शनिवार, 6 जून 2020

नि:शब्द

मै झूठी दुनिया में दिखावा करता चला गया लोग मुझसे राज पूछने लगे मैं बहुत नीरस और हताश हो गया फिर मै भी थोड़ा ईमानदार हो गया मै नि:शब्द हो गया ।

मै भूतो को ना मानता मै पिशाच विषयों में विवेक ढूंढ़ता जब घोर अंधेरी रात में आंख खोलता खुद को अंधा पाता रात में बसने वाली दुनिया कोई बता के गया ईश्वर और अनदेखी दुनिया में उलझा के गया आँखों का पर्याय सिर्फ उजाला और समय की स्थिरता को दिखाया
बिना अभिप्राय के रेस में भागते लोगो को जीने की मुहलत मांगते हुए देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै राम, साई नाम को पीछे से हाथ दिखा के गया
पैगम्बर पे कानों को दबा के रखा
कोई कलाम, गांधी को एक पन्ने में उकेरा
कबीर, भगत और टेरेसा को पन्ने के दूसरे भाग में पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने 2 दिन के लिए खूब पैसे उड़ाए
खाया नाचा और नचाया
महंगी गाड़ी को सड़क पे दौड़ाया
उसी सड़क पे कुछ बच्चो को गुबारे बेचते हुए उसी गूबारे से खेलते पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

ये देश कभी प्यारा नहीं लगा हर तरफ चीख और शोषण लोग , लोगो से परेशान दखिन दिशा से मुँह मोड लोगो को मैंने जीने की चाह में दखिन में ही भागते देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै प्रदूषण, अत्याचार और दूसरे जीवों के घरों पे औद्योगीकरण
का परिणाम और समाधान ढूंढता रहा
किसी कारणवश कुछ सप्ताह शहर बंद करना पड़ा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अपने रंग,रूप,मोटे, पतले और नाटे होने के कारण
सबसे दूर भागता रहा
एक दिन बस जीने की लालसा में मैंने हाथ बढ़ा दिया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने किसी अपने खास को खुश करने के लिए
हजार प्रयास किए
हा कभी कभी सफल प्रयोजन होता पर उसके ना होने पर
मैंने खुद को खुश करना शुरू किया
वो खास बहुत खुश मिला
अब हर प्रयोजन सफल होता चला गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मेरे कुछ आदत पे लोग असर छोड़ जाते
मै लड़ता चिलाता खामोश करने लगा
लोगों की भीड़ घेरने लगी
मगर चिलाने वाला केवल मै
मै अब हारने लगा
मै अब कम बोलने लगा
फिर खूब हसने लगा
भीड़ अब पीछे चलने लगी
शब्द को सुनने को, भीड़ चिलाने लगी
ना जाने कैसे मै जीत गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अब महत्व को महत्व जैसे देखने लगा
मै नि:शब्द हो गया ।

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