सोमवार, 3 अगस्त 2020

आंखो देखी

मै फ्रैंडशिप डे पे दोस्तों के लिए कुछ लिखने को सुबह से सोच रहा था,
पर जब भी कोशिश करता एक छोटा सा झूठ जुड़ जा रहा था जो सब कोशिशों पे कलंक डाल दे रहा था ।
लिखूंगा एक दिन कुछ और लोगो को पढू, की कोशिश कामयाब हो ।
कामयाब से मुझे संजय मिश्रा याद आ गए, सो फिर से 'आंखो देखी' मूवी फिर से देख डाली ।
उसके बाद रजत कपूर से मै थोड़ा खफा हो गया ।
अरे इसलिए नहीं की उनके किरदार ने बड़े भाई को छोड़ दिया बल्कि इंसानी अनुभवों में चिड़ियों की तरह उड़ना फिट नहीं बैठा ।

यहां मेरे लिए आंखो देखी फिल्म की एक रूपरेखा.......

आंखो देखी जब मैंने देखी तो........
फिर से प्यार में पीटने का मन किया ।
ठंडे मौसम में गर्म पानी की ओंस पीने का मन किया ।
घर के बुजुर्गो से गुफ्तगू करू,
मुझे शादी करने का मन किया ।
मुझे शेर को देखने का मन किया,
ताश के पत्तों में भावनाओ की संभावना खोजने की चाहत हुई ।
अपने पास की वो छोटी दुकान पे गर्म जलेबी खाने का मन हुआ ।
एक मोटी बेगम की तलाश को मन जिद्दी हुआ ।
अपने शहर के सारे कथित बुरे लोगों से मिलकर उन्हें गले लगाने का मन हुआ ।
गर्म गोले और ठंडी चाय ना पी सकने का सबक मिला ।
आखिर यही तो जिंदगी है और यही है पूरा जीना ।।
पर हम हवा और उसकी ठंडी खुशबू पक्षी की तरह उड़ कर महसूस नहीं कर सकते,
पैराग्लाइडंग भी हवा और उसकी संगीत को पक्षी जैसा कभी महसूस नहीं करा सकता,
एक ऊंचे पर्वत पे बैठ कर या फिर खुली जमीन का आश्रय मात्र हमें आसानी से हवा और उसके सारे संभोगी रूपो से हमें तृप्त कर सकता है ।।

शनिवार, 6 जून 2020

नि:शब्द

मै झूठी दुनिया में दिखावा करता चला गया लोग मुझसे राज पूछने लगे मैं बहुत नीरस और हताश हो गया फिर मै भी थोड़ा ईमानदार हो गया मै नि:शब्द हो गया ।

मै भूतो को ना मानता मै पिशाच विषयों में विवेक ढूंढ़ता जब घोर अंधेरी रात में आंख खोलता खुद को अंधा पाता रात में बसने वाली दुनिया कोई बता के गया ईश्वर और अनदेखी दुनिया में उलझा के गया आँखों का पर्याय सिर्फ उजाला और समय की स्थिरता को दिखाया
बिना अभिप्राय के रेस में भागते लोगो को जीने की मुहलत मांगते हुए देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै राम, साई नाम को पीछे से हाथ दिखा के गया
पैगम्बर पे कानों को दबा के रखा
कोई कलाम, गांधी को एक पन्ने में उकेरा
कबीर, भगत और टेरेसा को पन्ने के दूसरे भाग में पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने 2 दिन के लिए खूब पैसे उड़ाए
खाया नाचा और नचाया
महंगी गाड़ी को सड़क पे दौड़ाया
उसी सड़क पे कुछ बच्चो को गुबारे बेचते हुए उसी गूबारे से खेलते पाया
मै नि:शब्द हो गया ।

ये देश कभी प्यारा नहीं लगा हर तरफ चीख और शोषण लोग , लोगो से परेशान दखिन दिशा से मुँह मोड लोगो को मैंने जीने की चाह में दखिन में ही भागते देखा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै प्रदूषण, अत्याचार और दूसरे जीवों के घरों पे औद्योगीकरण
का परिणाम और समाधान ढूंढता रहा
किसी कारणवश कुछ सप्ताह शहर बंद करना पड़ा
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अपने रंग,रूप,मोटे, पतले और नाटे होने के कारण
सबसे दूर भागता रहा
एक दिन बस जीने की लालसा में मैंने हाथ बढ़ा दिया
मै नि:शब्द हो गया ।

मैंने किसी अपने खास को खुश करने के लिए
हजार प्रयास किए
हा कभी कभी सफल प्रयोजन होता पर उसके ना होने पर
मैंने खुद को खुश करना शुरू किया
वो खास बहुत खुश मिला
अब हर प्रयोजन सफल होता चला गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मेरे कुछ आदत पे लोग असर छोड़ जाते
मै लड़ता चिलाता खामोश करने लगा
लोगों की भीड़ घेरने लगी
मगर चिलाने वाला केवल मै
मै अब हारने लगा
मै अब कम बोलने लगा
फिर खूब हसने लगा
भीड़ अब पीछे चलने लगी
शब्द को सुनने को, भीड़ चिलाने लगी
ना जाने कैसे मै जीत गया
मै नि:शब्द हो गया ।

मै अब महत्व को महत्व जैसे देखने लगा
मै नि:शब्द हो गया ।

बुधवार, 29 अप्रैल 2020

#इरफान

हम बागों में बैठे सावन ढूंढ़ते रहे,
वो पछुवा में पानी की बूंदों को हवा में उछाल दिया करता था ।
हम पहाड़ों पे चढ़ के खुद को मुशाफिर बताते,
वो चंबल की बीहड़ में रहना,
आजाद नज़म सा लाश और परिवार में कारवां ढूंढा ।
शर्तों पे वचन रख आदर्शो की नुमाइश,
वो खामोश रहकर खुद को साबित किया है ।
करोड़ों थे उसको गौर से सुनने वाले,
वहीं अनजाने में खामोश हो गया ।
सब आंखों से निहारते नई ख्वाइश देखते रहे मगर,
वो पुरानी कहानी छोड़ कर गया ।
उसी की शब्दों में उसी का शुक्रिया,
करते हुए लोगों ने पुराने पन्ने पल्टे ।
वो अपनी सारी अमानत लोगों के दिल में रख के गया,
और खुद की लड़ाई जीतते हुए हार कर गया ।
उसकी हार से आहत ये जन समुदाय,
उसकी जीत के सारे पन्ने उसको दिखा रहे है ।
हम सब उसकी जीत को ही याद कर रहे है ।।

गुरुवार, 20 फ़रवरी 2020

Narula



माफ़ी सर!
एक कुएं में मेंढ़क सा तो ना था मैं
पर बड़ी दुनिया के सारे कुएं एक से थे
शरीफ़ और जज्बाती तब भी था मैं
और सांपो का डर ना तब भी था
पर हिम्मत की भाषा पर में उखड़ा था मैं
समझौते की आदत का शिकार था मैं
लड़ने की मजबूती ना थी मुझमें और
हक की लड़ाई में बहुत पीछे था मैं (किस हक से लड़ था है तू, तुझे इससे क्या लेना देना)
हंस कर डांटने की आपकी साथी टोली
उनकी हंसी आज उन्हीं को सलाम
शिकायतों की समझौते में तब्दीली 
मेरी कलम से वो सारे साथी टोली भी कसूरवार
गुंजाइश खत्म करने की आरोपी साथी टोली
छात्रों और बच्चो की नकाब में मवाली साले
समझौते में इनको छुपा कर
अपनी गलती की माफी सर।
मुझमें आपकी छवि देखने वालो 
का शुक्रिया ।
पर आपसे हमेशा ही माफी सर !
हर दिन उसी ऊर्जा से आना
छोटी सी आंखों में गहरी चमक
मुस्कान बिखेरते विनम्र झलक
डूबती कस्तियो में हाथ प्रबल
बदले की भावना में शून्य संकल्प
जामिया में आपकी अनुराग धारा
इन सब के लिए शुक्रिया सर !
और आपसे हमेशा माफी सर !

#Bournvita is my favourite always.
• Unable to make a difference between fun and insult is a  forgiveness crime.
Need to feel sorry and say sorry.
Raise your hand and say thank you sir ! 😊

जामिया -> University