शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

बे — वाकूफ

बड़े बे — वाकूफ है आवाम
आवाजों पे दौड़ते ये आवाम
हुक्मरान की मचान अपनी आवाम
सड़को पे नंगे दौड़ते ये अंबार
मुंसिफो के भरोसे आजाद होने का बरघलाया इंसान
बे — वाकूफ 

तमिजदारो को पैदा करते ये आम आवाम
आदर्श नौकरशाह पैदा करते ये आवाम
रहनुमाओं के जूतेे तले पलते ये आवामी आदर्श नौकरशाह
वाह रे तालीम —ए— नौकरशाह
हमारे रकबे के रखवाल चौकीदार
पढ़े लिखे आवाम
बे — वाकूफ

चुनाव देशी त्योहार
लाखों की शक्ति एक गवार को प्रदान
आवाम बनाते उनको इतना खास
खुद बेचारे बड़े आम
कोई सड़को पे मिलो पैदल चले
कोई अस्पतालों के किनारे कुत्तों से पड़े
कोई रैली में घिनौनी मुस्कान उछाले
कोई सड़क किनारे पेड़ों पे अपना सर लटकाए
कोई हर्जाना भरते भीड़ निहारे
कोई भीड़ में जयकारा लगाए
पर अपनी पहचान ही बस ’आधार’
आवाम बस हो तुम बड़े
बे — वाकूफ

एक मंदार दो गली
एक में लंबी पर पौनी राह
मंदार गए तो मौत 
नही गए तो मौत

दूसरी चौड़ी सी गली
उसमे बैठे आवामी आवाज
एक मरीज पर हजार सरोकार
मुंसिफ और संविधान
कागज सुंधता है आवाम
फिर भी हमको भावे सरकार
हम ही है आवाम और हम ही है
बे — वाकूफ


’भोले और प्यारे’ आवाम
’भोले’ शब्द को भूलने वाले
’प्यारे’ शब्द सजोएंगे
झूठो की बुनियादी अख्तियार
गुजरता कल भूलता आवाम
बहुत आसान और निर्लज हम आवाम
नए दिन में फिर नई सरकार
पर फिर वही सरकार
बे — वाकूफ




हुक्मरान- नेता लोग
आवाम — जनता
मुंसिफ — जज साहब
नौकरशाह— IAS/PCS
रकबे— Area
मंदार— पूजनीय स्थल/जहां जाके हम निरोग हो सके


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