाल ही जीना है।


प्यार की बातें करनी हैं उससे—

उन लफ़्ज़ों में वो हैं थोड़ी नासाज 

मगर उसके हँसते हुए चेहरे के सामने

हर ख़ता भी रौशन लगती है।


तो ऐ दिल, अब ख़ुद को रोक ले,

क्योंकि वो—

बस यूँ ही मुस्कुराती रहेगी,

और तेरी तमाम शिक़ायतें

उसकी मुस्कान में पिघल जाएँगी।


और सुनो...यही सीख मैने सीखा।

बुधवार, 20 अगस्त 2025

तुझमें रब दिखता है

तुमसे मिला मैं,
अभी अभी
प्रेम सीखा,
अभी अभी
खुद को जाना,
अभी अभी
फिर समझा,
नादानी अपनी,
अपनी बेवकूफी,
अभी अभी
तो अब डर लगा,
अभी अभी
फिर रब को ढूंढा,
अभी अभी
तुम मेरा रब,
मेरी इबादत तुमसे ही,
ईश्वर पाया,
अभी अभी

तुझमें रब दिखता है

तुमसे मिला मैं,
अभी अभी
प्रेम सीखा,
अभी अभी
खुद को जाना,
अभी अभी
फिर समझा,
नादानी अपनी,
अपनी बेवकूफी,
अभी अभी
तो अब डर लगा,
अभी अभी
फिर रब को ढूंढा,
अभी अभी
मेरा रब मुझे दिखता है,
मेरा रब मुझसे बाते करता है,
मेरा रब आजाद है,
मेरा रब मेरा ख्वाब नहीं,
मेरा रब यथार्थ है, मेरा रब सावधान नहीं,
मेरा रब मुझे नूर, संगीत सिखाता है,
मेरा रब मेरे साथ है,
मैं और मेरा रब अब एक है,
ये सब मै जाना,
अभी अभी
तुम मेरा रब,
मेरी इबादत तुमसे ही,
ईश्वर पाया,
अभी अभी ||

रविवार, 20 जुलाई 2025

य़ु ही - ३

भरोसे का ताज माँग रहा हूँ,
मुझे मालूम है,  सबसे कीमती जाम माँग रहा हूँ।
इस मोड़ पर बस इतना ही कह सकता हूँ मेरे दोस्त,
तुम्हारे सारे कत्ल की जंग सिर्फ़ मेरे अंदर होगी।

गुरुवार, 17 जुलाई 2025

प्रेम एक इबादत है

गुज़ारिश
हर उस शख़्स से...

हर उस शख़्स से एक गुज़ारिश है,
जिसका प्रेम अधूरा, जिसकी चाहत ख़ामोश है।
कभी पल भर ठहरकर सोचना,
क्या प्रेम वाकई थम जाता है
जब वो मुकम्मल नहीं हो पाता?

अगर प्रयास न सफल हुए तो क्या,
क्या आत्मा को यूँ सौंप देना ज़रूरी था?
जब नई शुरुआत ग्लानि से हो,
तो रिश्ते की नींव ही कमज़ोर होती है।

आपके और उसके बीच कोई और भी है,
जो चुपचाप, पूरे मन से प्रयासरत है।
क्या उसका समर्पण प्रेम नहीं कहलाएगा?
क्या उसका मौन कुछ नहीं बतलाएगा?

अगर प्रेम सच्चा है,
तो डर कैसा किसी और के समर्पण से?
कहीं मोह को तो नहीं धारण कर लिया
या प्रेम में भटक रहे हो चुपचाप?
मोह आता है, जाता है
प्रेम ठहरकर तप बन जाता जा
मोह में आकर्षण,प्रेम में समर्पण।
प्रेम में करुणा है
प्रेम में शांति है
वो दरवाज़ा नहीं जो बंद हो जाए,
वो दीप है 
जो औरों की राह भी दिखाए ।

प्रेम ही परम सत्य है,
प्रेम ही अनंत है,
प्रेम ही ब्रह्म है,
प्रेम ही बुनियाद है 
और प्रेम ही इबादत है।

शनिवार, 7 जून 2025

इंतज़ार

नाज है आप पे कभी खुद को इजाज़त दी कि चलो इश्क किया जाए ,
पर अब उस शख्स से कैसे मिला जाए |
पूछता की क्या क्या प्रयत्न करूं 
क्या सँजो लाऊँ, कौन सी राह चुनूं,
क्या दुआ, क्या फ़न, क्या इबादत करूं |
फिर से तुम्हारी आंखों में नूर लाया जा सके,
वो मुस्कान बेअदब और थोड़ा फिक्र लाया जा सके,
आपके दिल पे दस्तक दिया जा सके |
तानी जी मोहब्बत आसान नहीं होता मालूम मुझको, 
पर मैं बस कोशिश में हूं, शायद कोई करम हो सके |
जब भी आपकी तस्वीर नजरों से छूता हूं, 
आंखों में देखता हुँ |
इस उम्मीद में की आंखों से इशारा बस मिल सके,
 की फिर से आपके दिल का दरवाजा खुल सके ||

तानी जी – name take from movie 'Rab ne bana di jodi,


शुक्रवार, 21 जून 2024

समझ नही आ रहा

जब समझ न आए क्या सही क्या गलत
तो एक अपना वाला राग सुनो
हल्के हल्के आंखों से सो जाओ
जब समझ न आए क्या आरंभ है और क्या अंत
तो एक हल्के वाला धुन सुनो
और नींद में खो जाओ
क्योंकि जब कुछ समझ ना आए 
तो एक चीज समझ लेना की तुम समझना चाहते हो
तो स्वरूप में तुम्हारी नरमी और परख है जो जरूरी है

मंगलवार, 26 सितंबर 2023

कुछ ऐसा हो जाये

कुछ ऐसा हो जाये,

कुछ वैसा हो जाये, 

ये कमजोर जीत जाये, 

ये बलवान हार जाये, 

ये सच सच न रहे, 

ये झूठ सच हो जाये, 

इसे जीवन मिल जाये, 

वो स्वस्थ मृत्यु हो जाये | 

ये तार्किक तो नहीं,

पर ये ज्यादा सौम्य हैं, 

ये क़ानूनी ठीक तो नहीं,

पर ज्यादा वाज़िब है, 

ये समुचित तो नहीं, 

पर यही न्याय है, 

तो मौन हो जाओ | 

सब समय के साथ अनुचित हैं,

मौन हो जाओ | 

क्योकि,

वही होगा || 

बुधवार, 19 जुलाई 2023

इश्क़ हुआ

 अभी अभी पूरा खाली हुआ था मैं

उसके शब्द और वक्त भूल चूका था मैं 

अभी वापस से सीने में कोई हलचल नहीं थी 

अभी अभी दिल सुख चूका था

तुम आई 

बड़े हौले से, अचानक से, सहूलियत से 

इनकार का समय नहीं दिया

इकरार पहले कर लिया 

कुछ पूछा नहीं बस हसी और चली गयी 

फिर से हलचल इस सीने में 

इश्क़ हुआ 

बुधवार, 5 अप्रैल 2023

मैं बोल ना पाया

तुमसे हमेशा मैं जहोदत्त  करता रहा 

तुमसे बेखबर और बेफिक्र मैं इश्क़ करता रहा 

तुमको पा लूं ये मैं इल्तेजा करता रहा

पर तुमसे एक रौशनी सी उठती जब मैं करीब आने की कोशिश करता 

और मेरी धड़कन की गति मेरी जुबां पे हावी हो जाती 

सो मैं बोल ना पाया 

तुम इतनी भोली सी लगती हो 

तुम्हारी जमीं पे मुझे धूल नजर ही नहीं आती 

और तुम्हारा आसमां इतनी रंगीन है की 

मैं सिर्फ एकटक निहार ही पाता हूँ 

मेरा वजूद तुमसे हमेशा अलग नजर आया हैं 

मेरी जमी और आसमां मैला नजर आया हैं 

सो मैं तुमसे बोल ना पाया 

तुम्हारी ये कानों की बालियां जो हमेशा हलकी सी डोल जाया करती है 

तुम्हारी बिखरती ये जुल्पे जो हमेशा लहराते हुए दीखते हैं 

तुम्हारी ये आँखे जो अमूमन मुझे सबसे बेहतर नजर आये 

तुम्हे मुझसे काफी अलग कर देती हैं 

लोग बोलते हैं तुम एक लड़की हो और मैं एक लड़का 

तो तुम मुझसे इतनी अलग हो की 

मैं तुमसे बोल ना पाया

तुम बोलती हो तो एक संगीत सी लगती हैं 

तुम्हारी अंरेज़ी मेरे पल्ले नहीं पड़ती है 

जो मैं  तुमसे बोलना चाहता हु 

थोड़ी बहुत सीखी है तुम्हारी भाषा 

पर कम्बख्त मन से जुबां तक आते आते रूखे सूखे हो जाते है वो शब्द 

फिर मैं तुम जैसा थोड़ा बन नहीं पाया 

और मैं तुमसे बोल ना पाया



शनिवार, 4 मार्च 2023

स्मृति

रूठी हु मैं तुझसे,
तू मुझे मनाता क्यूं नहीं,
बहुत खामुश सी रहती हूं मैं अब,
मेरे नखरे पहले से बहुत कम हो गए है,
फिर भी प्यार जताता क्यूं नहीं,
अश्क़ और इश्क़ सब अब इंतेज़ार में हैं,
गैरत कब से आ गया तुझमे,
लोग मेरी हया पहचानते भी नहीं,
दरवाजो से तेरी गुगुनाहट आती क्यूं नहीं,
अक्ल और इबादत कुछ भी रहा नही,
तुम मेरी पहचान दुनिया से अब कराते क्यों नहीं,
उंगलिया अब ठंडी पड़ चुकी है,
हाथ आगे बढ़ाता क्यू नहीं,
बेवफ़ा लगता है तू मुझे,
पर लोग मानते ही नहीं,
इन लोगो की वजह से वफ़ा है तुजपे,
पर तू सामने आता क्यों नहीं,
मुँह फेर कहा चला गया तू,
आकर पास सीने से लगाता क्यू नहीं,
शाम अब होती क्यू नहीं,
कोई राग तू सुनाता क्यों नहीं,
कब तक मुस्कुराते हुए दीवारों से लिपटा रहेगा, 
रोज एक ही फूल से ऊबता क्यू नहीं | | 


Pic- generated via using AI

गुरुवार, 9 फ़रवरी 2023

किस्से

कभी–कभी कुछ किस्से अधूरे रह जाते हैं
वहीं अधूरापन ही उसे किस्सा बनाते है
अधूरेपन में सिर्फ उसकी यादें होती हैं
और उसकी यादें ही किस्से बुनती हैं 
उसका अचानक से जीवन में आना
एक हसीन लम्हे बिताकर चले जाना
सिर्फ उसके लौटने का इंतजार और वही खालीपन
न अजनबी और ना ही दोस्त बनकर जाना
पर दिल के करीब बस जाना
ये सब यादों के किस्से हो जाते है
एक हसीन किस्सा
क्योंकि इतने कम वक्त में सिर्फ अच्छी यादें ही बनती है
तुम्हारे हिस्से के किस्से ऐसे ही बनते हैं 

बुधवार, 11 जनवरी 2023

गुरुवार, 5 जनवरी 2023

मैं झूठ बोल देता हूं

 मैं झूठ बोल देता हूँ 

जब भी गम में दिल भारी होता हैं 

गम पे खबर लेने वाले पूछ लेते है 

बताते–बताते आगे निकल आता हूं 

मैं झूठ बोल देता हूँ 

मेरा जिंदगी में सादगी बहुत हैं 

जिंदगी में ठाट बाट भी अच्छा लगता है मुझे 

पर सादगी पे मोहित लोग की वाह में 

अक्सर झूठ बोल देता हूं

मुझे नाचना पसंद है 

गाने का शौक उससे ज्यादा है 

सुरीली बोल नहीं है 

तो झूठ बोल देता हूं 

कुछ मेरी कामयाबी पे मेरी प्रसंशा करते हैं 

उसमे चार चाँद लगाने में झूठ बोल देता हु मैं 

मेरी हार पे लोग मेरे साथ होते हैं 

उन लोगो के सामने हार का मैं तिरस्कार करता हूँ 

और फिर झूठ बोल देता हु मैं 

हर पल हर भावना में मैं खुद को खोल देता हूं

फिर एक नया झूठ बोल देता हूं

मैं खुद के साथ बहुत सच्चा हूं

इस सच्चाई के अभियान में झूठ छुपा देता हूं

मैं अक्सर झूठ बोल देता हूं



मंगलवार, 4 अक्टूबर 2022

सामाजिक रिश्ते

 समय और परिवेश अलग है 

खून के रिश्ते आज बहुतो के कोसो दूर है 

रिस्तेदारो की तरह मिलना होता है उनसे 

फर्क सिर्फ उतना है की घर अपना होता है 

तो फिक्र और फर्क दोनों देखने पड़ेंगे 

रिश्ते हमे ढूंढने पड़ेंगे 

पैसे हमे असीमित कर हिसाब छोड़ना होगा 

हमे बाकि लोगो में दोस्त ढूंढा पड़ेगा 

परिवार ढूंढना पड़ेगा 

परिवार सा बे-हिसाब रहना पड़ेगा 

अर्जित धन लूट जाये तो ग़म नहीं करो 

अर्जित लोगो से अगर विचार और परिवेश मिल रहे है 

तो उनपर खुद को लूटना पड़ेगा 

यही होगा एक अच्छा जीवन 

सार्थक जीवन की तलाश छोड़ दो 

ये तलाश हमे खुद में अहम बनाती है 

हमे खुद को बहुत आम और आसान बनाना होगा 

जो सही लोगो का साथ कभी न छोड़े 

गलत लोगो का साथ छोड़ने में न कतराए 

जिंदगी में लोगो को आने जाने को रास्ता आसान रखना होगा 

जीवन बस एक जीवन बन कर ही रहना होगा 

इसी जीवन के लिए सही और गलत लोगो की पहचान देखना होगा

दोस्तों को परिवार ही समझना होगा 



शनिवार, 14 मई 2022

सामाजिक जीवन

शामे ए महफिल खफा ए दौर
दीदार ए इश्क इजहारे खफत
ये सब ढेर समय और कम वक्त देती है
कुछ दिन और राते तड़पन की छोड़ दो
वही ठहरो और जियो,  वरना भाग चलो
खफा ए मजलिस में हथियार और जाम दोनो हो सकते है
तल्ख़ जुबान और मुजरिम करार भी हो सकते है
तो इससे अच्छा की कम वक्त में नई गली चले
और ढेर सारा समय जो है वो जाम और मौसिकी के नाम करे

साहस

साहस हमेशा वाजिब नहीं होता
दुःसाहस भी एक साहस है

शुक्रवार, 13 मई 2022

मैं और मेरी मोहब्बत

जिससे मुझे बेइंतहा मोहब्बत है
मैं आज उसका जिक्र लिखता हु
दिल में जज्बात और इजहार में पेचीदा जो है
मैं आज उसका भूगोल लिखता हु
कमजोर पर रेशमी जुल्फें है उसकी
गालों पे तिल का दुकान जिसकी
कभी मरीज तो कभी मर्ज है किसकी
हर लैंगिक इंसा से प्रेम आगाज पर अमल है उसकी
सिनेमा को असल में जीना चाहता है वो
भावना का समंदर है जो
लंबी थड़ और नुकीला कंठ
लाल तिल कंधे पे और काला तिल जांघ पे
ऐसे बहुत से सौंदर्य है जिसकी
आज मैं उसका स्वभाव लिखता हु
है तो वो बहुत नरम पर क्षणिक क्रुद्ध विकार है जिसकी
लोगो को खुश करना एक जोकर सा पहचान है उसकी
क्षण भंगुर दिल फेक आशिक वो, सख्ती पहचान नही जिसकी
एक इंसान के प्रेम में हजार बार टूटा बिखरा पर सम्हला
पर अब प्रेम में सिर्फ सुकून और उत्साह ही तकदीर है उसकी
गरीब और अमीर की शब्दावली खराब है जिसकी
इंसान में मजहब पहचान की नजर कमजोर है उसकी
बहुत कुछ बदलना चाहता है वो पर आलस्य भी एक पहचान है उसकी
बहुत बड़ा डरपोक है वो जो इम्तिहान और आकाश की ऊंचाई से डरता है
पर धमकी और हथियार पर साहस ही पर्याय है उसकी
हंसी और अमन से असल इश्क
लोगो के साथ जीना और अकेले में खुद से इश्क करना
लिखना और सीखना ही साक्षरता की पहचान है उसकी
खुद से इश्क इबादत है उसकी
ये खुद मैं हूं जो खुद से खुद का जिक्र लिखता हु
मैं खुद से ढेर सारा प्यार करता हु


गुरुवार, 12 मई 2022

यादों की बारात

जिंदगी में अगला पड़ाव क्या है
जो भी जिए है उसका आज में क्या है
किसी की लहू, किसी का नमक और किसी का शरीर
मेरे अंदर है
मेरे कल में इनका वजूद क्या है
जो कल में मैंने अपना खोया वो यादों में है 
पर मेरी यादें अकेले में क्यों है
मेरी यादें रातों में ही क्यों है
मेरी यादें मेरी लिखावट में ही क्यों है
कल में मुझे किसी के साथ हंसना है
कल में मुझे किसी के साथ चलना है
कल में मुझे किसी का नौकर बनना है
किसी के मोह और किसी के लिए ममता लाना है
मैं कल में अकेले नही हूं पर फिर मेरी यादें मेरी लिखावट कल में अकेले क्यों है

मंगलवार, 3 मई 2022

अपराध और पश्चताप

रोना कोई पश्चताप नही
रोना कभी जवाब नही
रोना कोई समाधान नहीं
रोना एक आभूषण है जीवन का
रोना एक दवा है शरीर का
जो हमे राहत और बेकसूर बनाने की साजिश करता है
अपराध का पश्चताप, भावना का प्रकट होना नही
अपराध किसी माफ़ी के पीछे नही छुपता
तो आंसू सिर्फ एक भावना आभूषण है
अपने दर्द में रोना आता है पर सिर्फ यही एक बेबसी है
सिर्फ आंसू एक नाकाबिल पहचान है
दूसरो के दर्द में रोना एक अनुराग है
पर सिर्फ यहीं ?.....एक पाखंड है
कोई दूसरा किसी तीसरे के रोने का वजह हैं
तो कही कोई तीसरा के साथ एक अपराध हुआ है
पहला और दूसरा दोनो रो सकते है
दोनों झुक सकते है
पर यहां इनकी मिठास और माफ़ी अपराध कम नहीं करती
अपराध हमारे अनुशासन की ही कमी है
इसलिए अपराध सिर्फ अपराध है
अपराध और भावनात्मक पश्चताप का कोई मेल नहीं ।
 

बुधवार, 23 मार्च 2022

तुम्हारे बाद मैं और जीवन

दिल सम्हल गया था
मेरी कविता नाराज़ थी
और यही थी खामोशी की वजह
फिर दिल टूटने और सम्हलने के बीच में को जिया
वो नज़्म जैसा नहीं रहा पर देशी जाम जरूर रहा
सो देसी जाम का नज़्म उन्ही जिन्दगी के नाम ये रहा...

तुम चली गई,
हमारी हिम्मत और तुम्हारी खामोशी
एक नई मोड़ दे गई,
तुम्हारा जाना और मेरा सम्हालना मेरी बर्बादी लाया,
तुमको भूलना और मेरा नई कल्पना मुझे जिद्दी बनाया,
प्रणय भूल गया और उकसू चरित्र मुझे अधीर बनाया,
किसी की मजबूरी पर अपना हक जताया,
देह से प्रेम में उतावला हुआ,
वो झूठा प्रेम मेरी इबादत बना,
तेरे जाने के बाद मेरी इबादत भी झूठा हुआ,
पागल बना, जिस्म उड़ाया
आत्म प्रेम सिख न पाया
भोग विलास सा जीवन पाया,
न एतराज, न इकरार, न मोहाबत इजहार हुआ
फिर भी मैने प्रेम किया,
एक झूठा प्रेम किया |
तुम चली गई पर आज शिकायते लाया हु,
अब कौन सिखाएगा प्रार्थना मुझे,
कैसे खोजू प्रणय प्रेम,
कैसे दौडू प्रेम खोज में,
कैसे बताऊं इस खोज में हूं मैं,
कैसे सीखू करुणा ज्ञान,
कैसे जानू उत्साह राग,
किसको खोज के गुनगुनाऊं,
जिसका छुप कर एहतमाम करू,
क्यों सवारू मैं और कैसे करू,
नई तुम मै कहा बनाऊं,
इस राग को बस तुम पढ़ लेना,
इस इक पल का प्रेम बस कबूल लेना,
अभी भी मेरा प्रेम तुम हो,
मुझसे और मेरा प्रेम आजाद रहने देना ||

शुक्रवार, 28 जनवरी 2022

समय की माया

क्या सही क्या गलत
क्या अच्छा क्या बुरा
सब समय की माया है
किसी समय में लड़का लड़की साथ दिखे तो झटका था
आज समय में इन दोनो का मिलन एक सवेरा है
कभी बारिश की बूंदों ने मेरे खेत डुबोया था
आज वही बूंदों ने मेरे खेत लहलहाए है
कभी मनुज जाति शक्ति से स्थिर तंत्र बुने थे
आज वही जाति व्यस्था अस्थिर का पर्याय है
कभी लिंग और लैंगिकता दोनो एक होना अनिवार्य था
आज पुरूष एक पुरूष से काम भावना जाहिर कर सकता है
कभी लोहे के छर्रो ने हमें खतरो से बचाया था
आज वही छर्रे लोगों के लिए खतरा है
कभी गर्भपात एक हत्या का प्रकार था
आज यही दुर्वहन समय सीमा में सुचर्चित है
सब समय के समक्ष हैं
सही गलत और अच्छा बुरा
सब समय की माया है




मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

केवल प्रेम ही विकल्प हो सकता है

(एहतियात– मुझे/तुम्हे शब्दों को सावधानी से पढ़े)

मुझे तुम्हारी जरूरत है...
हो सकता है तुम्हे मेरी नहीं
काली राते नागवार हैं मेरे लिए
हो सकता है तुम्हे रातों में रौशनी नापसंद
मुझे एकांत पसंद है
हो सकता है पंचायत पसंद हो तुम्हे
तुम्हे महिमा मंडन पसंद नहीं
मुझे लग सकता है की महिमा प्रसार हो
मुझे नारीवाद होना अच्छा लगता है
हो सकता है तुम मानवता में अव्वल हो
मुझे साम्यवाद पसंद है
हो सकता है तुम्हे समाज में उथल पुथल न पसंद हो
पर मुझे चोटिल होना पसंद नहीं
हो सकता है नारीवाद साम्यवाद में ये मुमकिन न हो
हो सकता है मानवता और स्थिरता में ये मुमकिन हो
मुझे रातों में चलना पसंद है
हो सकता है तुम्हे रात में स्थिर होना हो
वो नाकाबिल है पर जायज है गर वो सफल हो
वो काबिल है पर जायज नहीं गर उसे नाकाबिल जायज न लगे
इसलिए 
हो सकता है तुम अस्थिर हो
मुझे लग सकता है तुम स्थिर हो
तुम्हे पश्चिम दिशा पसंद नहीं
पर तुम्हारा घर मेरे घर के पश्चिम में है
तो हो सकता मेरा पसंदीदा दिशा पश्चिम हो
क्योंकि मुझे तुम्हारी जरूरत है
और हो सकता है तुम्हे मेरी नहीं
हमारी पसंद, विचार अलग हो सकते है
हमारी पहचान, काम अलग हो सकते है
पर नफरत के लिए ये सब भी काफी नहीं
हो सकता है प्रेम विकल्प इसके बाद भी हो...

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

आप और तुम

उसका "आप" बोलना उसकी मासूमियत थी
मैं अपने "तुम" में अपने गवारेपन की नाज पे था

वो दशवी पास बहुत जिम्मेदार थी
मैं ग्रेजुएट उसका माथा भी नहीं चूम सका

मैं उसको अच्छा लगा तो उसने मेरा हाथ थामा और मुस्कुराया
मैं सहमा सा शाम की राह देखता रहा

मेरे को अच्छा समझी वो और गले से लगाया
मैं मौके की गिरफ्त में उसकी आंखो में देख भी न सका

"आप मुझे दुबारा मिलोगे" की उसके सवाल में 
मैं लेटा "तुम" की नशे में एक झूठा वादा भी न कर सका

हुई थी हमारी बात फिर कई रोजो बाद
इतने दिनो में मेरा गवारापन "तुम" और "आप" की दूरियां नाप रहा था
वो पूछी "आप कैसे है"

मेरे गवारेपन ने उसके बॉयफ्रेंड के बारे में पूछा
उसने मुझे अपने स्कूल वाले प्यार के बारे में बताया
और पूछा अब कोई ऐसा होगा जो ऐसा प्रेम कर सके

वो सुंदरी जिंदगी में जीना जानती थी
मैं सहूलियत खोजते खोजते जी भी न सका था

उसने मुझसे पूछा शादी करोगे आप मुझसे
मैं हंसा और कुछ न बोला

बुधवार, 10 नवंबर 2021

आ सखी चुगली करें

आ सखी चुगली करें..
इधर उधर की बाते करें

आ सखी चुगली करे...
हम सात समंदर साथ चले
करे बाते खूब ढेर सारी
कह दो की बरकत करे
आ सखी चुगली करे

संभावनाओं का खेल खेले
पैसों का व्यापार करे
मन भर का उपहास करे
आ सखी चुगली करे

गरीबों के साथ सोए
अमीरों के साथ जगे
पानी के साथ बहे
जिंदगी की कस्ती खोजे

तू भूल अपनी गरिमा
मैं भूलू अपनी महिमा
एक नाव में करे सवारी
चल कहीं दूर चले
तलवारों की प्लेट बनाए
फूलों की महक सजाएं
चांद से करें शिकायते
सूरज को पीठ दिखाए
तू मेरी पूजा कर
मैं तेरे से इबादत सीखू
आ भूल जाए अपनी भाषा
इशारों में बात करें
आ सखी चुगली करे

आ हम सिर्फ सच बोले
शर्म – फर्ज करे किनारे
नदियों से पानी मांगे
पर्वतों से छत
पेड़ो से खाना मांगे
जानवरों से रथ
हवाओ से रास्ता पूछे
जमीं से अंक
अग्नि से हम गर्मी मांगे
बर्फ से ठंड
फिर करे बाते छोटी छोटी
मैं तुझे कहानियां सुनाऊं
तू मुझे इशारे करे
आ सखी चुगली करें

आ करे हम खूब बुराई
तू कर राजा की खूब बुराई
मैं रंक का करू धुनाई
आ बिचारवाद को फेंक चले
तू प्रेमनगर की नींव डाल
मैं फूलों भंवरो को न्योता दू
गज़ल की मुद्रा तैयार करे
आ सखी चुगली करें



मंगलवार, 9 नवंबर 2021

रंग

कई रंग देखे उल्फतो में
फूलों में
कलियों में
त्योहारों में
मनोरंजनों में
चुन न सका कोई उनमें अपना
जब तक तू न आई थी
रौशनी का श्रृंगार करके

सोमवार, 1 नवंबर 2021

पहाड़ों से दूर हूं

अब चाय की प्याली गर्म,
और चाय ठंडी सी लगती है,
अब जो पहाड़ों से दूर हूं ।।

बहुत भीड़ सा लगता है,
एक कमरे में लेटा हुआ हू ।
पर कई लोगो से घिरा हुआ लगता है,
अब जो उन वादियों से दूर हूं ।।

धूप चिड़चिड़ी सी लगती है,
पानी फीका सा लगता है,
हवाएं जबरदस्ती सी लगती है ।
मैं धूप में छांव लेता,
सूरज को कभी कभी आंखे दिखा देता,
बड़ा ढीठ सा था मैं वहा ।
पानी और नदी सब एक ही है वहा ।
हवा मौज में होती है,
कब कहा छेड़ जाए,
बस अपनी मुस्कान ही गवाह है वहा ।
अब धूप, पानी, हवा, नदी और छेड़खानी,
सब दूर सा लगता है,
अब जो उचाइयो से दूर हूं ।।

सब है यहां,
मां – बाबा , भाई – बहन और दोस्त,
पर बहुत अकेला सा लगता है ।
खोजता हूं अपने सर पे मखमली टोपी,
जिसे मैं बड़े चाव से सजाता सजने के लिए,
उसके लिए जिसकी आंखे भोली और छोटी है ।
मैं ठंड में ठिठुरता और वो लंबे ‘शाल’ ओढ़े मुझपे हंस पड़ती,
एक सुर्ख हाथ मेरे गालों पे पड़ती और बोलती ठहरो जरा,
हाथ में एक प्याली जिसमे मीठी सी खुशबू और धुआं,
साथ बैठती और पीती ।
खिलखिला के पूछती "कहो ...आया मजा" ।
वो वादियों की रानी अब दूर है,
अब जो मैं हिमांचल से दूर हो ।।

मेरी पहाड़न
जो नदी, हवा, पेड़ो से बनी सी लगती है,
उचाइयों में बसी एक छोटी कद की मुस्कुराती और बहती सी लड़की ।
अलाव और हमबिस्तर हम,
कैसे भुल जाऊ उसके सुर्ख होठों की गर्मी,
नम आंखे और सुलगता बदन ।
उसने मुझे रातों में शोर सुनना सिखाया,
लंबे पेड़ो को गले लगना,
और शीत को गालों पे बिखेरना सिखाया ।
गोद में ठहराव सिखाया,
इश्क में इबादत सिखाया,
और रूह में खूबसूरत जीवन दिखाया
मुस्कुराहट, शरारत, इबादत सब भुला सा लगता है
अब जो मैं पहाड़न से दूर हूं ।।।


शनिवार, 28 अगस्त 2021

बाबूजी गुजर गए

गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है
बाबूजी गुजर गए पर मझिले भईया ने बोला बाबूजी उनको हमेशा डांटते 
और मां जो गम में अंधकार हो गई है साजिशे करती थी
बाबूजी गुजर गए
आज सब एक हो गए, सब एक छत के नीचे खड़े है
बाबूजी की चाहत , उनके मरने के बाद 
सब निराश है, मां के लिए
अब भी सब एक दुसरे से नजरे नही मिलाते
और जब भी मिलाते गीले शिकवे ही करते
कभी एक दूसरे वाले फिर बाबूजी वाले
कौन कहता है गीले सिकवे मरने के बाद नहीं होते
बड़े वाले भईया हमारे बाबूजी सामान है
कल वो कमरे में अपने बच्चो के साथ हस खेल रहे थे
बीबी के साथ खुश थे, पर कमरे से बाहर मां याद आ ही जाती है
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
चिंता में है सब कि क्या होगा मां का
क्योंकि साथ नही रख सकते
पर क्यों नही रख सकते ?
सब बहुत निराश है, की मां का क्या होगा
अब बहुत दिनो की देर हो गई, बाबूजी को सब भूल गए
और निराश है मां के लिए बस स्वार्थ निराश
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
क्या छोड़ कर गए है, पर सब बाबूजी के नाम पर है
नाम तो बदलना होना, हक भी बदलना पड़ेगा
कुछ बड़े भैया, कुछ मझिले और कुछ पे मेरा हक डालना होगा
मां अकेली है, पर वो इंतजार में है की उनपे भी कोई अपना हक बताए
पर कैसे ? कब तक ?
और उसका क्या जो गीले शिकवे बाबूजी से थे
अब वही गीले शिकवे मां को भी तो सौंपना है
बाबूजी गुजर गए
गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है




शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

सरकार हमके पहचान नईखे पावत

हमरी किसान खाता में पैसा नाही आवे
बैंक वाला बोले 50 हजार दो
5 हजार रुपया कर्ज लिए रही
उप्पर से किसान बिल आ गइल
गयनी हम सरकार से मिले
ऊ बोले तू किसान नाही 

हमरी बेटा फौज में
गइल ट्रेन में थोड़ा छूट वाला टिकट करावे
साहेब बोले तू सैनिक नाही

हमरी छोटका के 5 साल से पेपर रुकल बा
उहनी के गइला धरना देवे
पुलिस डंडा बरसा दीही
बोले गुंडा लोग है, विद्यार्थी नाही

हमरी लड़किया पगली एगो मिया से प्रेम में पड़ गइल
हम त माथा पकड़ लिहनी
लेकिन हम्हू त चंदनिया से प्रेम कइले रहली
त 9—10 महीना बाद मान गईनी
अरे हम्हु जानत रहनी की लड़का बहुत संस्कारी हवे
जैसे तैसे हम कहनी ठीक बा
पर अगला दिने 6—7 जन लोग आइल
ओमे प्रमोद भी रहले(अरे उहे जन जे अपना लुगाई के डंडा से मार के मुआ डिहले, लुगाइया के बाप दहेज में भारी सोने के सिकड़ी न दिहले रहल)
बोले शादी करब त जान से मार देब
ई लभ जिहाद ह, प्रेम नाही

गईनी हम वृद्ध पेंशन लेब
साहेब बहुत घूर के देखनी
कहनी 5 साल पहिले तू मर गइले, जिंदा नाही

अब हमरो रोटी के दिक्कत में
सब्र टूट गइल
छोटका के माई (चंदनिया) से कहनी हम त मर गइनी
तू विधवा, विधवा पेंशन ले ले
भूखा पेट ओकरा के जैसे तैसे मनैनी
गइनी दफ्तर में
ओजुगो सहेबबा छोटका के माई के घुरलस
हमार त खुने खौल गइल
पर ऊ जब बोल लस ....
तोहरा पति बिशनाथ जिंदा बाड़े
चंदनिया शर्म के मारे भाग गइल
अरे हमर नाव त मंगरू हवे
त ई बिशनाथ कौन हावे ?
साहेब कहले तू विधवा नाही

एक दिन मुख्यमंत्री जी हमरा गावे आइले
बड़का घर के लोग से मिले, साहेब के खास हावो लो
खुबे माइक ले के सुंदर सुंदर मैडम लो भी रहली लो
हमु ओहि भिंड में एगो कोना में बैठे रहनी
साहेब जब जाए लगलन त हम हाथ बढ़ा दिहनी
सर पे साथ रख कर साहेब कहलन की सब ठीक न ?
हम कह दिहनी न साहेब, तनी हमरा घरी बिजली आ जैत
बस अहि पे बवाल हो गइल**
एगो माइक वाला मैडम हमसे पूछे किस पार्टी से हो
त एगो पूछे कौन देश से हो, पासपोर्ट कहा बाटे
त ले एगो खूबे उंगली दिखावत ओरी खूबसूरत चेहरा से चिल्लावत मैडम कहता बाड़ी
मुख्यमंत्री जी कहलेे की
हम देशद्रोही हई, देशभक्त नाही

सरकार हमके पहचान नईखे पावत ||

Rythem and grammar mistakes expected.
Work is pending on this craft.
Pure hindi and english version can be expected.
Time nhi milta ⌛



शनिवार, 8 मई 2021

एक मासूम दिल सा

एक मासूम दिल सा
प्यार की खिड़की पे खड़ी

अपने को आईने में देख मुस्कुराना
जवां उम्र में बच्चो सी नखरे
हजारों नफरत पे आंखे दिखाए
मेरी एक हल्की गुस्से पे वो पूरी बरसती हुई
कही तो होगी
एक मासूम दिल सा.....

सुबह में उठते समय से पूछे
आंखो को रोज क्या ही दिखाए
इंतजार अब तुम समय से परे हो
एक पल को समझना पड़ेगा
फिर अगले रोज सांसों में भक्ति
अगले पल तो मिलेगी
एक मासूम दिल सा.....

रातों में तकिए को एक गीत सुनाती
कभी आंखो का बोझ उतारे
एक अदब से सिरहन में करवट बदलते
चादर पे मेरा नाम लिखते सही
आंखो से पूछे दिखाई दिए ?
एक मासूम दिल सा.....

कभी बारिशों मेंं भीगती हुई
हल्की धूप सी सुलगती हुई
नजरो में नजारे संजोती हुई
इश्क पे पहरा, इशारों को यूं ही टिकाए हुई
मिलने को आतुर 
एक मासूम दिल सा.....




गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

आओ आज सच लिखते है

आओ आज सच लिखते है
नहीं है भारत महान हमारा
हटाओ ये भावनाओ के ओझल
नहीं याद आता हमे तिरंगा
ये देश पड़ा हुआ अधमरा
अभी भी गुलामी के चंगुल में पड़ा
शैतानी हुक्मो में देश फंसा
जम्हूरियत बताते पर तुगलक है बैठे
हजारों के मौत और लाखों चित्कार
दस्तूरे —भारत बस किताब में पड़ा
अदालत और विधान सब है मौन
आवाम खामोश की हम थोड़ी मरे
2–4 जो आवाज उठाए
ध्वनि बता कर खामोश कराए
सारे आवाम मूकदर्शक है बैठे
हंसते खेलते ये आवाम
अपनी बारी की इंतज़ार में बैठे
फिर भी हमारे तारीखों में हुक्मरान महान
बाकी सब है बड़े आम

आओ आज हम सच लिखते है
तुम झूठ बोलते हो मंच से बोलते हो
देश को यू ही महान बोलते हो
मरते लोगों से मुंह फेरते हो
देश को यू ही ठीक बोलते हो
देश को दीमक से बचाने
कहते हुए खुद दीमक बने हो
100 मरते तो 1 बताते
सच बोलते तो एक और मारते हो
खाली डब्बा भेजते हुए
लाखो में तुम झूठ बांटते हो
कहते हो तुम अपने सहाफियो से
देखो दिखाओ की सब नाच रहे है
दुश्मन को हम सांच रहे है
खुद एक दुश्मन बन बैठे हो
कहते हो कहने वाले सब बैरी 
इनको भी मारो देश महान बनाओ
बेबस भी और मूर्ख आवाम
झूठा देश और झूठा महान
आओ आज सच लिखते है


जम्हूरियत– प्रजातंत्र
दस्तूरे —भारत –  भारत का संविधान
सहाफिय – पत्रकार (news/media)
तारीख– इतिहास




शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

बे — वाकूफ

बड़े बे — वाकूफ है आवाम
आवाजों पे दौड़ते ये आवाम
हुक्मरान की मचान अपनी आवाम
सड़को पे नंगे दौड़ते ये अंबार
मुंसिफो के भरोसे आजाद होने का बरघलाया इंसान
बे — वाकूफ 

तमिजदारो को पैदा करते ये आम आवाम
आदर्श नौकरशाह पैदा करते ये आवाम
रहनुमाओं के जूतेे तले पलते ये आवामी आदर्श नौकरशाह
वाह रे तालीम —ए— नौकरशाह
हमारे रकबे के रखवाल चौकीदार
पढ़े लिखे आवाम
बे — वाकूफ

चुनाव देशी त्योहार
लाखों की शक्ति एक गवार को प्रदान
आवाम बनाते उनको इतना खास
खुद बेचारे बड़े आम
कोई सड़को पे मिलो पैदल चले
कोई अस्पतालों के किनारे कुत्तों से पड़े
कोई रैली में घिनौनी मुस्कान उछाले
कोई सड़क किनारे पेड़ों पे अपना सर लटकाए
कोई हर्जाना भरते भीड़ निहारे
कोई भीड़ में जयकारा लगाए
पर अपनी पहचान ही बस ’आधार’
आवाम बस हो तुम बड़े
बे — वाकूफ

एक मंदार दो गली
एक में लंबी पर पौनी राह
मंदार गए तो मौत 
नही गए तो मौत

दूसरी चौड़ी सी गली
उसमे बैठे आवामी आवाज
एक मरीज पर हजार सरोकार
मुंसिफ और संविधान
कागज सुंधता है आवाम
फिर भी हमको भावे सरकार
हम ही है आवाम और हम ही है
बे — वाकूफ


’भोले और प्यारे’ आवाम
’भोले’ शब्द को भूलने वाले
’प्यारे’ शब्द सजोएंगे
झूठो की बुनियादी अख्तियार
गुजरता कल भूलता आवाम
बहुत आसान और निर्लज हम आवाम
नए दिन में फिर नई सरकार
पर फिर वही सरकार
बे — वाकूफ




हुक्मरान- नेता लोग
आवाम — जनता
मुंसिफ — जज साहब
नौकरशाह— IAS/PCS
रकबे— Area
मंदार— पूजनीय स्थल/जहां जाके हम निरोग हो सके


शनिवार, 10 अप्रैल 2021

हम बहुत आसान है (पार्ट २)

हम बहुत आसान है
अगर हम बैठे बैठे गुस्सा हो रहे है 
तो हम बहुत आसान है
ये हम सोच रहे है की हम क्या कर रहे है
पर फिर कुछ दैनिको वही सोच रहे है
तो हम बहुत आसान है
हम अगर दुखद समाचार पे सिर्फ दुखी हो रहे है
फिर हम बहुत आसान है
हम जागरिक नर बनके 
सिस्टम की खामियां बता रहे है
तो हम बहुत आसान है
हम बहुत आसान है की
सामने वाले की मेहनत में हमे लोगो की मूर्खता दिखता है
हम आसान है की सब कुछ बस आसानी से बोल देते है
हम आसान है की हम हाथ में थामे डिजिटल से दुनिया में डिजिटल खोज रहे है
हम समय से पैसा कमा रहे है, खा रहे है, सो रहे है , रो रहे है,
हस रहे है तो हम आसान है
हम आसान है की किसी की एक गलती उसकी रोज की संघर्ष भुला देती है
हम आसान है
हम आसान है की हम नियम मानते चले जा रहे है
हम आसान है की नियम को कार्य समझने लग रहे है
तब तक हम आसान है जब ’लेकिन’ हम बोल पाते
आसान कभी मूल्यवान नही होता और
पैसा ही सिर्फ मूल्यवान नही होता
क्योंकि पैसा कमाना बहुत आसान होता है
हम आसान है हम बेपरवाह है
हम आसान है हमें प्यार चाहिए क्योंकि बस हम चाहते है
हम आसान है की प्यार जताते नही है
हम आसान है की ’लोग समझ जाएंगे’ को ही कर्म मान लेते है
हम आसान है हम दूसरो की पहचान में उनका किरदार खोजते है
किरदार होने का पहचान से अलग होना हमे शोभा नही देता
ये आसान है
हम आसान है की हम नारीवादी है
पर तब तक हम आसान है की सौंदर्य को सिर्फ नारी तक सीमित रखें है
आसान है अब ढोंगियों की पहचान करना
पर हम आसान है की पहचान की पहचान उनकी वेश भूषा से कर रहे
अभी के लिए बस आसान अच्छा नही है

हम बहुत आसान है (पार्ट 1)

हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, अपने देश में देस बनके बैठे है
अपने आप से हम दुखी होके गुस्सा किसी और पे हो जाते है
हम बहुत आसान है, जब तक नाराज और गुस्से में फर्क नही किए
हम आसान है की, हम दुखी होते है किसी गलत काम पर
और हम आसान है की चिंता करके सो जाते है
कभी अवसर नही दिया चिंतन को अपने साथ जगने को
हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, की हम माफ़ी मांग लेते है
हम बहुत आसान है की, छोटी सहायता पे भी धन्यवाद कर देते है
हम आसान है लब्जो पे हम टिके होते है
हम बहुत आसान है की हम भरोसा नही कर पाते
हम सिर्फ़ आसान है जब पूछने से भगते है
हम आसान है की कोई बोलेगा के भरोसे है
हम बहुत आसान है की जिम्मेदार नही है
हम आसान है की छोटी बात को अनुमति दे देते है
हम शब्दो के मायने भूल जाते है
हम आसान है रोजाना हजारों माफ़ी और धन्यवाद करते है
पर कभी अपनो का धन्यवाद नही किया
हमने बहुत समय से किसी अपने को माफ नही किया
हम आसान है की किसी की गलती पे माफ़ नही करते
हम आसान है की माफ़ी मांगने से बचते है
हम आसान है जब ये भूल जाते है की हमसे भी गलती हो सकती है
हम आसान है की कद्र को कद से नाप तौल कर जाते है
हम आसान है की आवाज उठा रहे है
हम आसान है आवाजों के साथ हम खड़े होते है
पर तब हम आसान है की हम फिर भूल जाते है
हम आसान है की हम टूटे हुए है ऐसा छूट बोलते है
हमारी निष्कीयता हमारी टूटने का सबूत नही है
इसलिए हम आसान है
हम आसान की चंद पलों की खुशी देने वालो को हम अपना मार्गदर्शक मान लेते है
हम आसान की हमारे सुरक्षक, रज़्ज़ाक़ और ढेरों को कोई पूछ नही
हम आसान है की केवल मनोरंजको को कलाकर मान लेते है
तनख्वाह वाले लोगों को कला से परे मानते है
हम आसान जब कला को उसके व्यवसाय की नजर से देखते है
इसलिए हम आसान है
आसान सादगी नही है, आसान आम भी नही है
आसान गाली नही है पर आसान कोई उपाय भी नही है
आसान कोई वाजिब तरीका भी नही है
इसलिए आसान अच्छा नही है ||



देस — कम्यूनिटी
रज़्ज़ाक़ — पेट भरने/पालने वाला

सोमवार, 3 अगस्त 2020

आंखो देखी

मै फ्रैंडशिप डे पे दोस्तों के लिए कुछ लिखने को सुबह से सोच रहा था,
पर जब भी कोशिश करता एक छोटा सा झूठ जुड़ जा रहा था जो सब कोशिशों पे कलंक डाल दे रहा था ।
लिखूंगा एक दिन कुछ और लोगो को पढू, की कोशिश कामयाब हो ।
कामयाब से मुझे संजय मिश्रा याद आ गए, सो फिर से 'आंखो देखी' मूवी फिर से देख डाली ।
उसके बाद रजत कपूर से मै थोड़ा खफा हो गया ।
अरे इसलिए नहीं की उनके किरदार ने बड़े भाई को छोड़ दिया बल्कि इंसानी अनुभवों में चिड़ियों की तरह उड़ना फिट नहीं बैठा ।

यहां मेरे लिए आंखो देखी फिल्म की एक रूपरेखा.......

आंखो देखी जब मैंने देखी तो........
फिर से प्यार में पीटने का मन किया ।
ठंडे मौसम में गर्म पानी की ओंस पीने का मन किया ।
घर के बुजुर्गो से गुफ्तगू करू,
मुझे शादी करने का मन किया ।
मुझे शेर को देखने का मन किया,
ताश के पत्तों में भावनाओ की संभावना खोजने की चाहत हुई ।
अपने पास की वो छोटी दुकान पे गर्म जलेबी खाने का मन हुआ ।
एक मोटी बेगम की तलाश को मन जिद्दी हुआ ।
अपने शहर के सारे कथित बुरे लोगों से मिलकर उन्हें गले लगाने का मन हुआ ।
गर्म गोले और ठंडी चाय ना पी सकने का सबक मिला ।
आखिर यही तो जिंदगी है और यही है पूरा जीना ।।
पर हम हवा और उसकी ठंडी खुशबू पक्षी की तरह उड़ कर महसूस नहीं कर सकते,
पैराग्लाइडंग भी हवा और उसकी संगीत को पक्षी जैसा कभी महसूस नहीं करा सकता,
एक ऊंचे पर्वत पे बैठ कर या फिर खुली जमीन का आश्रय मात्र हमें आसानी से हवा और उसके सारे संभोगी रूपो से हमें तृप्त कर सकता है ।।

शनिवार, 6 जून 2020

नि:शब्द

मै झूठी दुनिया में दिखावा करता चला गया लोग मुझसे राज पूछने लगे मैं बहुत नीरस और हताश हो गया फिर मै भी थोड़ा ईमानदार हो गया मै नि:शब्द हो गया ।

मै भूतो को ना मानता मै पिशाच विषयों में विवेक ढूंढ़ता जब घोर अंधेरी रात में आंख खोलता खुद को अंधा पाता रात में बसने वाली दुनिया कोई बता के गया ईश्वर और अनदेखी दुनिया में उलझा के गया आँखों का पर्याय सिर्फ उजाला और समय की स्थिरता को दिखाया
बिना अभिप्राय के रेस में भागते लोगो को जीने की मुहलत मांगते हुए देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै राम, साई नाम को पीछे से हाथ दिखा के गया
पैगम्बर पे कानों को दबा के रखा
कोई कलाम, गांधी को एक पन्ने में उकेरा
कबीर, भगत और टेरेसा को पन्ने के दूसरे भाग में पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने 2 दिन के लिए खूब पैसे उड़ाए
खाया नाचा और नचाया
महंगी गाड़ी को सड़क पे दौड़ाया
उसी सड़क पे कुछ बच्चो को गुबारे बेचते हुए उसी गूबारे से खेलते पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

ये देश कभी प्यारा नहीं लगा हर तरफ चीख और शोषण लोग , लोगो से परेशान दखिन दिशा से मुँह मोड लोगो को मैंने जीने की चाह में दखिन में ही भागते देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै प्रदूषण, अत्याचार और दूसरे जीवों के घरों पे औद्योगीकरण
का परिणाम और समाधान ढूंढता रहा
किसी कारणवश कुछ सप्ताह शहर बंद करना पड़ा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अपने रंग,रूप,मोटे, पतले और नाटे होने के कारण
सबसे दूर भागता रहा
एक दिन बस जीने की लालसा में मैंने हाथ बढ़ा दिया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने किसी अपने खास को खुश करने के लिए
हजार प्रयास किए
हा कभी कभी सफल प्रयोजन होता पर उसके ना होने पर
मैंने खुद को खुश करना शुरू किया
वो खास बहुत खुश मिला
अब हर प्रयोजन सफल होता चला गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मेरे कुछ आदत पे लोग असर छोड़ जाते
मै लड़ता चिलाता खामोश करने लगा
लोगों की भीड़ घेरने लगी
मगर चिलाने वाला केवल मै
मै अब हारने लगा
मै अब कम बोलने लगा
फिर खूब हसने लगा
भीड़ अब पीछे चलने लगी
शब्द को सुनने को, भीड़ चिलाने लगी
ना जाने कैसे मै जीत गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अब महत्व को महत्व जैसे देखने लगा
मै नि:शब्द हो गया ।

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

#इरफान

हम बागों में बैठे सावन ढूंढ़ते रहे,
वो पछुवा में पानी की बूंदों को हवा में उछाल दिया करता था ।
हम पहाड़ों पे चढ़ के खुद को मुशाफिर बताते,
वो चंबल की बीहड़ में रहना,
आजाद नज़म सा लाश और परिवार में कारवां ढूंढा ।
शर्तों पे वचन रख आदर्शो की नुमाइश,
वो खामोश रहकर खुद को साबित किया है ।
करोड़ों थे उसको गौर से सुनने वाले,
वहीं अनजाने में खामोश हो गया ।
सब आंखों से निहारते नई ख्वाइश देखते रहे मगर,
वो पुरानी कहानी छोड़ कर गया ।
उसी की शब्दों में उसी का शुक्रिया,
करते हुए लोगों ने पुराने पन्ने पल्टे ।
वो अपनी सारी अमानत लोगों के दिल में रख के गया,
और खुद की लड़ाई जीतते हुए हार कर गया ।
उसकी हार से आहत ये जन समुदाय,
उसकी जीत के सारे पन्ने उसको दिखा रहे है ।
हम सब उसकी जीत को ही याद कर रहे है ।।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

Narula



माफ़ी सर!
एक कुएं में मेंढ़क सा तो ना था मैं
पर बड़ी दुनिया के सारे कुएं एक से थे
शरीफ़ और जज्बाती तब भी था मैं
और सांपो का डर ना तब भी था
पर हिम्मत की भाषा पर में उखड़ा था मैं
समझौते की आदत का शिकार था मैं
लड़ने की मजबूती ना थी मुझमें और
हक की लड़ाई में बहुत पीछे था मैं (किस हक से लड़ था है तू, तुझे इससे क्या लेना देना)
हंस कर डांटने की आपकी साथी टोली
उनकी हंसी आज उन्हीं को सलाम
शिकायतों की समझौते में तब्दीली 
मेरी कलम से वो सारे साथी टोली भी कसूरवार
गुंजाइश खत्म करने की आरोपी साथी टोली
छात्रों और बच्चो की नकाब में मवाली साले
समझौते में इनको छुपा कर
अपनी गलती की माफी सर।
मुझमें आपकी छवि देखने वालो 
का शुक्रिया ।
पर आपसे हमेशा ही माफी सर !
हर दिन उसी ऊर्जा से आना
छोटी सी आंखों में गहरी चमक
मुस्कान बिखेरते विनम्र झलक
डूबती कस्तियो में हाथ प्रबल
बदले की भावना में शून्य संकल्प
जामिया में आपकी अनुराग धारा
इन सब के लिए शुक्रिया सर !
और आपसे हमेशा माफी सर !

#Bournvita is my favourite always.
• Unable to make a difference between fun and insult is a  forgiveness crime.
Need to feel sorry and say sorry.
Raise your hand and say thank you sir ! 😊

जामिया -> University


बुधवार, 2 अक्टूबर 2019

गाँधी





एक चेहरा जो मैंने पहले नोटों पे देखा
ऐनक पहने हँसता हुआ चेहरा
इनकी शख्सियत भी बस इतनी ही है
इक विशाल सा पर्वत या समुन्द्र या कोई विशाल सा स्मारक को देखो
एक बार उसके बारे में बात करो, जा के आनंद लो फिर यादो में समां लो
बस इतना ही है गाँधी की शख्सियत
एक बच्चे से बूढ़ा जो हर पल सीखता गया और महान होता गया
कुछ भी नहीं था गाँधी में
न महान लेखक
न महान नेता
न महान अभिनेता
न महान निर्देशक
न महान बिज़नेस मैन
न महान खिलाडी
फिर भी एक महात्मा बोलते थे लोग
सस्ते शरीर का महंगा आदमी
उनके लिए आजादी सिर्फ अंग्रेज़ो से छुटकारा पाना नही था
बल्कि समानता ही आजादी थी
बहुत खुशनसीब थे बापू जो उनको जीवनसाथी बा मिली
राम-सीता , राधा-कृष्णा, लैला- मजनू  जैसे
प्रेमसर की धारा में बा-बापू भी थे
उनकी शख्सियत का सबसे बड़ी बात ये थी की
उनको सबसे पहले देखने, सुनने,बोलने वाले देश के बड़े लोग नहीं थे बल्कि
देश का मजदुर किसान वर्ग के लोग थे
जिनकी बुद्धिमत्ता बड़े लोगो की तुलना में बहुत कम मानी जाती रही है
और उन हजारों लाखो के बीच गांधी बिना किसी सुरक्षा और डर के रहते थे
लेकिन बुद्धिमता बर्ग और बड़े वर्ग के लोग उनके सफल एक्सप्रीमेंट्स की वजह से उनसे आदर्शित होने लगे और वो भी उनको सुनने और सुनाने लगे ।

गाँधी को बस सत्य और अहिंसा से उल्लेख करना उनका बस एक दो परसेंट होगा
जिसके लिए हरिलाल और उनके बाकि लड़के सच में उनका सिर्फ बेटे थे
सिर्फ बेटे
लेकिन न अपनी शख्सियत को एक तिनका उनको अर्जित किया और न ही उनकी नाकामियों के कारण उनको नजरअंदाज किया
पूरी भीड़ के सामने बेटो को दुलारते नजर आते थे वो
एक धोती और बदन पे एक कपडा लपेटे अपने को देश की जनसँख्या के जो ज्यादातर लोग थे उनके बीच का बताते
इससे ज्यादा वो और कितना दिखावा कर सकते थे
जब से सूट बूट छोड़ा तो मरते दम तक उसको सूट बूट की जरुरत ही नहीं पड़ी
कोई इतना कैसे बर्दाश कर सकता है की कोई आपको शारीरिक आघात दे और आप पलट कर जवाब न दो
ये एक बेचरापन था या साहसी का असली मायने
इनकी ये भावना से मतभेद रखने वाले भी जानते है की
ग्लानि में मर जाना कितनी बड़ी हार है
उनकी ताकत का अंदाजा इसी से लगा सकते हैं
गाँधी से पहले पिछले 200 साल में ऐसा कोई नही था जो अंग्रेजों की मुछ मरोड़ी हो और वो छूट गया हो
गाँधी और हिंदुस्तान का संग्रामी रिश्ता नेहरू, पटेल, जिन्ना इन सब कांग्रेसियों से बाद का था
पर हिंदुस्तानियों के दिलो में गाँधी सबसे ज्यादा उतरे
गांधी के मन में ब्रिटिश शासन को हटाना नही बल्कि शासन में सबका हिस्सा दिलाना था क्योकि वो जानते थे की ये नही तो कांग्रेस शासन करेगा
पर उनके लिए शासन किसी का भी हो शासन में जनता का हिस्सा होना जरुरी था
जनता का हक़ होना जरूरी था
जैसा की हर पल सीखते चले गए और फिर उसको अपने में उतारते चले गए
ब्रिटिश लोगो का शासन अपना अपमान समझना ही उनका अंग्रेजों को भागना उनका अगला पड़ाव था
वो कहा करते थे की सुख कभी भी किसी वस्तु से नही मिलता चाहे वो कितना भी आधुनिक हो बल्कि सुख काम से मिलता है वो काम जिसमे गौरव हो ।
मैं गाँधी के जीवन को बहुत बड़ा कह सकता हु पर बहुत सफल नही कह सकता क्योकि हिन्दुस्तानियो ने उनके जीवन से कुछ नही सीखा बस अंग्रेजों की तरह हम भी उनके जीवन से प्रभावित होकर उनको सुना पढ़ा और बापू बना कर छोड़ दिया।
अहिंसा का भाव एक धर्म के झुठे रखवाले के हिंसा से मारा गया , और यही बापू की सबसे बड़ी जीत थी ।
पर मेरे लिए इससे ज्यादा दुखद कुछ नही हो सकता ।




🙏


मृतकों, अनाथ तथा बेघरों के लिए इससे क्या फर्क पड़ता है कि स्वतंत्रता और लोकतंत्र के पवित्र नाम के नीचे संपूर्णवाद का पागल विनाश छिपा है।

    -  महात्मा गाँधी

मंगलवार, 12 मार्च 2019

"हम" से "मै" तक

हर इंसान अपने आप में एक दस्खत है |
उसकी गलती पे हमने सजा देकर उसको बरकरार बना दिया |
उसकी जिन्दगी की जरूरत दिखी,
उसकी गंदगी संसार को गैरत लगी,
साहब ने सजा सुना दिया,
कलम ने अपना गुरुर खो दिया,
जज साहब के दर्द को हमने रिवाज बना दिया,
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया |

नृत्य को कसरत बना दिया,
गीत को बत्तमीज बना दिया,
इश्क़ के नाम पे बीमार को आबाद बना दिया,
उसके नाम की कसमें लेकर ममता को बदनाम कर दिया | 
चीखते चिल्लाते माइकवालो ने हमे जंग सीखा दिया,
किस्म हमारा एक है और किस्से हजारों बना दिया,
देश को 'लोगो" से नहीं 'जायदाद" से परिभाषित कर दिया |
अहम् लेकर चलने वाले राहत-चाहत सिर्फ लब्जों पे रख दिया,
क्योंकि "मैं" के आगे कुछ सोचा नहीं,
"हम" शब्द कभी सुना नहीं,
"मैं" बनकर "हम" को खोजते खोजते जिंदगी मिटा दिया |
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया ||



शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

इंटरव्यू

सारे इंटरव्यू में सबसे पहला प्रश्न यही होता है की अपने बारे में कुछ बताओ...(Please try to feel it in English......TELL ME ABOUT YOURSELF )

समझ नहीं आता मेरी आवाज और मुझे ऊप्पर से नीचे तक देख कर आँखों में असहमति लेते हुए वो मेरी आवाज सुनना ही क्यों चाहता है | मुझे पता है की मेरी आवाज न तो लता जी जैसी है, न ही रफ़ी जी जैसी फिर भी उसकी आंखे मेरी आवाज को और बेसुरी बना देती है |

मेरे जवाब लिखित में ऐसा है ....

काश मैं ही सरकार होता ,
काश मैं ही आगाज होता
मेरे भी चेहरे बेदाग होते
और मैं ही राजकुमार होता
मेरे बाल भी लम्बे और सुनहरे होते
मैं भी आकाश की तरह ऊंचा होता
मेरे हाथ में एक त्रिशूल होता
और मैं ही शिव होता
काश मैं अंदर से जवान होता
और काश की मेरी आवाज में इतना डर न होता
काश की मेरे जूतों की आहटे तेरे हॉल में गूँजती
और तू एक बार मेरी तरफ भी देखता
काश मेरे लब सूखे न होते
मैं पालकी में बैठ के आया होता
पर दुबके समाज में पला
थोड़ा प्यार और गालियों के बीच बढ़ा
अच्छे काम पे ईर्ष्या भरी समाज संग चला
मैं सिर्फ एक लड़का हूँ |


मंगलवार, 15 जनवरी 2019

2018 : सिनेमा जगत

2018 की कुछ मजबूत फिल्में जिन्हें खाली समय में देखना बेवकूफ बनना नहीं होगा....|
ये सब मेरी पसंदीदा फिल्में है जो बहुतों को पसंद भी है और बहुत सारे नामी क्रिस्टिक्स ने उन्हें भाव भी नहीं   दिया | इस बार समय के आभाव में कहानी के निष्कर्ष नहीं बता पाउँगा बल्कि मैं उन्हें 10 में से रेटिंग दूँगा |

(नोट - 10 में से रेटिंग जो दूँगा वो कहानी में कितना दम है ( Storyline ), उसे दर्शकों के सामने कितने अच्छे से पेश किया गया है ( Screenplay) , सारे प्रमुख और सहायक अभिनेताओं की एक्टिंग कितनी अच्छी है ( acting ) और कहानी के निष्कर्ष में भी कितना दम है, पर आधारित है )

नोट- यहाँ सिर्फ अच्छे फिल्मों की ही लिस्ट है और उन्हीं में तुलना करके 10 में रेटिंग दिया गया है |

  • Bhavesh Joshi Superhero           9/10
  • Tumbbad                                    9/10
  • Pihu                                            8/10
  • Raazi                                          8/10
  • Andhadhun                                 8/10
  • Laila Majnu                                8/10
  • Bioscopewala                             8/10 
  • Billu Ustaad                               8/10
  • 3 Storeys                                    8/10
  • Manto                                        7/10 
  • Zero                                           7/10
  • Padmavat                                   7/10
  • October                                      7/10 
  • Tigers                                        7/10 
  • Hichki                                       7/10
  • 102 Not Out                              7/10
  • Mulk                                         7/10
  • Love sonia                                7/10
  • Mohalla assi                             7/10  
  • Parmanu                                   7/10
  • Padman                                    6/10
  • Stree                                         6/10  
  • Omerta                                     6/10 
  • Baazaar                                    6/10  
  • Gold                                         6/10
  • Badhai ho                                 6/10
  • Kuch Bheege Alfaaz                6/10 
  • Baaghi 2                                    6/10
  • Raid                                         5/10
  • Blackmail                                5/10
  • Sanju                                        5/10
  • Karwaan                                  5/10
  • Sui dhaaga                               5/10 
  • Patakha                                    5/10
  • Sonu Ke Titu Ki Sweety         5/10
  • Mitro                                       5/10 
  • Vodka Diaries                         5/10  
  • Beyond the Clouds                  5/10
  • Hope Aur Hum                       5/10  




2018 वेब सीरीज के लिए भी बड़ा चर्चा में रहा, तो मैं कुछ वेब सीरीज का भी नाम दूंगा जो बहुत ही अच्छे सन्देश के साथ बना है और एक्टिंग करियर की दुनिया में क्रांति लाया है | अब लोगों को अपने शौक और जूनून को पूरा करने के लिए फिल्म इंडस्ट्रीज के अलावा कई प्लेटफार्म मिल गए है |
तो ये रहा कुछ अच्छे वेब सीरीज और उनकी रेटिंग -

  • Sacred Games                                                         9/10
  • Inside Edge                                                             8/10
  • Breathe                                                                    8/10
  • The test Case                                                         8/10   
  • A.I.SHA: My Virtual Girlfriend                             7/10
  • Yeh Meri Family                                                     7/10
  • Girl in the City                                                        7/10
  • Apharan                                                                   6/10
  • Love per square foot                                             6/10  






Thanks to all writers, Directors and Actors for these movies.  😃

रविवार, 25 नवंबर 2018

माटी

माटी माटी 
मैं भी माटी , तू भी माटी 
है रंग रूप की कीमत माटी 
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी 
किस भाव की है तेरी माटी ?
हर हथियार और हर पहलवान है माटी
हर गरीब , हर अमीर है माटी
हर रक्षक और हर भक्षक माटी
है मंत्री और संत्री भी माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
जो खाया सोया वो भी माटी
जो जगा और पाया वो भी माटी
जो बनाया और चमकाया वो भी माटी
जो निखरा जो पहना वो भी माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
कृष्ण बना तेरी माटी
या कंस बना तेरी माटी ?
धैर्यशक्ति की नीव पर मानवता का आधार है तेरी माटी ?
या लुटेरा शासनकर्ता सा दिखावटी एहसान बनी तेरी माटी ?
दलित भी माटी क्षत्रिय भी माटी
धर्म के काजी और ध्वज के काजी
सब है माटी
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
आश्रय बना है तेरी माटी ?
या निर्लज अनंत लक्ष्य बना है तेरी माटी ?
कल्पना बना हुआ आलसी है तेरी माटी ?
या खुसबू बिखेरता हुआ हँसता है तेरी माटी ?
अर्थ अनर्थ की होड़ में लगा है तेरी माटी ?
या अक्ल और अवसर के साथ रौशनी भी खोजता है तेरी माटी ?
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ?
जिन्दा माटी से इश्क़ करता है तेरी माटी ?
या ख्याति खातिर धनवान मुर्ख है तेरी माटी 
उचित अनुचित की पहचान तो कर
शासन छोड़ कर लोगो से प्यार तो कर
जाने कब हो जाये तेरी माटी , माटी माटी ?
बस ढूंढ जरा तू अपनी माटी
किस भाव की है तेरी माटी ? 

बुधवार, 7 नवंबर 2018

शुक्रवार, 7 सितंबर 2018

Queer - No More





राते अपनी थी
अब दिन भी अपना होगा                                                 
खामोशियाँ थी
अब शब्द भी अपने होंगे
शराब था अब जिफाफ़ भी अपना होगा
शर्म थी अब शरारत भी अपना होगा
अब तक हम अधूरे थे, अब मुकम्मल हो चुके है
आओ साहेब-ऐ -आलम
अब ये जहां भी अपना होगा |




#377_verdict ( 6th-sept-2018 )
#Supreme_court













                                                    ( Pic Credit- Wikipedia with edited by me )


मंगलवार, 10 जुलाई 2018

मै दलित सा महसूस करता हुं

मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़की लड़के से प्यार का इजहार करती है
वो डाट कर अपनी सहेलियों को भगा देती है
और कहती है खबरदार जो हम दोनों के बीच में कोई आये
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़का लड़की के प्यार में दीवाना हुआ होता है
वो कहता है की मेरी जिंदगी भी तुम और दीवानगी भी तुम
वो पांच रूपये के लिए दोस्तों पे बेरहमी दिखाता है
और लड़की पे हजारो खर्च कर रहम की मांग करता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब एक लड़का एक छोटी सी गलती पे भी
अपने प्यार से हजार बार माफी मांगता है
और हजार गलतियों पे भी साथियो को आँख दिखाता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब कोई गुस्से में पागल होकर सबको मार डालने की बात करता है
और प्यार के गुस्से को न झेल पाने पर आत्महत्या की बात करता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब पास बैठे प्यार को मनाने के लिए हजारो प्रयास करता है
और वही पास बैठे दुखी साथी को खुश होने का ज्ञान देता है
मैं दलित सा महसूस करता हु
जब कोई हर लड़की को फूल सा नाजुक जानकर
खुश्बू मांगता है या छीन लेता है
और कोई हर लड़के को पठार दिल समझता है
और गाली बक जाता है ,ये तो झेल जायेगा
मैं दलित सा महसूस करता हु जब कोई एक से प्यार करता है
इजहारे तादाद में सौ कसमे वादे करता है
और एक दूसरे को ही अपना संसार मान लेता है
मैंने भी किया है एक से प्यार
उसने सबसे प्यार करना सिखाया है
और तब मैं दलित सा महसूस करता हु जब दो जोड़ो को हजारो के बीच
एक दूसरे में ही गुम देखता हु

#वसुधैवकुटुम्बकम

शुक्रवार, 4 मई 2018

आवाज़ 3

1.  बातें जोर पे नहीं वफ़ा पे होता है  
      पुलिंदे तो झूठ का होता है
      सच्चाई में सिर्फ गहराई होती है
      इजहार ऐ ताकत पे गौर नहीं करो
      ताकत तो झूठ का भी ज्यादा होता है
      इंतजार-इ -हद भी होता है
      इसलिए
     उसके वादे का अब मुन्तजिर नहीं
     काफी समय बर्बाद भी होता है |

2.  फूलो पे धूल हो तो निराश नहीं हो
      बारिशे आगाज लाएंगी
      कस्ती तो वहां डूबेगी
     जब फुल ही मुरझाया हो
   आफताब को ढूंढने में उम्र जया ना करो
   किचडो के बीच से कमल भी निकलता है |

3.  कही खो गया हु मैं
     मुझे तलाशो
     मैंने बुद्धा को तराशा
     तुम हिन्दू मुस्लिम करते हो
     मैं तो महावीर था
    तुम बाहुबली से अब लिपटे हो
    मैं मिथिला की सीता थी
   जहा प्रेम पत्तो सा यु झड़ता था
   अब नफरत की उबाल वहाँ पर
   इंसान इंसान को मारते हो
   मैं पराक्रमी और शांतिदूत अशोक था
   तुम सहाबुद्दीन मक्कारो से डरते हो
  अब भी अगर ढूंढ न सको तो
  याद करो तुम कुंवर को
  खुद का मान भूल चुके हो तो
  सम्मान कर लो देश-रतन को              
  गुस्से से लौटो तुम
  अब बहुत जल चूका हु मैं
  दंगो से तुम वापस आओ
  मैं बिहार, मुझे बचाओ 
  तुम सब में ही मर रहा हु मैं |
#Communal_Riots_In_Bihar

4. मेरा वजूद खोजने वालो
    मुझे मेरी बातो में खोजो
    मै कौन और कहा हूं
    मेरी आलेखो में खोजो
  छोड़ो ये फरियादी रिश्तेदारियां
  मुझे बस मुझमें खोजो

5. इबादत की तलब है ?
   चलो मजहब छोड़ते हैं 
   जूनून-ऐ-कारवां ढूंढ़ते हैं
   नूर-ऐ -जहां खोजते हैं 
   मंजिल-ऐ -मुन्तजिर कब तक ढूंढोगे ?
    चलो
    चलो इश्क़ करते हैं |

6. नाजायज रसूख ने तुझे मार डाला 
    जहा थी बचत वहा भी खपत कर डाला 
    जड़े भूल कर आसमान की सैर में निकला 
    इनायतें कम हो गयी 
   जुस्तजू बढ़ती चली गयी 
   तूने तेरी रूहानियत को खुद ही मिट्टी में मिला डाला |


7. सुनो खिलाफी मत होना,
     बस धीरे से छोड़ देना |
    हा जरिये बहुत है,
    मजे लेना,
   पर मेरे जरिये को गाली मत देना | 
   बेशक रूठ जाना,
   पर गिला मत रखना |
   जिंदादिल हु,
   मेरे कानो को भर देना,
   शिकवे गैर से मत कहना,
  आगाजी मत होना |
  खिलाफी मत होना |


8. तू तू मैं मैं था 
   गठीले हाथ और हथियार था 
   दो दल और फौज था 
   सबमें अक्ल और अकबर था   
   सबपे अवसर और अख़बार था 
   हम दोनों दुश्मन थे 
   आखिर में आक़िबत ये हुआ 
   की हम हार गए 
  क्युकि उनके दल में एक हँसता हुआ नूर था 

9. हम सगे की दौलत पे 
   मौसिकी का मज़ा लेते रहे 
   और मुद्दते बाद तक 
   हम उनको बख़ील कहते रहे 
    रौशनी की अति ने 
   हमसे हमारा छाया छीना
   हम जिफाफ़ के लिबास में जिस्म उड़ाते रहे 
  आज हमारा पाला अपने साये से जो पड़ा
  आह की आहट से सगे को पिता का तबका मिला  
 
10.  जब भी मिलती हो ,
         पलके मुस्तकीम हो जाती है |
         जब भी कुछ कहती हो ,
         आहटे और कोहराम खामोश सा लगता है |
         ऐहतमामे कर के बैठता हूं,
         कागज पे उकेरी जो गई हो ,
        कहानी 
         जब भी कुछ कहती हो |