प्यार की खिड़की पे खड़ी
अपने को आईने में देख मुस्कुराना
जवां उम्र में बच्चो सी नखरे
हजारों नफरत पे आंखे दिखाए
मेरी एक हल्की गुस्से पे वो पूरी बरसती हुई
कही तो होगी
एक मासूम दिल सा.....
सुबह में उठते समय से पूछे
आंखो को रोज क्या ही दिखाए
इंतजार अब तुम समय से परे हो
एक पल को समझना पड़ेगा
फिर अगले रोज सांसों में भक्ति
अगले पल तो मिलेगी
एक मासूम दिल सा.....
रातों में तकिए को एक गीत सुनाती
कभी आंखो का बोझ उतारे
एक अदब से सिरहन में करवट बदलते
चादर पे मेरा नाम लिखते सही
आंखो से पूछे दिखाई दिए ?
एक मासूम दिल सा.....
कभी बारिशों मेंं भीगती हुई
हल्की धूप सी सुलगती हुई
नजरो में नजारे संजोती हुई
इश्क पे पहरा, इशारों को यूं ही टिकाए हुई
मिलने को आतुर
एक मासूम दिल सा.....