मेरी कविता नाराज़ थी
और यही थी खामोशी की वजह
फिर दिल टूटने और सम्हलने के बीच में को जिया
वो नज़्म जैसा नहीं रहा पर देशी जाम जरूर रहा
सो देसी जाम का नज़्म उन्ही जिन्दगी के नाम ये रहा...
तुम चली गई,
हमारी हिम्मत और तुम्हारी खामोशी
एक नई मोड़ दे गई,
तुम्हारा जाना और मेरा सम्हालना मेरी बर्बादी लाया,
तुमको भूलना और मेरा नई कल्पना मुझे जिद्दी बनाया,
प्रणय भूल गया और उकसू चरित्र मुझे अधीर बनाया,
किसी की मजबूरी पर अपना हक जताया,
देह से प्रेम में उतावला हुआ,
वो झूठा प्रेम मेरी इबादत बना,
तेरे जाने के बाद मेरी इबादत भी झूठा हुआ,
पागल बना, जिस्म उड़ाया
आत्म प्रेम सिख न पाया
भोग विलास सा जीवन पाया,
न एतराज, न इकरार, न मोहाबत इजहार हुआ
फिर भी मैने प्रेम किया,
एक झूठा प्रेम किया |
तुम चली गई पर आज शिकायते लाया हु,
अब कौन सिखाएगा प्रार्थना मुझे,
कैसे खोजू प्रणय प्रेम,
कैसे दौडू प्रेम खोज में,
कैसे बताऊं इस खोज में हूं मैं,
कैसे सीखू करुणा ज्ञान,
कैसे जानू उत्साह राग,
किसको खोज के गुनगुनाऊं,
जिसका छुप कर एहतमाम करू,
क्यों सवारू मैं और कैसे करू,
नई तुम मै कहा बनाऊं,
इस राग को बस तुम पढ़ लेना,
इस इक पल का प्रेम बस कबूल लेना,
अभी भी मेरा प्रेम तुम हो,
मुझसे और मेरा प्रेम आजाद रहने देना ||