सौहार्द से उठी माया का ही एक रूप हो,
आँचल में छुपी स्वार्थ की कपटी धूप हो।
जो मेरी आँखों में कभी टिककर देख न सका,
वो अपनी आँखों में काजल कैसे सजा पाएगा?
जिन लबों से मीठे झूठ थकते नहीं,
उन बातों पर भरोसा करना मेरा गुनाह कब हुआ?
तुम वही माया हो—
जो टिकती नहीं, जो ठहरती नहीं।
जिस दिन तुमने खुद को सच में ढूँढा,
तुम्हें अपना अस्तित्व खोखला लगेगा।
फिर ये रंग, ये रूप, ये नैन और चैन—
जिनकी मैं तारीफ़ करता आया हूँ, और करता रहूँगा,
वो बस मुझ तक सीमित रहेंगे।
कभी तुम खुद को इस खूबसूरती में देख न सकोगी,
क्योंकि तुम माया हो—
और माया ही बनी रहोगी।
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