मंगलवार, 14 दिसंबर 2021

केवल प्रेम ही विकल्प हो सकता है

(एहतियात– मुझे/तुम्हे शब्दों को सावधानी से पढ़े)

मुझे तुम्हारी जरूरत है...
हो सकता है तुम्हे मेरी नहीं
काली राते नागवार हैं मेरे लिए
हो सकता है तुम्हे रातों में रौशनी नापसंद
मुझे एकांत पसंद है
हो सकता है पंचायत पसंद हो तुम्हे
तुम्हे महिमा मंडन पसंद नहीं
मुझे लग सकता है की महिमा प्रसार हो
मुझे नारीवाद होना अच्छा लगता है
हो सकता है तुम मानवता में अव्वल हो
मुझे साम्यवाद पसंद है
हो सकता है तुम्हे समाज में उथल पुथल न पसंद हो
पर मुझे चोटिल होना पसंद नहीं
हो सकता है नारीवाद साम्यवाद में ये मुमकिन न हो
हो सकता है मानवता और स्थिरता में ये मुमकिन हो
मुझे रातों में चलना पसंद है
हो सकता है तुम्हे रात में स्थिर होना हो
वो नाकाबिल है पर जायज है गर वो सफल हो
वो काबिल है पर जायज नहीं गर उसे नाकाबिल जायज न लगे
इसलिए 
हो सकता है तुम अस्थिर हो
मुझे लग सकता है तुम स्थिर हो
तुम्हे पश्चिम दिशा पसंद नहीं
पर तुम्हारा घर मेरे घर के पश्चिम में है
तो हो सकता मेरा पसंदीदा दिशा पश्चिम हो
क्योंकि मुझे तुम्हारी जरूरत है
और हो सकता है तुम्हे मेरी नहीं
हमारी पसंद, विचार अलग हो सकते है
हमारी पहचान, काम अलग हो सकते है
पर नफरत के लिए ये सब भी काफी नहीं
हो सकता है प्रेम विकल्प इसके बाद भी हो...

बुधवार, 8 दिसंबर 2021

आप और तुम

उसका "आप" बोलना उसकी मासूमियत थी
मैं अपने "तुम" में अपने गवारेपन की नाज पे था

वो दशवी पास बहुत जिम्मेदार थी
मैं ग्रेजुएट उसका माथा भी नहीं चूम सका

मैं उसको अच्छा लगा तो उसने मेरा हाथ थामा और मुस्कुराया
मैं सहमा सा शाम की राह देखता रहा

मेरे को अच्छा समझी वो और गले से लगाया
मैं मौके की गिरफ्त में उसकी आंखो में देख भी न सका

"आप मुझे दुबारा मिलोगे" की उसके सवाल में 
मैं लेटा "तुम" की नशे में एक झूठा वादा भी न कर सका

हुई थी हमारी बात फिर कई रोजो बाद
इतने दिनो में मेरा गवारापन "तुम" और "आप" की दूरियां नाप रहा था
वो पूछी "आप कैसे है"

मेरे गवारेपन ने उसके बॉयफ्रेंड के बारे में पूछा
उसने मुझे अपने स्कूल वाले प्यार के बारे में बताया
और पूछा अब कोई ऐसा होगा जो ऐसा प्रेम कर सके

वो सुंदरी जिंदगी में जीना जानती थी
मैं सहूलियत खोजते खोजते जी भी न सका था

उसने मुझसे पूछा शादी करोगे आप मुझसे
मैं हंसा और कुछ न बोला

बुधवार, 10 नवंबर 2021

आ सखी चुगली करें

आ सखी चुगली करें..
इधर उधर की बाते करें

आ सखी चुगली करे...
हम सात समंदर साथ चले
करे बाते खूब ढेर सारी
कह दो की बरकत करे
आ सखी चुगली करे

संभावनाओं का खेल खेले
पैसों का व्यापार करे
मन भर का उपहास करे
आ सखी चुगली करे

गरीबों के साथ सोए
अमीरों के साथ जगे
पानी के साथ बहे
जिंदगी की कस्ती खोजे

तू भूल अपनी गरिमा
मैं भूलू अपनी महिमा
एक नाव में करे सवारी
चल कहीं दूर चले
तलवारों की प्लेट बनाए
फूलों की महक सजाएं
चांद से करें शिकायते
सूरज को पीठ दिखाए
तू मेरी पूजा कर
मैं तेरे से इबादत सीखू
आ भूल जाए अपनी भाषा
इशारों में बात करें
आ सखी चुगली करे

आ हम सिर्फ सच बोले
शर्म – फर्ज करे किनारे
नदियों से पानी मांगे
पर्वतों से छत
पेड़ो से खाना मांगे
जानवरों से रथ
हवाओ से रास्ता पूछे
जमीं से अंक
अग्नि से हम गर्मी मांगे
बर्फ से ठंड
फिर करे बाते छोटी छोटी
मैं तुझे कहानियां सुनाऊं
तू मुझे इशारे करे
आ सखी चुगली करें

आ करे हम खूब बुराई
तू कर राजा की खूब बुराई
मैं रंक का करू धुनाई
आ बिचारवाद को फेंक चले
तू प्रेमनगर की नींव डाल
मैं फूलों भंवरो को न्योता दू
गज़ल की मुद्रा तैयार करे
आ सखी चुगली करें



मंगलवार, 9 नवंबर 2021

रंग

कई रंग देखे उल्फतो में
फूलों में
कलियों में
त्योहारों में
मनोरंजनों में
चुन न सका कोई उनमें अपना
जब तक तू न आई थी
रौशनी का श्रृंगार करके

सोमवार, 1 नवंबर 2021

पहाड़ों से दूर हूं

अब चाय की प्याली गर्म,
और चाय ठंडी सी लगती है,
अब जो पहाड़ों से दूर हूं ।।

बहुत भीड़ सा लगता है,
एक कमरे में लेटा हुआ हू ।
पर कई लोगो से घिरा हुआ लगता है,
अब जो उन वादियों से दूर हूं ।।

धूप चिड़चिड़ी सी लगती है,
पानी फीका सा लगता है,
हवाएं जबरदस्ती सी लगती है ।
मैं धूप में छांव लेता,
सूरज को कभी कभी आंखे दिखा देता,
बड़ा ढीठ सा था मैं वहा ।
पानी और नदी सब एक ही है वहा ।
हवा मौज में होती है,
कब कहा छेड़ जाए,
बस अपनी मुस्कान ही गवाह है वहा ।
अब धूप, पानी, हवा, नदी और छेड़खानी,
सब दूर सा लगता है,
अब जो उचाइयो से दूर हूं ।।

सब है यहां,
मां – बाबा , भाई – बहन और दोस्त,
पर बहुत अकेला सा लगता है ।
खोजता हूं अपने सर पे मखमली टोपी,
जिसे मैं बड़े चाव से सजाता सजने के लिए,
उसके लिए जिसकी आंखे भोली और छोटी है ।
मैं ठंड में ठिठुरता और वो लंबे ‘शाल’ ओढ़े मुझपे हंस पड़ती,
एक सुर्ख हाथ मेरे गालों पे पड़ती और बोलती ठहरो जरा,
हाथ में एक प्याली जिसमे मीठी सी खुशबू और धुआं,
साथ बैठती और पीती ।
खिलखिला के पूछती "कहो ...आया मजा" ।
वो वादियों की रानी अब दूर है,
अब जो मैं हिमांचल से दूर हो ।।

मेरी पहाड़न
जो नदी, हवा, पेड़ो से बनी सी लगती है,
उचाइयों में बसी एक छोटी कद की मुस्कुराती और बहती सी लड़की ।
अलाव और हमबिस्तर हम,
कैसे भुल जाऊ उसके सुर्ख होठों की गर्मी,
नम आंखे और सुलगता बदन ।
उसने मुझे रातों में शोर सुनना सिखाया,
लंबे पेड़ो को गले लगना,
और शीत को गालों पे बिखेरना सिखाया ।
गोद में ठहराव सिखाया,
इश्क में इबादत सिखाया,
और रूह में खूबसूरत जीवन दिखाया
मुस्कुराहट, शरारत, इबादत सब भुला सा लगता है
अब जो मैं पहाड़न से दूर हूं ।।।


शनिवार, 28 अगस्त 2021

बाबूजी गुजर गए

गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है
बाबूजी गुजर गए पर मझिले भईया ने बोला बाबूजी उनको हमेशा डांटते 
और मां जो गम में अंधकार हो गई है साजिशे करती थी
बाबूजी गुजर गए
आज सब एक हो गए, सब एक छत के नीचे खड़े है
बाबूजी की चाहत , उनके मरने के बाद 
सब निराश है, मां के लिए
अब भी सब एक दुसरे से नजरे नही मिलाते
और जब भी मिलाते गीले शिकवे ही करते
कभी एक दूसरे वाले फिर बाबूजी वाले
कौन कहता है गीले सिकवे मरने के बाद नहीं होते
बड़े वाले भईया हमारे बाबूजी सामान है
कल वो कमरे में अपने बच्चो के साथ हस खेल रहे थे
बीबी के साथ खुश थे, पर कमरे से बाहर मां याद आ ही जाती है
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
चिंता में है सब कि क्या होगा मां का
क्योंकि साथ नही रख सकते
पर क्यों नही रख सकते ?
सब बहुत निराश है, की मां का क्या होगा
अब बहुत दिनो की देर हो गई, बाबूजी को सब भूल गए
और निराश है मां के लिए बस स्वार्थ निराश
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
क्या छोड़ कर गए है, पर सब बाबूजी के नाम पर है
नाम तो बदलना होना, हक भी बदलना पड़ेगा
कुछ बड़े भैया, कुछ मझिले और कुछ पे मेरा हक डालना होगा
मां अकेली है, पर वो इंतजार में है की उनपे भी कोई अपना हक बताए
पर कैसे ? कब तक ?
और उसका क्या जो गीले शिकवे बाबूजी से थे
अब वही गीले शिकवे मां को भी तो सौंपना है
बाबूजी गुजर गए
गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है




शुक्रवार, 23 जुलाई 2021

सरकार हमके पहचान नईखे पावत

हमरी किसान खाता में पैसा नाही आवे
बैंक वाला बोले 50 हजार दो
5 हजार रुपया कर्ज लिए रही
उप्पर से किसान बिल आ गइल
गयनी हम सरकार से मिले
ऊ बोले तू किसान नाही 

हमरी बेटा फौज में
गइल ट्रेन में थोड़ा छूट वाला टिकट करावे
साहेब बोले तू सैनिक नाही

हमरी छोटका के 5 साल से पेपर रुकल बा
उहनी के गइला धरना देवे
पुलिस डंडा बरसा दीही
बोले गुंडा लोग है, विद्यार्थी नाही

हमरी लड़किया पगली एगो मिया से प्रेम में पड़ गइल
हम त माथा पकड़ लिहनी
लेकिन हम्हू त चंदनिया से प्रेम कइले रहली
त 9—10 महीना बाद मान गईनी
अरे हम्हु जानत रहनी की लड़का बहुत संस्कारी हवे
जैसे तैसे हम कहनी ठीक बा
पर अगला दिने 6—7 जन लोग आइल
ओमे प्रमोद भी रहले(अरे उहे जन जे अपना लुगाई के डंडा से मार के मुआ डिहले, लुगाइया के बाप दहेज में भारी सोने के सिकड़ी न दिहले रहल)
बोले शादी करब त जान से मार देब
ई लभ जिहाद ह, प्रेम नाही

गईनी हम वृद्ध पेंशन लेब
साहेब बहुत घूर के देखनी
कहनी 5 साल पहिले तू मर गइले, जिंदा नाही

अब हमरो रोटी के दिक्कत में
सब्र टूट गइल
छोटका के माई (चंदनिया) से कहनी हम त मर गइनी
तू विधवा, विधवा पेंशन ले ले
भूखा पेट ओकरा के जैसे तैसे मनैनी
गइनी दफ्तर में
ओजुगो सहेबबा छोटका के माई के घुरलस
हमार त खुने खौल गइल
पर ऊ जब बोल लस ....
तोहरा पति बिशनाथ जिंदा बाड़े
चंदनिया शर्म के मारे भाग गइल
अरे हमर नाव त मंगरू हवे
त ई बिशनाथ कौन हावे ?
साहेब कहले तू विधवा नाही

एक दिन मुख्यमंत्री जी हमरा गावे आइले
बड़का घर के लोग से मिले, साहेब के खास हावो लो
खुबे माइक ले के सुंदर सुंदर मैडम लो भी रहली लो
हमु ओहि भिंड में एगो कोना में बैठे रहनी
साहेब जब जाए लगलन त हम हाथ बढ़ा दिहनी
सर पे साथ रख कर साहेब कहलन की सब ठीक न ?
हम कह दिहनी न साहेब, तनी हमरा घरी बिजली आ जैत
बस अहि पे बवाल हो गइल**
एगो माइक वाला मैडम हमसे पूछे किस पार्टी से हो
त एगो पूछे कौन देश से हो, पासपोर्ट कहा बाटे
त ले एगो खूबे उंगली दिखावत ओरी खूबसूरत चेहरा से चिल्लावत मैडम कहता बाड़ी
मुख्यमंत्री जी कहलेे की
हम देशद्रोही हई, देशभक्त नाही

सरकार हमके पहचान नईखे पावत ||

Rythem and grammar mistakes expected.
Work is pending on this craft.
Pure hindi and english version can be expected.
Time nhi milta ⌛



शनिवार, 8 मई 2021

एक मासूम दिल सा

एक मासूम दिल सा
प्यार की खिड़की पे खड़ी

अपने को आईने में देख मुस्कुराना
जवां उम्र में बच्चो सी नखरे
हजारों नफरत पे आंखे दिखाए
मेरी एक हल्की गुस्से पे वो पूरी बरसती हुई
कही तो होगी
एक मासूम दिल सा.....

सुबह में उठते समय से पूछे
आंखो को रोज क्या ही दिखाए
इंतजार अब तुम समय से परे हो
एक पल को समझना पड़ेगा
फिर अगले रोज सांसों में भक्ति
अगले पल तो मिलेगी
एक मासूम दिल सा.....

रातों में तकिए को एक गीत सुनाती
कभी आंखो का बोझ उतारे
एक अदब से सिरहन में करवट बदलते
चादर पे मेरा नाम लिखते सही
आंखो से पूछे दिखाई दिए ?
एक मासूम दिल सा.....

कभी बारिशों मेंं भीगती हुई
हल्की धूप सी सुलगती हुई
नजरो में नजारे संजोती हुई
इश्क पे पहरा, इशारों को यूं ही टिकाए हुई
मिलने को आतुर 
एक मासूम दिल सा.....




गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

आओ आज सच लिखते है

आओ आज सच लिखते है
नहीं है भारत महान हमारा
हटाओ ये भावनाओ के ओझल
नहीं याद आता हमे तिरंगा
ये देश पड़ा हुआ अधमरा
अभी भी गुलामी के चंगुल में पड़ा
शैतानी हुक्मो में देश फंसा
जम्हूरियत बताते पर तुगलक है बैठे
हजारों के मौत और लाखों चित्कार
दस्तूरे —भारत बस किताब में पड़ा
अदालत और विधान सब है मौन
आवाम खामोश की हम थोड़ी मरे
2–4 जो आवाज उठाए
ध्वनि बता कर खामोश कराए
सारे आवाम मूकदर्शक है बैठे
हंसते खेलते ये आवाम
अपनी बारी की इंतज़ार में बैठे
फिर भी हमारे तारीखों में हुक्मरान महान
बाकी सब है बड़े आम

आओ आज हम सच लिखते है
तुम झूठ बोलते हो मंच से बोलते हो
देश को यू ही महान बोलते हो
मरते लोगों से मुंह फेरते हो
देश को यू ही ठीक बोलते हो
देश को दीमक से बचाने
कहते हुए खुद दीमक बने हो
100 मरते तो 1 बताते
सच बोलते तो एक और मारते हो
खाली डब्बा भेजते हुए
लाखो में तुम झूठ बांटते हो
कहते हो तुम अपने सहाफियो से
देखो दिखाओ की सब नाच रहे है
दुश्मन को हम सांच रहे है
खुद एक दुश्मन बन बैठे हो
कहते हो कहने वाले सब बैरी 
इनको भी मारो देश महान बनाओ
बेबस भी और मूर्ख आवाम
झूठा देश और झूठा महान
आओ आज सच लिखते है


जम्हूरियत– प्रजातंत्र
दस्तूरे —भारत –  भारत का संविधान
सहाफिय – पत्रकार (news/media)
तारीख– इतिहास




शुक्रवार, 16 अप्रैल 2021

बे — वाकूफ

बड़े बे — वाकूफ है आवाम
आवाजों पे दौड़ते ये आवाम
हुक्मरान की मचान अपनी आवाम
सड़को पे नंगे दौड़ते ये अंबार
मुंसिफो के भरोसे आजाद होने का बरघलाया इंसान
बे — वाकूफ 

तमिजदारो को पैदा करते ये आम आवाम
आदर्श नौकरशाह पैदा करते ये आवाम
रहनुमाओं के जूतेे तले पलते ये आवामी आदर्श नौकरशाह
वाह रे तालीम —ए— नौकरशाह
हमारे रकबे के रखवाल चौकीदार
पढ़े लिखे आवाम
बे — वाकूफ

चुनाव देशी त्योहार
लाखों की शक्ति एक गवार को प्रदान
आवाम बनाते उनको इतना खास
खुद बेचारे बड़े आम
कोई सड़को पे मिलो पैदल चले
कोई अस्पतालों के किनारे कुत्तों से पड़े
कोई रैली में घिनौनी मुस्कान उछाले
कोई सड़क किनारे पेड़ों पे अपना सर लटकाए
कोई हर्जाना भरते भीड़ निहारे
कोई भीड़ में जयकारा लगाए
पर अपनी पहचान ही बस ’आधार’
आवाम बस हो तुम बड़े
बे — वाकूफ

एक मंदार दो गली
एक में लंबी पर पौनी राह
मंदार गए तो मौत 
नही गए तो मौत

दूसरी चौड़ी सी गली
उसमे बैठे आवामी आवाज
एक मरीज पर हजार सरोकार
मुंसिफ और संविधान
कागज सुंधता है आवाम
फिर भी हमको भावे सरकार
हम ही है आवाम और हम ही है
बे — वाकूफ


’भोले और प्यारे’ आवाम
’भोले’ शब्द को भूलने वाले
’प्यारे’ शब्द सजोएंगे
झूठो की बुनियादी अख्तियार
गुजरता कल भूलता आवाम
बहुत आसान और निर्लज हम आवाम
नए दिन में फिर नई सरकार
पर फिर वही सरकार
बे — वाकूफ




हुक्मरान- नेता लोग
आवाम — जनता
मुंसिफ — जज साहब
नौकरशाह— IAS/PCS
रकबे— Area
मंदार— पूजनीय स्थल/जहां जाके हम निरोग हो सके


शनिवार, 10 अप्रैल 2021

हम बहुत आसान है (पार्ट २)

हम बहुत आसान है
अगर हम बैठे बैठे गुस्सा हो रहे है 
तो हम बहुत आसान है
ये हम सोच रहे है की हम क्या कर रहे है
पर फिर कुछ दैनिको वही सोच रहे है
तो हम बहुत आसान है
हम अगर दुखद समाचार पे सिर्फ दुखी हो रहे है
फिर हम बहुत आसान है
हम जागरिक नर बनके 
सिस्टम की खामियां बता रहे है
तो हम बहुत आसान है
हम बहुत आसान है की
सामने वाले की मेहनत में हमे लोगो की मूर्खता दिखता है
हम आसान है की सब कुछ बस आसानी से बोल देते है
हम आसान है की हम हाथ में थामे डिजिटल से दुनिया में डिजिटल खोज रहे है
हम समय से पैसा कमा रहे है, खा रहे है, सो रहे है , रो रहे है,
हस रहे है तो हम आसान है
हम आसान है की किसी की एक गलती उसकी रोज की संघर्ष भुला देती है
हम आसान है
हम आसान है की हम नियम मानते चले जा रहे है
हम आसान है की नियम को कार्य समझने लग रहे है
तब तक हम आसान है जब ’लेकिन’ हम बोल पाते
आसान कभी मूल्यवान नही होता और
पैसा ही सिर्फ मूल्यवान नही होता
क्योंकि पैसा कमाना बहुत आसान होता है
हम आसान है हम बेपरवाह है
हम आसान है हमें प्यार चाहिए क्योंकि बस हम चाहते है
हम आसान है की प्यार जताते नही है
हम आसान है की ’लोग समझ जाएंगे’ को ही कर्म मान लेते है
हम आसान है हम दूसरो की पहचान में उनका किरदार खोजते है
किरदार होने का पहचान से अलग होना हमे शोभा नही देता
ये आसान है
हम आसान है की हम नारीवादी है
पर तब तक हम आसान है की सौंदर्य को सिर्फ नारी तक सीमित रखें है
आसान है अब ढोंगियों की पहचान करना
पर हम आसान है की पहचान की पहचान उनकी वेश भूषा से कर रहे
अभी के लिए बस आसान अच्छा नही है

हम बहुत आसान है (पार्ट 1)

हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, अपने देश में देस बनके बैठे है
अपने आप से हम दुखी होके गुस्सा किसी और पे हो जाते है
हम बहुत आसान है, जब तक नाराज और गुस्से में फर्क नही किए
हम आसान है की, हम दुखी होते है किसी गलत काम पर
और हम आसान है की चिंता करके सो जाते है
कभी अवसर नही दिया चिंतन को अपने साथ जगने को
हम बहुत आसान है,
हम बहुत आसान है, की हम माफ़ी मांग लेते है
हम बहुत आसान है की, छोटी सहायता पे भी धन्यवाद कर देते है
हम आसान है लब्जो पे हम टिके होते है
हम बहुत आसान है की हम भरोसा नही कर पाते
हम सिर्फ़ आसान है जब पूछने से भगते है
हम आसान है की कोई बोलेगा के भरोसे है
हम बहुत आसान है की जिम्मेदार नही है
हम आसान है की छोटी बात को अनुमति दे देते है
हम शब्दो के मायने भूल जाते है
हम आसान है रोजाना हजारों माफ़ी और धन्यवाद करते है
पर कभी अपनो का धन्यवाद नही किया
हमने बहुत समय से किसी अपने को माफ नही किया
हम आसान है की किसी की गलती पे माफ़ नही करते
हम आसान है की माफ़ी मांगने से बचते है
हम आसान है जब ये भूल जाते है की हमसे भी गलती हो सकती है
हम आसान है की कद्र को कद से नाप तौल कर जाते है
हम आसान है की आवाज उठा रहे है
हम आसान है आवाजों के साथ हम खड़े होते है
पर तब हम आसान है की हम फिर भूल जाते है
हम आसान है की हम टूटे हुए है ऐसा छूट बोलते है
हमारी निष्कीयता हमारी टूटने का सबूत नही है
इसलिए हम आसान है
हम आसान की चंद पलों की खुशी देने वालो को हम अपना मार्गदर्शक मान लेते है
हम आसान की हमारे सुरक्षक, रज़्ज़ाक़ और ढेरों को कोई पूछ नही
हम आसान है की केवल मनोरंजको को कलाकर मान लेते है
तनख्वाह वाले लोगों को कला से परे मानते है
हम आसान जब कला को उसके व्यवसाय की नजर से देखते है
इसलिए हम आसान है
आसान सादगी नही है, आसान आम भी नही है
आसान गाली नही है पर आसान कोई उपाय भी नही है
आसान कोई वाजिब तरीका भी नही है
इसलिए आसान अच्छा नही है ||



देस — कम्यूनिटी
रज़्ज़ाक़ — पेट भरने/पालने वाला