मै फ्रैंडशिप डे पे दोस्तों के लिए कुछ लिखने को सुबह से सोच रहा था,
पर जब भी कोशिश करता एक छोटा सा झूठ जुड़ जा रहा था जो सब कोशिशों पे कलंक डाल दे रहा था ।
लिखूंगा एक दिन कुछ और लोगो को पढू, की कोशिश कामयाब हो ।
कामयाब से मुझे संजय मिश्रा याद आ गए, सो फिर से 'आंखो देखी' मूवी फिर से देख डाली ।
उसके बाद रजत कपूर से मै थोड़ा खफा हो गया ।
अरे इसलिए नहीं की उनके किरदार ने बड़े भाई को छोड़ दिया बल्कि इंसानी अनुभवों में चिड़ियों की तरह उड़ना फिट नहीं बैठा ।
यहां मेरे लिए आंखो देखी फिल्म की एक रूपरेखा.......
आंखो देखी जब मैंने देखी तो........
फिर से प्यार में पीटने का मन किया ।
ठंडे मौसम में गर्म पानी की ओंस पीने का मन किया ।
घर के बुजुर्गो से गुफ्तगू करू,
मुझे शादी करने का मन किया ।
मुझे शेर को देखने का मन किया,
ताश के पत्तों में भावनाओ की संभावना खोजने की चाहत हुई ।
अपने पास की वो छोटी दुकान पे गर्म जलेबी खाने का मन हुआ ।
एक मोटी बेगम की तलाश को मन जिद्दी हुआ ।
अपने शहर के सारे कथित बुरे लोगों से मिलकर उन्हें गले लगाने का मन हुआ ।
गर्म गोले और ठंडी चाय ना पी सकने का सबक मिला ।
आखिर यही तो जिंदगी है और यही है पूरा जीना ।।
पर हम हवा और उसकी ठंडी खुशबू पक्षी की तरह उड़ कर महसूस नहीं कर सकते,
पैराग्लाइडंग भी हवा और उसकी संगीत को पक्षी जैसा कभी महसूस नहीं करा सकता,
एक ऊंचे पर्वत पे बैठ कर या फिर खुली जमीन का आश्रय मात्र हमें आसानी से हवा और उसके सारे संभोगी रूपो से हमें तृप्त कर सकता है ।।