इधर उधर की बाते करें
आ सखी चुगली करे...
हम सात समंदर साथ चले
करे बाते खूब ढेर सारी
कह दो की बरकत करे
आ सखी चुगली करे
संभावनाओं का खेल खेले
पैसों का व्यापार करे
मन भर का उपहास करे
आ सखी चुगली करे
गरीबों के साथ सोए
अमीरों के साथ जगे
पानी के साथ बहे
जिंदगी की कस्ती खोजे
तू भूल अपनी गरिमा
मैं भूलू अपनी महिमा
एक नाव में करे सवारी
चल कहीं दूर चले
तलवारों की प्लेट बनाए
फूलों की महक सजाएं
चांद से करें शिकायते
सूरज को पीठ दिखाए
तू मेरी पूजा कर
मैं तेरे से इबादत सीखू
आ भूल जाए अपनी भाषा
इशारों में बात करें
आ सखी चुगली करे
आ हम सिर्फ सच बोले
शर्म – फर्ज करे किनारे
नदियों से पानी मांगे
पर्वतों से छत
पेड़ो से खाना मांगे
जानवरों से रथ
हवाओ से रास्ता पूछे
जमीं से अंक
अग्नि से हम गर्मी मांगे
बर्फ से ठंड
फिर करे बाते छोटी छोटी
मैं तुझे कहानियां सुनाऊं
तू मुझे इशारे करे
आ सखी चुगली करें
आ करे हम खूब बुराई
तू कर राजा की खूब बुराई
मैं रंक का करू धुनाई
आ बिचारवाद को फेंक चले
तू प्रेमनगर की नींव डाल
मैं फूलों भंवरो को न्योता दू
गज़ल की मुद्रा तैयार करे
आ सखी चुगली करें