शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

इश्क़ की राह पर

बर्बाद हो चले हम इश्क़ राह पर 
     लुटा कर हर फ़र्ज़ इसी राह पर 
     हम ढूंढ़ते रहे इस मर्ज़ की दवा 
     उन्होंने इनकार कर दिया कर्ज के नाम पर
    और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा 
    जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर 
    हमने दी उनकी रूह को चैन इस कदर 
    उन्होंने ने भुला दी मेरी रूह को बेजान फ़र्ज़ कर 
    हमने कहा देखो तो गौर से सही 
    हम भी उस सूरज से कम तो नहीं 
    तुम ढूंढ़ते हो जिसे शायद मैं वही तो नहीं 
    पर मुकर गए वो इस कदर छोड़ कर 
    तो हम ने खुद को कर ली कैद इस कदर 
    शायद हस न पड़े कोई मुझे देख कर 
   और इस क़यामत में मैं हंस यु पड़ा 
   जब वो फेर गए मुँह हमसे इजहार पर 

रविवार, 24 सितंबर 2017

बाबा


 

                                                   


         पैदा हुआ तो पहला लगाव थे आप 
         मम्मी की गोद के बाद आपका साया प्यारा था
         हर छोटी उम्मीद को बड़ा बनाते थे आप
         मिठाइयों और नई चीजों का हमारे लिए भण्डार थे आप
         गाँव की हर गली में हमारी पहचान थे आप
         छोटे पे हमारी इज्जत थे आप
        ख्वाईशो के मंदिर थे आप
        वो उबाऊ संस्कारी दूकान थे आप
        हर गलती पे समझाऊ प्याऊ थे आप
        पापा की तीखी नजरो से लड़ने वाले नायक थे आप
        रात में कहानियो के भंडार थे आप
        नाउम्मीद में नई उम्मीद की किरण थे आप
        मंदिर से लाये प्रसाद का हिस्सेदार थे आप
        त्योहारों में पेट में कूदते चूहों के पिंजरा थे आप
        रास्ते के काटो को कुचलने के लिए हमारे जूता थे आप
        हम पढ़ लिख कर आप का नाम रौशन करें इसकी ख्वाइश थे आप
        हर रात को हम कहते थे देखो अब बाबा गाएंगे
        लाउडस्पीकर पे आप की आवाज पहचान कर अब हम मुस्कराएंगे
        हमारे लिए कंधो की सवारी थे आप
        हमारी हर नई उम्मीद थे आप
        पैसो की दूकान थे आप

        अब मैं सोचता हु क्यों नहीं है पहले जैसे आप
        फिर पता चला हमारी स्वार्थ भी बढ़ गयी आप के उम्र के साथ
        आज हम आप से दूर बैठे हुए है
        हर रोज माँ बाप से ही आप का हाल लेते है
        होती है जब भी आप से बात
        समझ नहीं आता कहा से लाते है बातो में इतनी मिठास
        इस अपूर्ण स्वार्थी का हर स्वार्थ पूरा किये है आप
       और आज मैं सोच रहा कैसे गुजारु दो पल आपके साथ
       इस त्याग और बलिदान को खाली नहीं जाने देंगे हम
      आज हम सपथ लेते है आप का नाम रौशन करेंगे हम
      कुछ देर सही पर आप का सर हम नहीं झुकने देंगे
      दुनिया में आप के नाम का झंडा हम लहरा देंगे
      कुछ चुनौतियां है आज संसार में दिखावेपन का उससे जूझेंगे
      लेकिन हम पे भरोसा रखे हम भी गरज के दिखा देंगे |



                                      ( PHOTO  -  HOLI 2016  )

बुधवार, 20 सितंबर 2017

आवाज दो तुम

आवाज दो तुम हो कहाँ
    नाम से कथाये बुना हु..
   अब बना हुआ यहाँ व्यंग्य हु
   अब और कितना इंतज़ार तरंग का ..
   नाम से ही जी रहा....
   नाम से ही रौनके ...
   नाम पे ही कलाएं है..
   नाम पे ही कृतियाँ...
   नाम पे ही प्यार जताया....                                                                        (दुनिया को )
   नाम पे ही उपहार था..
   अब बन रहा उपहास है..
   आवाज दो तुम हो कहाँ ....

मंगलवार, 19 सितंबर 2017

ये दौर

हाजिरजवाबी का दौर शुरू हुआ है..
    सोचना मना है...
    नफरतो का दौर तो बहुत पहले था
   प्यार जताने का दौर शुरू हुआ है ..
   प्यार करना मना है ...
   वो गलत है लेकिन मैं प्यार करती हूँ सुनने सुनाने का दौर शुरू हुआ है...
   त्याग बलिदान मना है..
   कल वो भी मुझे चाहेगा इस वहम में बर्बाद होने का दौर शुरू हुआ है..
   जबकि उसका पलट कर प्यार करने का मन नहीं
   हालत बयां करना मना है..
   साथ रहकर चुप रहने का दौर शुरू हुआ है...
   उसकी खुशी के साथ खुद की खुशी ढूंढ़ना मना है ...
   मजबूर हु कह कर उसके पीछे कुत्ता बनने का दौर शुरू हुआ है....
   भौकना मना है....
   चलो फिर एक और दौर शुरू करो ...
   खुद से प्यार करना शुरू करो...
   हा अब और रोना मना है..

सोमवार, 18 सितंबर 2017

Aung San Suu Kyi (आंग सान सू की)

आंग सान सू की एक मशहूर ,काबिल,लेखक,सहज और सबसे बड़ी दूरदर्शी सोशल वर्कर है.ये एक गाँधीवादी विचारधारा की नेता है .सबसे पहले तो ये बता दू की ये म्यांमार के राष्ट्रपिता आंग सान की सबसे छोटी बेटी है.इनके पिता जी जो बर्मा कम्युनिस्ट पार्टी के संस्थापक थे.म्यांमार को अंग्रेजी हुकूमत से आजाद करने का बहुत बड़ा श्रेय इन्हे जाता है . बड़ी बात की वो पहले साम्यवादी (कम्युनिस्ट) विचारधारा के थे लेकिन बाद में वो लोकतंत्र की विचारधारा से प्रभावित होकर उसका पक्षधर हो गए जो इनकी मौत का कारन बना.
अपने पिता के के ही तर्ज लोकतंत्र में विश्वास रखना और उसको म्यांमार में स्थापित करने के लिए आज भी आंग सान सू की पुरे दम से लगी हुई है.
 आंग सान सू की का जन्म रंगून शहर में हुआ था जो कभी म्यांमार की राजधानी हुआ करती थी और नेताजी सुभासचन्द्र बोस की फ़ौज आजाद हिन्द का मुख्यालय यही था.इनकी माँ खिन कई भी म्यांमार की राजनीती में काफी चर्चित थी. इनकी माँ जो कभी भारत में  म्यांमार की राजदूत थी उस समय आंग सान सू की इंडिया में अपनी माँ के साथ रहकर लेडी श्री राम कॉलेज दिल्ली से राजनीति विज्ञान ग्रेजुएशन पूरा की थी .बाद में ये ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी UK से राजनितिक और अर्थशास्त्र में B .A की हासिल की.ये न्यूयोर्क शहर में रहकर UN (संयुक्त राष्ट्र ) में ३ साल काम भी की .फिर बाद में भूटान के डॉ॰ माइकल ऐरिस से शादी की और लंदन में अपने पहले बच्चे जो जन्म दिया . बाद में इन्होने लंदन के ओरिएण्टल से अफ्रीकन रिसर्च में पीएचडी की डिग्री हासिल की .उस समय म्यांमार में तानशाही चल रही थी ,खैर चल तो अभी भी रहा है .
1988  में सू अपनी बीमार माँ से मिलने वापस म्यांमार आई और यहाँ से उनकी दुनिया ही बदल गई .
म्यांमार वापस आने के बाद वह के हालत देखकर उन्होंने वहा शांतिपूर्ण ढंग से डेमोक्रेसी लाने की मुहीम अपने हाथ में ले ली .वहां की तानाशाही सरकार ने उन्हें नजरबन्द कर दिया , एक तरह को हाउस अरेस्ट मतलब ये की उन्हें अपने ही देश में कैद कर  दिया गया.वो बाहर नहीं जा सकती थी और खुद के देश में भी वो पूरी तरह से आजाद  ही थी .उनके पति को कैंसर हो गया तो उन्हें म्यांमार में आने के लिए वीसा नहीं दिया गया .इसके लिए अमेरिका और संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी म्म्यांमार से अपील की लेकिन म्यांमार ने ये कह कर ख़ारिज कर दिया की इनके देश में उनके उपचार के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है .बाद में उनके पति की मौत हो गयी .उनके बच्चे भी देश से बाहर थे .आज भी उनके बच्चे अपनी माँ से दूर ब्रिटेन में रहते है और सू म्यांमार में डेमोक्रेसी की लड़ाई लड़ रही है .2010  में सू को हाउस अरेस्ट से रिहा कर दिया गया .कहा ऐसा भी जाता है की एक चक्रवात में उनकी छत टूट गयी थी तो काफी दिनों तो वो बिना छत और बिजली के सड़को पे और इधर उधर गुजारी .फिर भी वो डेमोक्रेसी के लिए और तानाशाह के खिलाफ लड़ाई लड़ती रही .बाद में जब लोग उनकी बातो को समझने लगे और उनकी तरफ लोगो का झुकाव आता गया तो उन्होंने  National League for Democracy की स्थापना की .इसके लिए उनपर काफी जानलेवा हमले भी हुए .
धीरे धीरे इस संगठन से बहुत लोग जुड़ने लगे .उन्हें 1991  में इसके लिए नोबेल प्राइज दिया गया लेकिन क्योकि इनपे बाहर जाने से रोक लगा था और शर्ते भी थी की अगर ये एकबार म्यांमार छोड़कर गई तो दुबारा उन्हें म्यांमार आने पे रोक है ..तो अवार्ड उनके बेटो ने लिया .क्योकि उन्हें वही म्यांमार में रहकर तानाशाही के खिलाफ लड़ाई जो लड़नी थी.
ये भी माना जाता है की 1990  में एक जनरल इलेक्शन के पूर्वानुभास के अनुसार अगर सू इलेक्शन के लिए खड़ी होती है तो 59% लोग उन्हें इलेक्ट करते लेकिन सू इलेक्शन में नहीं खड़ी हुई .
1992  में इन्हे इंडिया में जवाहर लाल नेहरू पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया .
बाद में 2016  में सू म्यांमार की 1st State Counsellor बनी जो की प्राइम मिनिस्टर पद के बराबर मन जाता है ..
आज म्यांमार में आधा लोकतंत्र है और आधा तानाशाही ..जिसे लिए इनकी लड़ाई जारी है.
अब रोहिग्या मुसलमानो को लेकर सू के ऊपर सवाल उठाने वालो को जानना चाहिए की सू शांतिप्रिय ही है लेकिन म्यांमार में सबकुछ इनके हाथो में तो नहीं है ,जैसा की बताया की अभी भी वहां तानाशाही है और सू अहिंसावादी है .


                                          (photo-google image)

गुरुवार, 7 सितंबर 2017

रोहिग्या दास्ताँ

रोहिग्या लोग है कौन कहा से आये है..थोड़ी बहुत जानकारी मुझे मिली जो मै बताता हु.
ये रोहिग्या लोग म्यांमार के रखाइन स्टेट से सम्बन्ध रखते  है | इसमें ज्यादातर मुस्लिम है और थोड़े बहुत हिन्दू जो की बौद्ध धर्म के लोग है | म्यांमार ने इन्हे  1980  में एक अवैध बता कर उन्हें टॉर्चर किया और उन्हें देश से निकाल दिया .तब से ये लोग अपने पड़ोसी मुल्क इंडिया और बांग्लादेश में पलायन कर के जिंदगी गुजार रहे है .म्यांमार ने इन्हे बांग्लादेश से आये हुए अवैध प्रवाशी बता कर देश से निकाल दिया था .
उनके म्यांमार देश से  निकालने में जो हिंसा हुई उसमे करीब 400  रोहिग्या मारे गए .40000  रोहिग्या इंडिया में रह रहे है जबकि UN refugee agency  के रिकॉर्ड के अनुसार 164000  रोहिग्या म्यांमार से इंडिया और बांग्लादेश पालयन किये .अब जब उन्हें सरकार देश से निकलना चाहती है और वजह ये है की सूत्रों के अनुसार ये लोग टेररिज्म में लिप्त या उनसे सम्बन्ध  वाले लोग है .अब जबकि 2  रोहिग्या ने सरकार के निर्णय  के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट गए तो सुप्रीम कोर्ट ने 4  sept  2017  को अगली सुनवाई की डेट 11  sept  2017  दे डाली है .तब तक सरकार उन्हें देश से नहीं निकाल सकती है अब बात करते है की क्या इसपे इंटरनेशनल कानून है और क्या इंडियन लॉ कहती है .
आपको बता दे  की 1951  UN convention  को इंडिया ने sign  नहीं किया था  जिसके अनुसार refugees को किसी देश में बिना किसी जरूरती  कागजो के रहने की अनुमति है और  principle  of  non -refoulement  (उसका भी मेंबर इंडिया नहीं है) के अनुसार जो की एक इंटरनेशनल लॉ है ,कोई भी रिफ्यूजी जो की किसी देश या ग्रुप द्वारा प्रताड़ित किये जाने पर किसी देश में शरण ले सकते है .एक और बात इसपे एक और इंटरनेशनल कानून बनाया गया था 1967  प्रोटोकॉल इसका भी इंडिया मेंबर नहीं है .अब बात करे  आर्टिकल-14 ,21  और 51 (स) की जो की समानता और शरणार्थियो को मध्येनजर रखते हुए बनी थी इंडिया उसका भी पालन अच्छे से कर रहा है.मतलब ये की सरकार का निर्णय रोहिग्या लोगो को बाहर निकलना किसी भी रूल का उलंघन नहीं है .बात रही अब इसांनियत की तो सब देखा जाये तो  देश की सुरक्षा सबसे जरुरी है क्योकि इससे देश के सवा सॉ करोड़ लोगो की लाइफ खतरे में पड़ सकती है .इसके लिए इंडिया को म्यांमार से बात करनी चाहिए और उन रोहिग्या लोगो को कोई न कोई आसरा तो दिलाना ही चाहिए .
अचंभित तो इस बात पे हूँ की म्यांमार की स्टेट ऑफ़ कॉउंसलर और नोबेल प्राइज फॉर पीस पाने वाली आंग सं सू की इसपे क्यों कुछ नहीं कर पा रही है ,वैसे मुझे पूरी उम्मीद है की कोई ना कोई उनकी मज़बूरी होगी . वो कोशिश जरूर कर रही होंगी पर वहाँ की तानाशाही ही वजह से वो लाचार है | क्योकि इस समय तो आंग सं सू की कि वजह से ही म्यांमार में इतने सालो से लगा हुआ मिलेट्री शासन अब जा के थोड़ी बहुत मिलेट्री और डेमोक्रेसी का गठबंधन स्वरुप लिया है.
अब इसका उपाय इंडिया और म्यांमार के बीच बातचीत से ही निकाल सकता है ताकि म्यांमार उन्हें दुबारा से रहने दे और वहाँ का सिटीजनशिप दे.
और है एक और बात की आज ये सारे कटरपंथी इस्लामिक देश कहा है जो इनको सपोर्ट करने सामने नहीं आ रहे ,इनकी कुछ मदद करने सामने नहीं आ रहे है ....|

सोमवार, 4 सितंबर 2017

एक सच्ची कहानी

                                                       
                       बताया जाता है कि यह मैरी की फांसी की तस्वीर है हम नहीं जानते कि यह तस्वीर असली है या नकली, लेकिन इसके पीछे की कहानी आप जरूर जानना चाहेंगे. ब्रिटिश वेबसाइट 'डेली मेल' ने यह कहानी छापी है. 1916 की बात है. चार्ली स्पार्क नाम का एक शख्स सर्कस चलाता था. मैरी नाम की एक हथिनी इस सर्कस का हिस्सा थी. सितंबर 1916 में, यह सर्कस किंग्सपोर्ट नाम के एक छोटे शहर पहुंचा. प्रचार के लिए शहर की मुख्य सड़क से सर्कस की परेड निकली. इस दौरान मैरी की सवारी कर रहा था 38 साल का वॉल्टर एल्ड्रिज. उसे हाथियों को काबू करने का कोई खास अनुभव नहीं था. उसे बस यह कहा गया था किहथिनी के शरीर से भालेनुमा छड़ी को लगाए रखना है, इससे वह काबू में रहेगी. परेड के दौरान मैरी को तरबूज का एक टुकड़ा पड़ा हुआ दिखा, जिसे खाने के लिए वह रुक गई. अधीर एल्ड्रिज ने उसे एक से ज्यादा बार छड़ी चुभा दी. हाथी अपने गुस्से के लिए जाने जाते हैं. एल्ड्रिज की हरकत मैरी को पसंद नहीं आई . उसने उसे सूंड से उठाकर नीचे पटक दिया और उसका सिर कुचल दिया. एल्ड्रिज की मौत हो गई. यह वह समय था जब लोकतंत्र मजबूत नहीं था और भीड़तंत्र ही फैसले लिया करता था. गुस्साई भीड़ ने मैरी को मार डालने की मांग की. सर्कस के मुखिया चार्ली स्पार्क ने बिना विरोध किए यह मांग मान ली. लेकिन उन्होंने तय किया कि वह मैरी के अंत को लोगों के लिए दर्शनीय बनाएंगे. मैरी को मौत कैसे दी जाए इस पर चर्चा हुई और स्पार्क ने तय किया कि उसे फांसी दी जाएगी. दूसरे शहर एरविन से 100 टन की क्रेन मंगवाई गई. इसका इस्तेमाल आम दिनों में रेलवे कैरेज उठाने के लिए होता था. स्पार्क ने मैरी की फांसी का इंतजाम खुले में करवाया ताकि लोग देखने आ सकें. मैरी को एक रेल से बांधा गया. उसकी मोटी गर्दन के इर्द-गिर्द चेन बांधी गई. जैसे ही क्रेन ने उसे उठाया, आसमान एक तीखी और क्रूर आवाज से भर गया. वह दर्द में थी. उसने एक भयानक चिंहाड़ मारी. उसे पांच फीट ही उठाया जा सका था कि चेन टूट गई थी. ऊंचाई से गिरने से उसके कूल्हे की हड्डियां चटक गईं. मैरी के पांव अब भी उस जंजीर से बंधे थे, जो रेल से जु़ड़ी थी. लेकिन यह दर्दनाक तमाशा अभी खत्म नहीं हुआ था. एक मजबूत चेन मंगवाई गई और मैरी की गर्दन पर बेरहमी से बांध दी गई. उसे फिर उठाया गया और आधे घंटे तक लटकाकर रखा गया. तब तक, जब तक उसकी मौत में कोई शक-सुबहा न रह जाए. मैरी नहीं रही. मैरी, जिसे वहां के लोग 'मर्डरस मैरी' यानी हत्यारिन मैरी नाम से जानते थे. बताया जाता है कि आज भी एरविन शहर मैरी की फांसी की वजह से जाना जाता है. मैरी की तलाश में एक बार एक बड़ी कब्र भी खोदी गई थी, पर उसका कोई सुराग न मिला.



                                                   ( Source - During Random net Surfing )
                                                       (अच्छा लगा तो यहाँ जोड़ लिया )

Indian honours and decorations


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