आवाज दो तुम हो कहाँ
नाम से कथाये बुना हु..
अब बना हुआ यहाँ व्यंग्य हु
अब और कितना इंतज़ार तरंग का ..
नाम से ही जी रहा....
नाम से ही रौनके ...
नाम पे ही कलाएं है..
नाम पे ही कृतियाँ...
नाम पे ही प्यार जताया.... (दुनिया को )
नाम पे ही उपहार था..
अब बन रहा उपहास है..
आवाज दो तुम हो कहाँ ....
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