प्रेम—कोई विरल चमत्कार नहीं,
प्रेम बस एक अतिरंजित भावना है,
अतिमूल्यांकित-सा भाव है |
तुमसे मिला तो बस तुम्हें सुनने का मन हुआ,
फिर तुम ही मेरा रोज़ का संगीत बन गईं,
एक ऐसा राग जिसे मैं किसी से बाँटना नहीं चाहता था।
तुम्हारे रंग, राग, रस्में, पसंद,
सब अपना लिए मैंने।
उन्हें पहनना, निभाना, बनाना
मेरे लिए कर्तव्य नहीं, स्वभाव बन गया।
तुमसे जुड़ी हर चीज़,
मुझे इश्क़ जैसा लगा।
तुम्हें सोचना गीत बनता,
तुम्हें देखना खुद को सँवार देता,
तुम्हारी हल्की-सी आह भी,
मुझमें करोड़ों तैयारियाँ जगा देती।
मैं दिन-रात काम करता,
कि मेरे रहते तुम्हें कोई दुःख न छू सके।
तोहफ़े भी खुद-ब-खुद सपनों से जन्म लेते।
जो फूल तुम्हें दिए, मेरे लिए वो
प्रकृति का बनाया तुम्हारा अंश थे।
तुम्हारी जूठन भी अपना ही हिस्सा लगी,
आभूषण भी सिर्फ तुम्हारे लिए दिखे।
तुम्हारे लिए पकाना धर्म था, मेहनत नहीं।
ये सब मैंने कई लोगों के लिए किया होगा,
पर इतनी एकाग्रता से , सिर्फ तुम्हारे लिए।
हाँ, प्रेम बदले में कुछ नहीं माँगता,
पर रोक तो सकता हैं,
मेरे लिए तुम्हे खोना विकल्प नहीं था,
जब ये तुम जानो फिर भी न रोकना ?
ये सब तुम्हारी किसी प्रतिभा से नहीं हुआ,
मेरे स्वाभाव से हुआ।
तुम्हारी जगह कोई और होती,
मेरी यही कोशिश, यही मोह,
उसी के हिस्से होती,
फिर तुम्हारी कोई जगह ही न होती।
दिल और मन का एक दिशा में झुक जाना,
ये सुंदरता मेरी थी,
ये अतिमूल्यांकित सा लगने वाला कोशिश मेरी ही थी।
तुम्हें मेरी परवाह नहीं थी,
और तुम्हारी वही बेरुख़ी
तुम्हें अमानवीय बना गई।
मेरा कुछ नहीं गया—
तुम मेरे जीवन में आईं,
ये तुम्हारा अच्छा नसीब।
मैं तुम्हारे जीवन से गया
ये तुम्हारा बुरा नसीब।
इस प्रेम के बिना भी सब कुछ है ,
प्रेम बस एक घटना हैं ,
अतिरंजित घटना ।।