रविवार, 26 नवंबर 2017

न्यूटन अगर नूतन होता

न्यूटन अगर नूतन होता -



अभी एक सिनेमा बॉलीवुड इंडस्ट्री में रिलीज की गयी "न्यूटन" | इसके लेखक और डायरेक्टर अमित मसूरकर जी है और एक्टिंग में राज कुमार राव जी है जो की आज के यूथ की पसंद है और अपनी छवि बनाने के काबिल भी |
खैर अभी बताई गयी जानकारी को बस बताना जरूरी था, पढ़ना नहीं क्योकि हमे तो सिनेमा के थीम से ही मतलब है ,की "भाई कहना क्या चाहते हो" |
सो स्टोरी कुछ इस तरह है की न्यूटन नाम का एक आदमी जो की अभी अभी  गवर्नमेंट क्लर्क बने थे |वो एक दलित वर्ग से सम्बन्ध रखते थे (वैसे इस बात का सिनेमा से कोई लेना देना नहीं है ).वो एक चुनावी ड्यूटी के लिए छत्तीसगढ़ के नक्सली क्षेत्र में भेजे जाते है जो की बहुत ही एक संवेदलशील क्षेत्र है | उस जिले में पिछले चुनाव में नक्सलियों ने 19  लोगो को मार दिया था और जिस क्षेत्र में न्यूटन बाबू भेजे जा रहे थे वहा बहुत सालो बाद इस साल चुनावी कैंप लगा था | तो सोच सकते है वो कितना संवेदनशील इलाका होगा | वहा चुनाव होना था | वहा पे 76 लोगो की लिस्ट थी जो वोट डाल सकते थे सिर्फ 76  लोगो का नाम वोटिंग लिस्ट में था |.चुनावी अधिकारी न्यूटन बाबू और उनकी टीम के सुरक्षा की जिम्मेदारी आत्मा सिंह नाम के एक असिस्टेंट कमांडेंट और उनके साथियो की थी | आत्मा सिंह ने वहा की पूरी हालत न्यूटन बाबू को बता दी थी लेकिन एक बात न्यूटन बाबू में थी ,वो उनकी ईमानदारी या सही रूप में कहे तो ड्यूटी के प्रति वफादारी |
पहले तो आत्मा सिंह ने उन्हें बूथ लगाने से रोका बोले की यही कुछ गांव वालो को बुला के उनका वोट ले लेते है | इसमें सुरक्षा भी रहेगी लेकिन न्यूटन बाबू तो थे कायदे कानून को सख्ती से मानने वाले उन्होंने बड़े ही कठोरता के साथ मना कर दिया | न्यूटन बाबू और उनकी टीम को न्यूटन की जिद के कारण उन्हें बूथ तक ले जाया गया | बता दू की उनकी टीम में एक वही की रहने वाली सिखिका भी थी जो की आदिवासी थी और वहा के हालत के बारे में उन्हें 200  प्रतिसत पता था क्योकि वही वो पली बढ़ी जो थी | बाद में बूथ लगा और होने लगा वोट लेने का इंतज़ार पर कोई नहीं आया वोट देने | ये भी बता दू की नक्सली लोग गांव वालो को डरा कर रखते है की जो भी वोट देने जायेगा हम उससे मार देंगे |
बाद में न्यूटन बाबू को लगा की गांव में जा के लोगो को समझा बुझा कर लाया जाये (बिना जोर जबरजस्ती किये) | इसके लिए उन्होंने ने आत्मा सिंह और उनके फ़ोर्स की सहायता मांगी | आत्मा सिंह और उनके साथी अपने तरीके से कुछ गांव वालो को लाये जिनके पास वोटर कार्ड था | वोटिंग शुरू की गई लेकिन बेचारे आदिवासियों को पता नहीं कितने साल हो गए थे उन्हें वोट देने उन्हें नहीं पता था की अब वोट देने के लिए मशीन आ गई है EVM मशीन | तब न्यूटन बाबू ने उन कुछ जो 30 -35  वोटर थे उन्हें सिखाने की कोशिश किये की मशीन पे वोट कैसे देना है | लेकिन ये न सीखा पाए की किस नेता को वोट दे क्योकि उनमे से कोई भी उन उमीदवार नेता का नाम और शक्ल तक नहीं जानते थे | खैर वोटिंग शुरू हुई और वो सारे वोटर वोट देके चले गए | फिर से न्यूटन बाबू अब जाने को तैयार नहीं क्योकि उनकी ड्यूटी की टाइम अभी ख़तम नहीं हुआ था और उनको लग रहा था की यहाँ 1 वोट का भी बहुत बड़ा महत्व है | सो उनको लगा की शायद कोई वोट देने आये सो वो अपने बाकि टीम के साथ फिर से इंतज़ार करने लगे | वो थोड़ा बहुत ड्यूटीवादी भी थे की ऑन ड्यूटी नो बातचीत या नो मस्ती भले ही ड्यूटी के टाइम पर कोई काम ही न हो |
उनकी वजह से आत्मा सिंह और उनकी बटालियन भी थी क्योकि उनको उनकी सुरक्षा जो करनी थी .सबकी जान खतरे में थी | तो आत्मा सिंह ने अपने ही लोगो से फायरिंग करवा के न्यूटन बाबू और उनकी टीम को डराया की हमला हो गया है | अब हमे जल्दी से EVM को बचा के यहाँ से निकल लेना चाहिए | फिर सब लोग निकल लिए | बीच रास्ते में न्यूटन बाबू को समझ आ गया की धोखा हुआ है वो जंगल से वापस बूथ की ओर भागने लगे ताकि वो अपनी ड्यूटी निभा सके | अब सब फ़ोर्स वाले भी उन पीछे भागने लगे की कही उनको कुछ हो गया तो उनकी नौकरी खतरे में पड़ जाएगी | फिर उन्हें पकड़ते है |
ड्यूटी का टाइम इन सब में ख़तम हो जाता है और न्यूटन बाबू की ड्यूटी भी ख़त्म हो जाती है और सिनेमा भी ख़त्म हो जाता है |
आप सब समझ ही गए होने की सिनेमा में न्यूटन को एक ईंमानदार आदमी ,काम के प्रति वफादार और सिनेमा के माध्यम से ये भी कहने की कोशिश किया गया है की वोटिंग कितनी जरुरी है और हर एक वोट बहुत मायने रखता है |
अब आते है असली कहानी पर
अगर न्यूटन नूतन होता तो -
जी न्यूटन ने जितना भी काम किया वो एक बेफ़कूफी है और ईमानदारी का घमंड दिखता है |
उन्हें इस बात का घमड़ है की वो ईमानदार है ,जबकि यही तो उनका काम है |
अब नूतन के हिसाब से काम करते है |
नूतन को चुनावी क्षेत्र में पहुंचाया जाता है वहा उनका मिलन आत्मा सिंह से होता है जो वहा की सारी कंडीशन बताते है |
तो नूतन को लगा की  वहा के माहौल को ध्यान रखना चाहिए ताकि जो ये पुलिस फ़ोर्स के लोग और उनके साथ लोग है उनकी जान खतरे में न पड़े |
अगर इसके लिए झूट भी बोलना पड़े या अपनी ड्यूटी से गद्दारी करना पड़े तो वही ठीक है .वैसे असल मायने में वही सही का ड्यूटी के प्रति वफादारी है |
नूतन ने वही वोटिंग करा दिया और वही कुछ 10 -15  लोगो को लाया गया और उनका वोट ले लिया गया |
फिर नूतन अपनी टीम के साथ सही सलामत वापस चला गया और पुलिस फ़ोर्स भी सही सलामत रही |
 इस बार के चुनाव में कोई नहीं मारा गया |
क्योकि चुनाव नूतन के सूझ बुझ से हुई थी |
आप वहा वोटिंग करने जा रहे है जहा के लोगो को यही नहीं पता की उनका प्रत्याशी कौन है | ये जान लीजिये की वहा वोट की कोई वैल्यू नहीं है |
जहा के लोगो को 2 वक्त की रोटी नसीब नहीं होती वहा जाके आप उन्हें वोटिंग का मतलब समझा रहे है और फायदे गीना रहे है |
अरे जिस क्षेत्र में लोग आ - जा नहीं सकते उस क्षेत्र का विकास कैसे होगा | ऊप्पर से वहा 15 लोग उमीदवार के रूप में खड़े बस इसलिए की अगर 5  वोट भी उन पर पड़ जाये तो वो वहाँ के राजा बन जाये और खूब लुटे सरकारी पैसो को |
अगर न्यूटन बाबू की जिद के कारण एक भी चुनावी अधिकारी या पुलिस फ़ोर्स मर जाता तो कल न्यूज़ वाले और सारे बड़े लोग उसे शहीद बताते जबकि ये एक मर्डर है नक्सलियों द्वारा और न्यूटन की जिद और गलत फैसले के द्वारा |
कौन कहता है वोटिंग एक बहुत बड़ा त्यौहार है | अरे है मैं भी मानता हु की लोकतंत्र में वोटिंग ज्यादा से ज्यादा होनी चाहिए लेकिन छत्तीसगढ़ के नक्सली इलाके और बहुत सारे इलाके जो गंभीर रूप से नक्सलियों के कब्जे में है या नक्सलियों से पीड़ित है वहा पहले लोगो को रहने का घर और 2 टाइम की रोटी नसीब तो हो ताकि वहा से भी कोई मालको जैसा बने |
 जी हां यहाँ हीरो न्यूटन नहीं मालको है जो वहा के आदिवासियों किए बीच रहकर एक तरफ से नक्सलियों से और दुरी तरफ से सरकारी अफसरों से प्रताड़ित होने के साथ साथ वहा के बच्चो को शिक्षा देने का काम करती है | वो एक शिक्षिका है वहाँ की | उसने अपने भले और दूसरे के भले के लिए नक्सलियों और सरकारी अफसरों की बात में हां में हां मिला के काम चला रही है और साथ साथ बच्चो को शिक्षा भी दे रही है है |
जैसे की कहानी है उस हिसाब से देखा जाये तो वहा के 76  में से 76  को वोट ले लो या किसी का भी वोट मत लो कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है | क्योकि वहा के हिसाब से वोटिंग से ज्यादा जरूरत वहा के लोगो को आलिंगन की जरुरत है ताकि वो टूटे न ! अरे वही नहीं रहेंगे तो वहा के उमीदवार के होने न होने से  क्या फर्क पड़ता है |
तो नूतन ने अपना काम सुरक्षा पूर्व करते हुए आत्मा सिंह जी को जय हिन्द कहते हुए वापस चले जाते है | सुरक्षित रूप से |
और वहा के हालत के बारे में सरकार को एक चिठ्ठी लिखते है कुछ परामर्श के साथ ताकि उन  आदिवासियों को रोटी ,कपडा ,मकान नहीं दे सकते तो कम से कम उन्हें आजादी से तो रहने दो ,वो सब तो इन सब कमियों के साथ ही साथ एक डर में जी रहे है |
और मालको को कुछ फण्ड देने की भी गुहार लगाई ताकि वो खुद से साथ बच्चो को भी और अच्छी शिक्षा दे सके | मालको नूतन के लिए उतनी ही महान है जितनी मलाला यूसुफजई ,जितनी साइना नेहवाल,जितनी सानिया मिर्ज़ा,जितनी मिथली राज,जितनी मानसी छिल्लर |
और ये भी गुहार लगाई की ये सारे काम बिना पब्लिसिटी किये और बिना न्यूज़ में फैलाये करे ताकि मालको की सहायता भी हो जाये ,बच्चो की भी सहायता हो जाये और मालको को जान का खतरा भी न हो | क्योकि नक्सली लोग सरकार से नफ़रत करते है और अगर उन्हें पता चला की सरकार ने मालको को कोई सहयता दी है या किसी चीज से सम्मानित किये है तो मालको को मार देते और फिर मालको , मालको नहीं रह पायेगी |




                                                 (image source-google)

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