बुधवार, 8 दिसंबर 2021

आप और तुम

उसका "आप" बोलना उसकी मासूमियत थी
मैं अपने "तुम" में अपने गवारेपन की नाज पे था

वो दशवी पास बहुत जिम्मेदार थी
मैं ग्रेजुएट उसका माथा भी नहीं चूम सका

मैं उसको अच्छा लगा तो उसने मेरा हाथ थामा और मुस्कुराया
मैं सहमा सा शाम की राह देखता रहा

मेरे को अच्छा समझी वो और गले से लगाया
मैं मौके की गिरफ्त में उसकी आंखो में देख भी न सका

"आप मुझे दुबारा मिलोगे" की उसके सवाल में 
मैं लेटा "तुम" की नशे में एक झूठा वादा भी न कर सका

हुई थी हमारी बात फिर कई रोजो बाद
इतने दिनो में मेरा गवारापन "तुम" और "आप" की दूरियां नाप रहा था
वो पूछी "आप कैसे है"

मेरे गवारेपन ने उसके बॉयफ्रेंड के बारे में पूछा
उसने मुझे अपने स्कूल वाले प्यार के बारे में बताया
और पूछा अब कोई ऐसा होगा जो ऐसा प्रेम कर सके

वो सुंदरी जिंदगी में जीना जानती थी
मैं सहूलियत खोजते खोजते जी भी न सका था

उसने मुझसे पूछा शादी करोगे आप मुझसे
मैं हंसा और कुछ न बोला

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