हर उस शख़्स से...
हर उस शख़्स से एक गुज़ारिश है,
जिसका प्रेम अधूरा, जिसकी चाहत ख़ामोश है।
कभी पल भर ठहरकर सोचना,
क्या प्रेम वाकई थम जाता है
जब वो मुकम्मल नहीं हो पाता?
अगर प्रयास न सफल हुए तो क्या,
क्या आत्मा को यूँ सौंप देना ज़रूरी था?
जब नई शुरुआत ग्लानि से हो,
तो रिश्ते की नींव ही कमज़ोर होती है।
आपके और उसके बीच कोई और भी है,
जो चुपचाप, पूरे मन से प्रयासरत है।
क्या उसका समर्पण प्रेम नहीं कहलाएगा?
क्या उसका मौन कुछ नहीं बतलाएगा?
अगर प्रेम सच्चा है,
तो डर कैसा किसी और के समर्पण से?
कहीं मोह को तो नहीं धारण कर लिया
या प्रेम में भटक रहे हो चुपचाप?
मोह आता है, जाता है
प्रेम ठहरकर तप बन जाता जा
मोह में आकर्षण,प्रेम में समर्पण।
प्रेम में करुणा है
प्रेम में शांति है
वो दरवाज़ा नहीं जो बंद हो जाए,
वो दीप है
जो औरों की राह भी दिखाए ।
प्रेम ही परम सत्य है,
प्रेम ही अनंत है,
प्रेम ही ब्रह्म है,
प्रेम ही बुनियाद है
और प्रेम ही इबादत है।
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