शुक्रवार, 24 नवंबर 2017

तेरी बात

      सरहद की कुछ किताबे है
      तू उसकी बाते करता है ,
      मैं तो बस दुरी से डरता हु 
      मैं तेरी बाते करता हु |

     हर बार वही पे आता हु
     तेरे किस्से सुनता हु,
     फिर छुपी हुई सी रात में 
     मैं खुद से तेरी बाते करता हु |

    है याद वो हसीं रात 
    इसलिए नहीं 
    की था नहीं तू मेरे साथ 
    मैं देखता था उस रोज सपने 
    जिसमे तेरी बाते होती थी |

   हर शाम को उस दिवार पे मै
   बैठ लिया था मज़ा चुस्की का 
   नहीं वो था नहीं मज़ा उस फीकी चाय का 
   क्योकि वहा हसते हुए तेरी बाते करता था |

  हा अनजान था मैं उस पन्नों से
  पर कोरे कागज और ध्यान तेरा 
  ये जचता नहीं था मेरे को 
  फिर पहचान बनीं उन् पन्नो से 
  फिर तेरी बाते करता था 

  जब शामिल होता मैं जश्नों में 
  महफ़िल होती थी मधुराना
  क्योकि, थी जुबा तो कैची सी
  पर तेरी बाते करता था |

  मैं मंदिर तो न जाता था 
 पर अपने पाप मैं कम करता था 
 क्योकि , ग़ुम-वे-आलम में 
 मैं तुझे हँसाने आता था |

 थी दूर सफर की मंज़िल तेरी 
 थी ऊबाई भरा सा वो मंजिल 
 फिर बनाया खुद का वो मंज़िल 
 जिसमे साथ तेरे मैं आता था 
और बाते तेरी करता था |

मस्तियाना था वो गुफ्तगू मेरी 
जिसमे हसी ठिठोले होती थी 
और एक ध्वनि की आहट ज्यादा थी
जो तेरी हंसी की होती थी |

था गम नहीं उन रस्मो का 
जो बचपन से निभाया था 
गम था तो उन् जख्मो का 
जो तेरे चेहरे से हटानी थी |

सुना है थी हजारो नजरे तब मेरे ऊपर
मैं रुस्वाई किया इन अवामो से  
पर दिखे नहीं ये ऐक-इ-कायदे
माफ़ करना 
थी नजरे बस तेरे पहरे पर 
मुझे तेरी अगुवाई जो करनी थी |

जब आंखे मेरी भर आयी थी 
पर सच कहु तो उस धुंधली आँखों से 
मैं तेरा चेहरा देख लिया था
क्योकि बाकि नजरो से दिखते 
पर तू निगाहो में समां गया था 
और मैं तेरा चेहरा देख लिया था |

छोड़ गया था जब तू मुझको 
हुआ था दर्द कुछ ऐसा की 
शायद हुआ नामंजूर उस रब को 
फिर बोला उस रब ने तू उसकी बाते किया कर 
फिर किया मैंने शुक्रिया उसका 
और देख मैं तेरी बाते कर रहा हु 
और पहले भी 
तेरी बाते करता था |


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