शनिवार, 29 नवंबर 2025

फितूर

जिस काम में मैं सबसे माहिर था,
नाकाम उसी में हो आया हूँ।
मोहब्बत थी मेरा फ़ख़्र कभी,
आज उसी में सबकुछ खो आया हूँ।

हवा, फूल, नदी और भाव
जन्म से मेरे हमराही हैं,
इनके मेरे पास होने का अब
अजीब-सा मलाल भी साथ हैं |

जिसे एक खरोच पड़े,
तो शहर राख कर दूँ—ऐसा जूनून था,
उसी शहर में बस मैं ही न क़बूल,
यही मेरा सबसे बड़ा फ़ितूर हैं।

मेरी ही गलती थी क्या, ये वो न बता पाईं,
मैं खुद में अपना जुर्म तलाश रहा हूँ।
नई राह, नया काम, नया शौक ही अब
अपने लिए मैं एक आस रच रहा हूँ।


तुम कहती हो, मुझसे मोहब्बत सीखोगी,
उस फ़न में जिसमें मैं कभी बेमिसाल था;
पर उसी में हार चुका हूँ मैं
बेहतर है अब कोई और कमाल ढूँढ लूँ,
कोई नया काम, नया ख़याल ढूँढ लूँ।

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