गुरुवार, 7 सितंबर 2017

रोहिग्या दास्ताँ

रोहिग्या लोग है कौन कहा से आये है..थोड़ी बहुत जानकारी मुझे मिली जो मै बताता हु.
ये रोहिग्या लोग म्यांमार के रखाइन स्टेट से सम्बन्ध रखते  है | इसमें ज्यादातर मुस्लिम है और थोड़े बहुत हिन्दू जो की बौद्ध धर्म के लोग है | म्यांमार ने इन्हे  1980  में एक अवैध बता कर उन्हें टॉर्चर किया और उन्हें देश से निकाल दिया .तब से ये लोग अपने पड़ोसी मुल्क इंडिया और बांग्लादेश में पलायन कर के जिंदगी गुजार रहे है .म्यांमार ने इन्हे बांग्लादेश से आये हुए अवैध प्रवाशी बता कर देश से निकाल दिया था .
उनके म्यांमार देश से  निकालने में जो हिंसा हुई उसमे करीब 400  रोहिग्या मारे गए .40000  रोहिग्या इंडिया में रह रहे है जबकि UN refugee agency  के रिकॉर्ड के अनुसार 164000  रोहिग्या म्यांमार से इंडिया और बांग्लादेश पालयन किये .अब जब उन्हें सरकार देश से निकलना चाहती है और वजह ये है की सूत्रों के अनुसार ये लोग टेररिज्म में लिप्त या उनसे सम्बन्ध  वाले लोग है .अब जबकि 2  रोहिग्या ने सरकार के निर्णय  के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने 4  sept  2017  को अगली सुनवाई की डेट 11  sept  2017  दे डाली है .तब तक सरकार उन्हें देश से नहीं निकाल सकती है अब बात करते है की क्या इसपे इंटरनेशनल कानून है और क्या इंडियन लॉ कहती है .
आपको बता दे  की 1951  UN convention  को इंडिया ने sign  नहीं किया था  जिसके अनुसार refugees को किसी देश में बिना किसी जरूरती  कागजो के रहने की अनुमति है और  principle  of  non -refoulement  (उसका भी मेंबर इंडिया नहीं है) के अनुसार जो की एक इंटरनेशनल लॉ है ,कोई भी रिफ्यूजी जो की किसी देश या ग्रुप द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर किसी देश में शरण ले सकते है .एक और बात इसपे एक और इंटरनेशनल कानून बनाया गया था 1967  प्रोटोकॉल इसका भी इंडिया मेंबर नहीं है .अब बात करे  आर्टिकल-14 ,21  और 51 (स) की जो की समानता और शरणार्थियो को मध्येनजर रखते हुए बनी थी इंडिया उसका भी पालन अच्छे से कर रहा है.मतलब ये की सरकार का निर्णय रोहिग्या लोगो को बाहर निकलना किसी भी रूल का उलंघन नहीं है .बात रही अब इसांनियत की तो सब देखा जाये तो  देश की सुरक्षा सबसे जरुरी है क्योकि इससे देश के सवा सॉ करोड़ लोगो की लाइफ खतरे में पड़ सकती है .इसके लिए इंडिया को म्यांमार से बात करनी चाहिए और उन रोहिग्या लोगो को कोई न कोई आसरा तो दिलाना ही चाहिए .
अचंभित तो इस बात पे हूँ की म्यांमार की स्टेट ऑफ़ कॉउंसलर और नोबेल प्राइज फॉर पीस पाने वाली आंग सं सू की इसपे क्यों कुछ नहीं कर पा रही है ,वैसे मुझे पूरी उम्मीद है की कोई ना कोई उनकी मज़बूरी होगी . वो कोशिश जरूर कर रही होंगी पर वहाँ की तानाशाही ही वजह से वो लाचार है | क्योकि इस समय तो आंग सं सू की कि वजह से ही म्यांमार में इतने सालो से लगा हुआ मिलेट्री शासन अब जा के थोड़ी बहुत मिलेट्री और डेमोक्रेसी का गठबंधन स्वरुप लिया है.
अब इसका उपाय इंडिया और म्यांमार के बीच बातचीत से ही निकाल सकता है ताकि म्यांमार उन्हें दुबारा से रहने दे और वहाँ का सिटीजनशिप दे.
और है एक और बात की आज ये सारे कटरपंथी इस्लामिक देश कहा है जो इनको सपोर्ट करने सामने नहीं आ रहे ,इनकी कुछ मदद करने सामने नहीं आ रहे है ....|

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