बुधवार, 20 सितंबर 2017

आवाज दो तुम

आवाज दो तुम हो कहाँ
    नाम से कथाये बुना हु..
   अब बना हुआ यहाँ व्यंग्य हु
   अब और कितना इंतज़ार तरंग का ..
   नाम से ही जी रहा....
   नाम से ही रौनके ...
   नाम पे ही कलाएं है..
   नाम पे ही कृतियाँ...
   नाम पे ही प्यार जताया....                                                                        (दुनिया को )
   नाम पे ही उपहार था..
   अब बन रहा उपहास है..
   आवाज दो तुम हो कहाँ ....

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