शनिवार, 10 अप्रैल 2021

हम बहुत आसान है (पार्ट 1)

हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, अपने देश में देस बनके बैठे है
अपने आप से हम दुखी होके गुस्सा किसी और पे हो जाते है
हम बहुत आसान है, जब तक नाराज और गुस्से में फर्क नही किए
हम आसान है की, हम दुखी होते है किसी गलत काम पर
और हम आसान है की चिंता करके सो जाते है
कभी अवसर नही दिया चिंतन को अपने साथ जगने को
हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, की हम माफ़ी मांग लेते है
हम बहुत आसान है की, छोटी सहायता पे भी धन्यवाद कर देते है
हम आसान है लब्जो पे हम टिके होते है
हम बहुत आसान है की हम भरोसा नही कर पाते
हम सिर्फ़ आसान है जब पूछने से भगते है
हम आसान है की कोई बोलेगा के भरोसे है
हम बहुत आसान है की जिम्मेदार नही है
हम आसान है की छोटी बात को अनुमति दे देते है
हम शब्दो के मायने भूल जाते है
हम आसान है रोजाना हजारों माफ़ी और धन्यवाद करते है
पर कभी अपनो का धन्यवाद नही किया
हमने बहुत समय से किसी अपने को माफ नही किया
हम आसान है की किसी की गलती पे माफ़ नही करते
हम आसान है की माफ़ी मांगने से बचते है
हम आसान है जब ये भूल जाते है की हमसे भी गलती हो सकती है
हम आसान है की कद्र को कद से नाप तौल कर जाते है
हम आसान है की आवाज उठा रहे है
हम आसान है आवाजों के साथ हम खड़े होते है
पर तब हम आसान है की हम फिर भूल जाते है
हम आसान है की हम टूटे हुए है ऐसा छूट बोलते है
हमारी निष्कीयता हमारी टूटने का सबूत नही है
इसलिए हम आसान है
हम आसान की चंद पलों की खुशी देने वालो को हम अपना मार्गदर्शक मान लेते है
हम आसान की हमारे सुरक्षक, रज़्ज़ाक़ और ढेरों को कोई पूछ नही
हम आसान है की केवल मनोरंजको को कलाकर मान लेते है
तनख्वाह वाले लोगों को कला से परे मानते है
हम आसान जब कला को उसके व्यवसाय की नजर से देखते है
इसलिए हम आसान है
आसान सादगी नही है, आसान आम भी नही है
आसान गाली नही है पर आसान कोई उपाय भी नही है
आसान कोई वाजिब तरीका भी नही है
इसलिए आसान अच्छा नही है ||



देस — कम्यूनिटी
रज़्ज़ाक़ — पेट भरने/पालने वाला

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