शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

इश्क़ की राह पर

बर्बाद हो चले हम इश्क़ राह पर 
     लुटा कर हर फ़र्ज़ इसी राह पर 
     हम ढूंढ़ते रहे इस मर्ज़ की दवा 
     उन्होंने इनकार कर दिया कर्ज के नाम पर
    और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा 
    जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर 
    हमने दी उनकी रूह को चैन इस कदर 
    उन्होंने ने भुला दी मेरी रूह को बेजान फ़र्ज़ कर 
    हमने कहा देखो तो गौर से सही 
    हम भी उस सूरज से कम तो नहीं 
    तुम ढूंढ़ते हो जिसे शायद मैं वही तो नहीं 
    पर मुकर गए वो इस कदर छोड़ कर 
    तो हम ने खुद को कर ली कैद इस कदर 
    शायद हस न पड़े कोई मुझे देख कर 
   और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा 
   जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर 

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