1. बातें जोर पे नहीं वफ़ा पे होता है
पुलिंदे तो झूठ का होता है
सच्चाई में सिर्फ गहराई होती है
इजहार ऐ ताकत पे गौर नहीं करो
ताकत तो झूठ का भी ज्यादा होता है
इंतजार-इ -हद भी होता है
इसलिए
उसके वादे का अब मुन्तजिर नहीं
काफी समय बर्बाद भी होता है |
पुलिंदे तो झूठ का होता है
सच्चाई में सिर्फ गहराई होती है
इजहार ऐ ताकत पे गौर नहीं करो
ताकत तो झूठ का भी ज्यादा होता है
इंतजार-इ -हद भी होता है
इसलिए
उसके वादे का अब मुन्तजिर नहीं
काफी समय बर्बाद भी होता है |
2. फूलो पे धूल हो तो निराश नहीं हो
बारिशे आगाज लाएंगी
कस्ती तो वहां डूबेगी
जब फुल ही मुरझाया हो
बारिशे आगाज लाएंगी
कस्ती तो वहां डूबेगी
जब फुल ही मुरझाया हो
आफताब को ढूंढने में उम्र जया ना करो
किचडो के बीच से कमल भी निकलता है |
किचडो के बीच से कमल भी निकलता है |
3. कही खो गया हु मैं
मुझे तलाशो
मैंने बुद्धा को तराशा
तुम हिन्दू मुस्लिम करते हो
मैं तो महावीर था
तुम बाहुबली से अब लिपटे हो
मैं मिथिला की सीता थी
जहा प्रेम पत्तो सा यु झड़ता था
अब नफरत की उबाल वहाँ पर
इंसान इंसान को मारते हो
मैं पराक्रमी और शांतिदूत अशोक था
तुम सहाबुद्दीन मक्कारो से डरते हो
अब भी अगर ढूंढ न सको तो
याद करो तुम कुंवर को
खुद का मान भूल चुके हो तो
सम्मान कर लो देश-रतन को
गुस्से से लौटो तुम
अब बहुत जल चूका हु मैं
दंगो से तुम वापस आओ
मैं बिहार, मुझे बचाओ
तुम सब में ही मर रहा हु मैं |
मुझे तलाशो
मैंने बुद्धा को तराशा
तुम हिन्दू मुस्लिम करते हो
मैं तो महावीर था
तुम बाहुबली से अब लिपटे हो
मैं मिथिला की सीता थी
जहा प्रेम पत्तो सा यु झड़ता था
अब नफरत की उबाल वहाँ पर
इंसान इंसान को मारते हो
मैं पराक्रमी और शांतिदूत अशोक था
तुम सहाबुद्दीन मक्कारो से डरते हो
अब भी अगर ढूंढ न सको तो
याद करो तुम कुंवर को
खुद का मान भूल चुके हो तो
सम्मान कर लो देश-रतन को
गुस्से से लौटो तुम
अब बहुत जल चूका हु मैं
दंगो से तुम वापस आओ
मैं बिहार, मुझे बचाओ
तुम सब में ही मर रहा हु मैं |
#Communal_Riots_In_Bihar
4. मेरा वजूद खोजने वालो
मुझे मेरी बातो में खोजो
मै कौन और कहा हूं
मेरी आलेखो में खोजो
छोड़ो ये फरियादी रिश्तेदारियां
मुझे बस मुझमें खोजो
मुझे मेरी बातो में खोजो
मै कौन और कहा हूं
मेरी आलेखो में खोजो
छोड़ो ये फरियादी रिश्तेदारियां
मुझे बस मुझमें खोजो
5. इबादत की तलब है ?
चलो मजहब छोड़ते हैं
जूनून-ऐ-कारवां ढूंढ़ते हैं
नूर-ऐ -जहां खोजते हैं
मंजिल-ऐ -मुन्तजिर कब तक ढूंढोगे ?
चलो
चलो इश्क़ करते हैं |
6. नाजायज रसूख ने तुझे मार डाला
जहा थी बचत वहा भी खपत कर डाला
जड़े भूल कर आसमान की सैर में निकला
इनायतें कम हो गयी
जुस्तजू बढ़ती चली गयी
तूने तेरी रूहानियत को खुद ही मिट्टी में मिला डाला |
7. सुनो खिलाफी मत होना,
बस धीरे से छोड़ देना |
हा जरिये बहुत है,
मजे लेना,
पर मेरे जरिये को गाली मत देना |
बेशक रूठ जाना,
पर गिला मत रखना |
जिंदादिल हु,
मेरे कानो को भर देना,
शिकवे गैर से मत कहना,
आगाजी मत होना |
खिलाफी मत होना |
8. तू तू मैं मैं था
गठीले हाथ और हथियार था
दो दल और फौज था
सबमें अक्ल और अकबर था
सबपे अवसर और अख़बार था
हम दोनों दुश्मन थे
आखिर में आक़िबत ये हुआ
की हम हार गए
क्युकि उनके दल में एक हँसता हुआ नूर था
9. हम सगे की दौलत पे
मौसिकी का मज़ा लेते रहे
और मुद्दते बाद तक
हम उनको बख़ील कहते रहे
रौशनी की अति ने
हमसे हमारा छाया छीना
हम जिफाफ़ के लिबास में जिस्म उड़ाते रहे
आज हमारा पाला अपने साये से जो पड़ा
आह की आहट से सगे को पिता का तबका मिला
8. तू तू मैं मैं था
गठीले हाथ और हथियार था
दो दल और फौज था
सबमें अक्ल और अकबर था
सबपे अवसर और अख़बार था
हम दोनों दुश्मन थे
आखिर में आक़िबत ये हुआ
की हम हार गए
क्युकि उनके दल में एक हँसता हुआ नूर था
9. हम सगे की दौलत पे
मौसिकी का मज़ा लेते रहे
और मुद्दते बाद तक
हम उनको बख़ील कहते रहे
रौशनी की अति ने
हमसे हमारा छाया छीना
हम जिफाफ़ के लिबास में जिस्म उड़ाते रहे
आज हमारा पाला अपने साये से जो पड़ा
आह की आहट से सगे को पिता का तबका मिला
10. जब भी मिलती हो ,
पलके मुस्तकीम हो जाती है |
जब भी कुछ कहती हो ,
आहटे और कोहराम खामोश सा लगता है |
ऐहतमामे कर के बैठता हूं,
कागज पे उकेरी जो गई हो ,
कहानी
जब भी कुछ कहती हो |