शामे ए महफिल खफा ए दौर
दीदार ए इश्क इजहारे खफत
ये सब ढेर समय और कम वक्त देती है
कुछ दिन और राते तड़पन की छोड़ दो
वही ठहरो और जियो, वरना भाग चलो
खफा ए मजलिस में हथियार और जाम दोनो हो सकते है
तल्ख़ जुबान और मुजरिम करार भी हो सकते है
तो इससे अच्छा की कम वक्त में नई गली चले
और ढेर सारा समय जो है वो जाम और मौसिकी के नाम करे
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