शनिवार, 4 मार्च 2023

स्मृति

रूठी हु मैं तुझसे,
तू मुझे मनाता क्यूं नहीं,
बहुत खामुश सी रहती हूं मैं अब,
मेरे नखरे पहले से बहुत कम हो गए है,
फिर भी प्यार जताता क्यूं नहीं,
अश्क़ और इश्क़ सब अब इंतेज़ार में हैं,
गैरत कब से आ गया तुझमे,
लोग मेरी हया पहचानते भी नहीं,
दरवाजो से तेरी गुगुनाहट आती क्यूं नहीं,
अक्ल और इबादत कुछ भी रहा नही,
तुम मेरी पहचान दुनिया से अब कराते क्यों नहीं,
उंगलिया अब ठंडी पड़ चुकी है,
हाथ आगे बढ़ाता क्यू नहीं,
बेवफ़ा लगता है तू मुझे,
पर लोग मानते ही नहीं,
इन लोगो की वजह से वफ़ा है तुजपे,
पर तू सामने आता क्यों नहीं,
मुँह फेर कहा चला गया तू,
आकर पास सीने से लगाता क्यू नहीं,
शाम अब होती क्यू नहीं,
कोई राग तू सुनाता क्यों नहीं,
कब तक मुस्कुराते हुए दीवारों से लिपटा रहेगा, 
रोज एक ही फूल से ऊबता क्यू नहीं | | 


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