बर्बाद हो चले हम इश्क़ राह पर
लुटा कर हर फ़र्ज़ इसी राह पर
हम ढूंढ़ते रहे इस मर्ज़ की दवा
उन्होंने इनकार कर दिया कर्ज के नाम पर
और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा
जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर
हमने दी उनकी रूह को चैन इस कदर
उन्होंने ने भुला दी मेरी रूह को बेजान फ़र्ज़ कर
हमने कहा देखो तो गौर से सही
हम भी उस सूरज से कम तो नहीं
तुम ढूंढ़ते हो जिसे शायद मैं वही तो नहीं
पर मुकर गए वो इस कदर छोड़ कर
तो हम ने खुद को कर ली कैद इस कदर
शायद हस न पड़े कोई मुझे देख कर
और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा
जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर
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