सोमवार, 15 सितंबर 2025

Tum hoti toh kaisa hota

तुम होती तो कैसा होता

तुम होती शाम जल्दी नहीं ढलती

तुम होती तो मैं रात तुम्हारे लिए शाम बनाता

तुम होती हवाएं भी दिखती

तुम होती हर घर घर लगता

तुम होती तो हमारा घर तुम्हारा होता 

तुम होती तो हमारे घर की दीवारें भी तुम्हारी आदेश सुनती

तुम होती तो दुनिया की सारी जमीं तुम्हारा इंतेज़ार करती

तुम होती तो हमारा एक गार्डेन होता

उस गार्डेन में फूल भी तुम्हारी नाम की होती

तुम होती चांद हर रोज तुम्हारी राह देखता

तुम होती तो हम किस्से बनते

तुम होती तो हम बहुत खुश होते

तुम होती तो तुम जब भी रोती वो आंसु सिर्फ मेरे हाथों पे गिरती

तुम होती तो 'क्यू' ये सवाल कभी नहीं आता

तुम होती तो मैं खूब पीटता 

तुम होती तो मैं तुम्हें जानबुझकर कभी कभी नाराज़ करता

तुम होती क्या क्या बोलूं , सब होता

तुम होती तो रानी होती

पर मैं राजा कभी नहीं बन पाता

मैं सेवक बनना चुनता

तुम, सिर्फ तुम

बुधवार, 10 सितंबर 2025

why you left

I never prayed before,
but I began
because losing you
was never an option.

I never believed in wishes,
yet I whisper
najar na lage,
protect us, somehow.

I danced in silence,
perfecting myself,
For the occasion when stage will be you,
and the my audience
only you.

I cared too much,
sometimes it bothered you,
but my only vow was
to keep every pain
away from you
while I breathed.

I had never begged for anyone,
but with you I said "please",
because my aura dimmed
in your presence.

Even now,
I plead with the universe
to bend destiny once,
just once.

But perhaps you wished me gone
so fiercely
that my prayers,
my efforts,
my everything
fell unheard.

But why ?
Would you able to answer yourself atleast?

मंगलवार, 9 सितंबर 2025

उठूंगा मैं भी एक दिन

उठूंगा मै भी एक दिन
इस बार आऊंगा मैं कृष्ण से भी आगे बढ़कर 
ताकि मुझे कोई राधा को छोड़ना न पड़े
एक साथी के रूप में आऊंगा मैं
बिना रुक्मिणी साथ लिए
एक सेवक के रूम पे आऊंगा मैं राम से आगे निकलकर
सीता का सेवक , इस बार आग की ज्वाला पूरे शहर में जल जाए और इस बार की परीक्षा सीता लेगी
आऊंगा मैं जुड़ते हुए शिवा से भी आगे
मेरी सती सिर्फ मेरी होगी 
उसे पाने के लिए मैं किसी की आज्ञा नहीं बल्कि आगाज करूंगा
नहीं बंटेगी मेरी सती इस सांसारिक कल्याण में
उसका आंचल भी जल जाए तो शहर पहले खाक होगा
उठूंगा मै जरूर उठूंगा 
दिखाऊंगा मै तुमको कैसा है मेरा प्रेम

तुम

सौहार्द से उठी माया का ही एक रूप हो,

आँचल में छुपी स्वार्थ की कपटी धूप हो।

जो मेरी आँखों में कभी टिककर देख न सका,
वो अपनी आँखों में काजल कैसे सजा पाएगा?

जिन लबों से मीठे झूठ थकते नहीं,
उन बातों पर भरोसा करना मेरा गुनाह कब हुआ?

तुम वही माया हो—
जो टिकती नहीं, जो ठहरती नहीं।

जिस दिन तुमने खुद को सच में ढूँढा,
तुम्हें अपना अस्तित्व खोखला लगेगा।

फिर ये रंग, ये रूप, ये नैन और चैन—
जिनकी मैं तारीफ़ करता आया हूँ, और करता रहूँगा,
वो बस मुझ तक सीमित रहेंगे।

कभी तुम खुद को इस खूबसूरती में देख न सकोगी,
क्योंकि तुम माया हो—
और माया ही बनी रहोगी।

बाजार में उछला इश्क़ की क़ीमत

बदनामी से डरना कब का छोड़ चुका था मैं 
इस बार बदनामी मेरी नहीं मेरी इश्क़ –ए–नियत की हुई 

प्रलय के दिनो में

सोचता हूं,
क्या होगा जब प्रलय होगा,
तो क्या होगा,
क्या तुम स्वयं को अर्पित कर दोगी?
क्या जिसे तुम चाहती हो,
वो भी प्रलय के भय से काँपता रहेगा?
माना अगर कोई देश बचाएगा,
तो जरूर कोई तुम्हारा गांव भी बचाएगा  |
कोई प्रावधान लायेगा,
कोई विमान लायेगा,
कोई हार बचाएगा,
कोई उपहार बचाएगा,
समस्या पूरी रही तो,
कोई राग और दरबार बचाएगा |
कोई समाधान लायेगा,
कोई भोज बचाएगा,
कोई प्रयोग बचाएगा,
मैं वही खड़ा मिलूंगा,
प्रलय के दिनो में,
मैं वो तुम्हारे सारे ख़त बचाऊंगा ||