शनिवार, 28 अगस्त 2021

बाबूजी गुजर गए

गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है
बाबूजी गुजर गए पर मझिले भईया ने बोला बाबूजी उनको हमेशा डांटते 
और मां जो गम में अंधकार हो गई है साजिशे करती थी
बाबूजी गुजर गए
आज सब एक हो गए, सब एक छत के नीचे खड़े है
बाबूजी की चाहत , उनके मरने के बाद 
सब निराश है, मां के लिए
अब भी सब एक दुसरे से नजरे नही मिलाते
और जब भी मिलाते गीले शिकवे ही करते
कभी एक दूसरे वाले फिर बाबूजी वाले
कौन कहता है गीले सिकवे मरने के बाद नहीं होते
बड़े वाले भईया हमारे बाबूजी सामान है
कल वो कमरे में अपने बच्चो के साथ हस खेल रहे थे
बीबी के साथ खुश थे, पर कमरे से बाहर मां याद आ ही जाती है
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
चिंता में है सब कि क्या होगा मां का
क्योंकि साथ नही रख सकते
पर क्यों नही रख सकते ?
सब बहुत निराश है, की मां का क्या होगा
अब बहुत दिनो की देर हो गई, बाबूजी को सब भूल गए
और निराश है मां के लिए बस स्वार्थ निराश
क्योंकि बाबूजी गुजर गए
क्या छोड़ कर गए है, पर सब बाबूजी के नाम पर है
नाम तो बदलना होना, हक भी बदलना पड़ेगा
कुछ बड़े भैया, कुछ मझिले और कुछ पे मेरा हक डालना होगा
मां अकेली है, पर वो इंतजार में है की उनपे भी कोई अपना हक बताए
पर कैसे ? कब तक ?
और उसका क्या जो गीले शिकवे बाबूजी से थे
अब वही गीले शिकवे मां को भी तो सौंपना है
बाबूजी गुजर गए
गीले सिकवे मरने के बाद भी होते है