सोमवार, 18 सितंबर 2017

Aung San Suu Kyi (आंग सान सू की)

आंग सान सू की एक मशहूर ,काबिल,लेखक,सहज और सबसे बड़ी दूरदर्शी सोशल वर्कर है.ये एक गाँधीवादी विचारधारा की नेता है .सबसे पहले तो ये बता दू की ये म्यांमार के राष्ट्रपिता आंग सान की सबसे छोटी बेटी है.इनके पिता जी जो बर्मा कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे.म्यांमार को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करने का बहुत बड़ा श्रेय इन्हे जाता है . बड़ी बात की वो पहले साम्यवादी (कम्युनिस्ट) विचारधारा के थे लेकिन बाद में वो लोकतंत्र की विचारधारा से प्रभावित होकर उसका पक्षधर हो गए जो इनकी मौत का कारन बना.
अपने पिता के के ही तर्ज लोकतंत्र में विश्वास रखना और उसको म्यांमार में स्थापित करने के लिए आज भी आंग सान सू की पुरे दम से लगी हुई है.
 आंग सान सू की का जन्म रंगून शहर में हुआ था जो कभी म्यांमार की राजधानी हुआ करती थी और नेताजी सुभासचन्द्र बोस की फ़ौज आजाद हिन्द का मुख्यालय यही था.इनकी माँ खिन कई भी म्यांमार की राजनीती में काफी चर्चित थी. इनकी माँ जो कभी भारत में  म्यांमार की राजदूत थी उस समय आंग सान सू की इंडिया में अपनी माँ के साथ रहकर लेडी श्री राम कॉलेज दिल्ली से राजनीति विज्ञान ग्रेजुएशन पूरा की थी .बाद में ये ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी UK से राजनितिक और अर्थशास्त्र में B .A की हासिल की.ये न्यूयोर्क शहर में रहकर UN (संयुक्त राष्ट्र ) में ३ साल काम भी की .फिर बाद में भूटान के डॉ॰ माइकल ऐरिस से शादी की और लंदन में अपने पहले बच्चे जो जन्म दिया . बाद में इन्होने लंदन के ओरिएण्टल से अफ्रीकन रिसर्च में पीएचडी की डिग्री हासिल की .उस समय म्यांमार में तानशाही चल रही थी ,खैर चल तो अभी भी रहा है .
1988  में सू अपनी बीमार माँ से मिलने वापस म्यांमार आई और यहाँ से उनकी दुनिया ही बदल गई .
म्यांमार वापस आने के बाद वह के हालत देखकर उन्होंने वहा शांतिपूर्ण ढंग से डेमोक्रेसी लाने की मुहीम अपने हाथ में ले ली .वहां की तानाशाही सरकार ने उन्हें नजरबन्द कर दिया , एक तरह को हाउस अरेस्ट मतलब ये की उन्हें अपने ही देश में कैद कर  दिया गया.वो बाहर नहीं जा सकती थी और खुद के देश में भी वो पूरी तरह से आजाद  ही थी .उनके पति को कैंसर हो गया तो उन्हें म्यांमार में आने के लिए वीसा नहीं दिया गया .इसके लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी म्म्यांमार से अपील की लेकिन म्यांमार ने ये कह कर ख़ारिज कर दिया की इनके देश में उनके उपचार के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है .बाद में उनके पति की मौत हो गयी .उनके बच्चे भी देश से बाहर थे .आज भी उनके बच्चे अपनी माँ से दूर ब्रिटेन में रहते है और सू म्यांमार में डेमोक्रेसी की लड़ाई लड़ रही है .2010  में सू को हाउस अरेस्ट से रिहा कर दिया गया .कहा ऐसा भी जाता है की एक चक्रवात में उनकी छत टूट गयी थी तो काफी दिनों तो वो बिना छत और बिजली के सड़को पे और इधर उधर गुजारी .फिर भी वो डेमोक्रेसी के लिए और तानाशाह के खिलाफ लड़ाई लड़ती रही .बाद में जब लोग उनकी बातो को समझने लगे और उनकी तरफ लोगो का झुकाव आता गया तो उन्होंने  National League for Democracy की स्थापना की .इसके लिए उनपर काफी जानलेवा हमले भी हुए .
धीरे धीरे इस संगठन से बहुत लोग जुड़ने लगे .उन्हें 1991  में इसके लिए नोबेल प्राइज दिया गया लेकिन क्योकि इनपे बाहर जाने से रोक लगा था और शर्ते भी थी की अगर ये एकबार म्यांमार छोड़कर गई तो दुबारा उन्हें म्यांमार आने पे रोक है ..तो अवार्ड उनके बेटो ने लिया .क्योकि उन्हें वही म्यांमार में रहकर तानाशाही के खिलाफ लड़ाई जो लड़नी थी.
ये भी माना जाता है की 1990  में एक जनरल इलेक्शन के पूर्वानुभास के अनुसार अगर सू इलेक्शन के लिए खड़ी होती है तो 59% लोग उन्हें इलेक्ट करते लेकिन सू इलेक्शन में नहीं खड़ी हुई .
1992  में इन्हे इंडिया में जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया .
बाद में 2016  में सू म्यांमार की 1st State Counsellor बनी जो की प्राइम मिनिस्टर पद के बराबर मन जाता है ..
आज म्यांमार में आधा लोकतंत्र है और आधा तानाशाही ..जिसे लिए इनकी लड़ाई जारी है.
अब रोहिग्या मुसलमानो को लेकर सू के ऊपर सवाल उठाने वालो को जानना चाहिए की सू शांतिप्रिय ही है लेकिन म्यांमार में सबकुछ इनके हाथो में तो नहीं है ,जैसा की बताया की अभी भी वहां तानाशाही है और सू अहिंसावादी है .


                                          (photo-google image)

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