मंगलवार, 12 मार्च 2019

"हम" से "मै" तक

हर इंसान अपने आप में एक दस्खत है |
उसकी गलती पे हमने सजा देकर उसको बरकरार बना दिया |
उसकी जिन्दगी की जरूरत दिखी,
उसकी गंदगी संसार को गैरत लगी,
साहब ने सजा सुना दिया,
कलम ने अपना गुरुर खो दिया,
जज साहब के दर्द को हमने रिवाज बना दिया,
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया |

नृत्य को कसरत बना दिया,
गीत को बत्तमीज बना दिया,
इश्क़ के नाम पे बीमार को आबाद बना दिया,
उसके नाम की कसमें लेकर ममता को बदनाम कर दिया | 
चीखते चिल्लाते माइकवालो ने हमे जंग सीखा दिया,
किस्म हमारा एक है और किस्से हजारों बना दिया,
देश को 'लोगो" से नहीं 'जायदाद" से परिभाषित कर दिया |
अहम् लेकर चलने वाले राहत-चाहत सिर्फ लब्जों पे रख दिया,
क्योंकि "मैं" के आगे कुछ सोचा नहीं,
"हम" शब्द कभी सुना नहीं,
"मैं" बनकर "हम" को खोजते खोजते जिंदगी मिटा दिया |
हमने "हम" को ना जाने कब "मैं" बना दिया ||